INTERCONNECTION OF FINE ARTS AND JUGALBANDI OF POETRY

ललित कलाओं के अन्तर्सम्बन्ध और काव्य-कला की जुगलबंदी

Authors

  • Dr. Annapurna Shukla Associate, Professor Painting Department, Vanasthali Vidyapeeth

DOI:

https://doi.org/10.29121/granthaalayah.v7.i11.2019.905

Keywords:

ललित कलाओं, काव्य-कला, जुगलबंदी

Abstract [English]

English : Nature itself is a poisonous plank. This wonderful combination is not only an epic, but also a great visual picture. There are poetic juices, verses and ornaments in it, there is also a variety of colors and forms, only then the poem is a sparkling image and the picture is a sparkling living poem. The feeling of both is counted towards the end. All arts are similar at the cognition level and are expressed and divided in the mediums, irrespective of the artist.


Elemental analysis of the arts shows that the interrelationships of all the fine arts are very deep and have always influenced and enriched each other. If the meaning of words is intensified, then the lines have their elegance, if the notes have their own universe, the postures have their own sense of the world, if the stones have a lyrical form, then the images have their own shape. Painting in the arts has developed parallel to poetry. According to the medium, all fine arts have their own existence. To express himself in the early period, these arts were his gross languages. Even after their establishment, man must have been searching for such a powerful medium for years. By which one could express his entire thought. He must have got the word as a result of that.


Hindi : प्रकृति स्वयं एक विषाल फलक है। यही अद्भुत संयोजन एक महाकाव्य तो है ही, एक विराट दृश्य चित्र भी है। इसमें काव्य के रस, छन्द और अलंकार है तो विविध रंग और रूपाकार भी हंै तभी तो कविता एक जगमगाता बिम्ब है तो चित्र एक जगमगाती सजीव कविता। दोनों की अनुभूति अन्तस में गुनी जाती है। सभी कलाएं अनुभूति स्तर पर समान होतीं है और माध्यमों में व्यक्त होकर विभक्त हो जातीं है फिर चाहे कलाकार कहीं का हो।


कलाओं के तात्विक विश्लेषण से पता चलता है कि सभी ललित कलाओं के अन्तःसम्बन्ध बहुत गहरे हैं और ये सदैव एक दूसरे को प्रभावित और सम्पन्न करते रहें हैं। यदि षब्दों के अर्थ की गहनता है , तो रेखाओं का अपना लालित्य है, यदि सुरों का अपना ब्रह्मांड है तो मुद्राओं का अपना भाव लोक है, यदि पत्थरों का एक लयात्मक स्वरूप है तो बिम्बों का अपना एक आकार बोध है। कलाओं में चित्रकला तो काव्य के समानान्तर ही विकसित हुई है। माध्यम के अनुसार सभी ललित कलाओं का अपना-अपना अस्तित्त्व है। आदि काल में अपने को व्यक्त करने के लिए यहीं कलाएं उसकी स्थूल भाषाएं थी। इनकी स्थापना के बाद भी मनुष्य वर्षों ऐसे शक्तिशाली माध्यम की खोज में लगा रहा होगा। जिसके द्वारा वह एक अपने सम्पूर्ण चिन्तन को व्यक्त कर सकता था। उसी के परिणाम स्वरूप उसे शब्द मिला होगा।


 

Downloads

Download data is not yet available.

References

राजशेखर, काव्यमीमांसा, अनुवादक, पण्डित केदारनाथ शर्मा सारस्वत, बिहार-राष्ट्रभाषा, परिषद, पटना, दशम, अध्याय, पृ. 121

सौन्दर्यशास्त्र के तत्त्व, डाॅ. कुमार विमल, पृ. 34

यहां यह ध्यातव्य है कि चित्रकला ही नहीं, सभी दृश्य कलाओं में संगति, विशेषकर अनुपात की संगति विद्यमान रहती है। दृश्य कलाओं में संगति पैदा करने वाले अनुपात को हम वास्तु-अनुपात कह सकते है और श्रव्य कला, विशेषतः संगीत में ‘संगति’’ पैदा करने वाले अनुपात को हम लयात्मक अनुपात कह सकते है। स्वर के अन्तरालों पर निर्भर इसी लयात्मक अनुपात को लक्ष्य करके पाइथागोरस ने अपने प्रसिद्ध सिद्धान्त ‘‘थ्योरी आॅफ न्यूमेरिकल प्रोपोर्शन’’ को प्रवर्तित किया गया था।

रूपभेदाः प्रमाणानि भाव लावण्य योजनम्।

सादृश्यं वर्णिकाभंग इति चित्रम् षडांगकम्।।

अवनीन्द्र नाथ ठाकुर, भारतीय शिल्प के षडंग - अनुवादक - महादेव साह, नया साहित्य प्रकाशन, 2डी, मिण्टों रोड इलाहाबाद, 1958, पृ. 15

अवनीन्द्र नाथ ठाकुर, भारतीय शिल्प से षडंग, अनुवादक - महादेव साह, नया साहित्य प्रकाशन, 2 डी, मिण्टों इलाहाबाद, 1958, पृ. 25-26

सौन्दर्यशास्त्र के तत्त्व, डाॅ. कुमार विमल, पृ. 37

शैली, ए. डिफेन्स आॅफ पोयट्री कलैक्टेड इन इंग्लिश क्रिटिकल ऐसेज, 19वीं सेन्चुरी, एडिटेड बाई ऐडमण्ड डी. जोन्स, लण्डन, 1950, पृ. 106

वाल्टर सार्जेण्ट, डी. इन्ज्वायेमेन्ट एण्ड यूज आॅफ कलर न्यूयार्क, 1923, पृ. 50

एम. आर. मजूमदार, दी. गुजराती स्कूल आॅफ पेन्टिग जर्नल आॅफ दी इण्डियन सोसायटी आॅफ ओरियन्टल आर्ट 1942, वाॅल्यूम 10, प्लेट्स, 3,6

जाॅन कीट्स बाई सर सिडनी काॅल्विन, लन्डन 1917

चाल्र्स ब्रोदलियर (सैक्टेड पोयम्स) ट्रांसलेटेड बाई जाॅफरे वैगरन एण्ड एन इन्ट्रोडक्शन एनिड स्टार्की, लण्डन, 1946, पृ. 11

निकोलेट ग्रे. रोजेटी दान्ते एण्ड अवर सेल्वस, फैबर एण्ड फैबर, लण्डन, 1945, पृ. 17

असित कुमार हालदार यूरोपेर, शिल्कथा (स्थापत्य, भास्कर्य ओ. चित्रकला) कलकत्ता विश्वविद्यालय, प्रकाशन, पृ. 109-110

ल्सूसीन पिसैरो, रोजेटी पब्लिश्ड बाई टी.सी. एण्ड ई.सी. जैक, लण्डन, 11-12

विलियम ब्लैक एण्ड हिज इलस्ट्रेशन्स, टू दी डिवाइन काॅमेटी, कलेक्टेड इन एसेज एण्ड इन्ट्रोडक्शन बाई डब्ल्यू बी पीट्स, लण्डन, 1961, पृ. 116

फ्रेगमेन्ट फ्रोम ए लैअर वाई रवीन्द्र नाथ टैगोर 4, आर्ट्स एनुअल 1936-37, एडिटेड बाई ए कुमार स्वामी, ओ.सी. गंागुली, काॅरपोरेशन, स्ट्रीट, कलकत्ता।

‘‘भारतीय संस्कृति में ललित कला का महत्ता’’, ठाकुर जयदेव सिंह, पृ. 7

Downloads

Published

2019-11-30

How to Cite

Shukla, A. (2019). INTERCONNECTION OF FINE ARTS AND JUGALBANDI OF POETRY: ललित कलाओं के अन्तर्सम्बन्ध और काव्य-कला की जुगलबंदी . International Journal of Research -GRANTHAALAYAH, 7(11), 25–39. https://doi.org/10.29121/granthaalayah.v7.i11.2019.905