ILLUSTRATION AND RHETORIC WITHIN THE STORIES OF PREMCHAND AND SRI LANKAN STORYTELLER MARTIN WICKRAM SINGH

Authors

  • Dr. R.K.D. Nilanti Kumari Rajapaksha Senior Lecturer, Department of Language, Culture and Color Studies, Sri Jayawardhanpur University, Gangodwil, Nugegoday, Sri Lanka.

DOI:

https://doi.org/10.29121/granthaalayah.v5.i8.2017.2217

Keywords:

प्रेमचंद, मार्टिन विक्रमसिंह, कहानी, चित्रात्मकता, अलंकारिक

Abstract [English]

Article Summary: - Premchand (1880–1936) and Sri Lankan lead storyteller Martin Wickremesingh (1890–1976) are from different countries, yet many similarities are found in their stories. Being contemporary, the content of both storytellers has had an impact on the problems of the day. The use of pictorialism and rhetoric is found in the stories of Premchand and Martin Wickram Singh.
Some of the landmarks in the stories 'Fatiha', 'Tagada' and 'Vinodasvadaya', 'Vahlu', 'Vahatlu', 'Metal Kollahlaya', 'Budginn', 'Mudiyansa Mama' and 'Ahimsanswadiya' by Premchand, narrated by Premchand The picture is drawn. The stories described in both stories come alive in a pictorial style.
Sujan Bhagat, Pus Ki Raat, Algoza, wife to husband etc. are examples for the use of rhetoric of Premchand's stories. Figurativeness is prevalent in stories like 'Dhatakolakhalaya', 'Hadan Saqqi Keem', 'Gahaniyak', 'Hiskbal', 'Upasakamma', 'Parakaryat Gal Gassim' and 'Beagle', composed by Martin Wickram Singh.
In this way Premchand and Martin Wickram Singh succeeded in attracting readers by bringing pictorialism and rhetoric to the language in a specific way.


लेख का सारांश:- प्रेमचन्द (1880-1936) और श्री लंका के प्रमुख कहानीकार मार्टिन विक्रमसिंह (1890 से सन् 1976) अलग-अलग देशों से हैं फिर भी उनकी कहानियों में बहुत सी समानताएँ पाई जाती हैं। समकालीन होने के नाते दोनों कहानीकारों की विषयवस्तु पर तत्कालीन समस्याओं का प्रभाव पड़ा है। प्रेमचन्द तथा मार्टिन विक्रमसिंह की कहानियों में चित्रात्मकता और अलंकारिकता का प्रयोग मिलता है।
प्रेमचंद द्वारा विरचित ‘फातिहा’, ‘तगादा’ तथा मार्टिन विक्रमसिंह की ‘विनोदास्वादय’, ‘वहल्लु’, ‘धातु कोलाहलय’, ‘बडगिन्न‘, ‘मुदियान्से मामा’ तथा‘ अहिंसावादिया’ कहानियों में कुछ स्थलों का वर्णन पाठकों के मन में एक चित्र सा खिंच जाता है। चित्रात्मक शैली द्वारा दोनों की कहानियों में वर्णित घटनाओं में सजीवता आ गयी है।
प्रेमचंद की कहानियों की अलंकारिकता के प्रयोग के लिए सुजान भगत, पूस की रात, अलगोझा, पत्नी से पति आदि कहानियाँ उदाहरण हैं। मार्टिन विक्रमसिंह द्वारा विरचित ‘धातुकोलाहलय’, ‘हदँ साक्कि कीम’, ‘गॅहॅणियक’, ‘हिस्कबल’, ‘उपासकम्मा‘, ‘परकारयाट गल गॅसीम’ तथा ‘बेगल‘ आदि कहानियों में अलंकारिकता विद़यमान है।
इस प्रकार प्रेमचंद तथा मार्टिन विक्रमसिंह विशिष्ट प्रकार से भाषा में चित्रात्मकता तथा अलंकारिकता लाकर पाठकों को आकर्षित करने में सफल हुए।

Downloads

Download data is not yet available.

References

रवीन्द्र कालिया, संपादक, प्रेमचंदः हिंदू-मुस्लिम एकता संबंधी कहानियाँ (फातिहा), 2012, पृ. 34

प्रेमचंद, मानसरोवर-चार (तगादा), 2011, पृ. 20

मार्टिन विक्रमसिंह, मार्टिन विक्रमसिंह केटि कता एकतुव, (विनोदास्वादय) 2012 पृ. 52

मार्टिन विक्रमसिंह, मार्टिन विक्रमसिंह केटि कता एकतुव, (वहल्लु) 2012 पृ. 109

मार्टिन विक्रमसिंह, मार्टिन विक्रमसिंह केटि कता एकतुव, (धातु कोलाहलय) 2012 पृ. 128

मार्टिन विक्रमसिंह, मार्टिन विक्रमसिंह केटि कता एकतुव, (अहिंसावादिया) 2012 पृ. 510

मार्टिन विक्रमसिंह, मार्टिन विक्रमसिंह केटि कता एकतुव, (बडगिन्न) 2012 पृ. 481

मार्टिन विक्रमसिंह, मार्टिन विक्रमसिंह केटि कता एकतुव, (मुदियान्से मामा) 2012 पृ. 280

रवीन्द्र कालिया, संपादक, प्रेमचंदः किसान जीवन संबंधी कहानियाँ (सुजान भगत), 2012, पृ. 35

रवीन्द्र कालिया, संपादक, प्रेमचंदः किसान जीवन संबंधी कहानियाँ (पूस की रात), 2012, पृ. 22

वही, पृ. 24

प्रेमचंद, प्रेमचंद की संपूर्ण कहानियाँ (अलगोझा), पृ. 04

डाॅ कमल किषोर गोयनका, प्रेमचंदः देषप्रेम की कहानियाँ (पत्नी से पति), 2008, पृ. 124

वही, पृ. 125

मार्टिन विक्रमसिंह, मार्टिन विक्रमसिंह केटि कता एकतुव, (धातु कोलाहलय) 2012 पृ. 127

मार्टिन विक्रमसिंह, मार्टिन विक्रमसिंह केटि कता एकतुव, (हॅंद साक्कि कीम) पृ. 312

मार्टिन विक्रमसिंह, मार्टिन विक्रमसिंह केटि कता एकतुव, (गॅहॅनियक) पृ. 748

मार्टिन विक्रमसिंह, मार्टिन विक्रमसिंह केटि कता एकतुव, (हिस्कबल) 2012 पृ. 747

मार्टिन विक्रमसिंह, मार्टिन विक्रमसिंह केटि कता एकतुव, (उपासकम्मा) 2012 पृ. 628

वही, पृ. 627

मार्टिन विक्रमसिंह, मार्टिन विक्रमसिंह केटि कता एकतुव, (पव्कारयाट गल गॅसीम) पृ. 569

Downloads

Published

2017-08-31

How to Cite

Rajapaksha, N. K. (2017). ILLUSTRATION AND RHETORIC WITHIN THE STORIES OF PREMCHAND AND SRI LANKAN STORYTELLER MARTIN WICKRAM SINGH. International Journal of Research -GRANTHAALAYAH, 5(8), 223–227. https://doi.org/10.29121/granthaalayah.v5.i8.2017.2217