HISTORY OF INNOVATION IN MUSIC, WITH REFERENCE TO DHRUPAD SINGING STYLE

संगीत में नवाचार का इतिहास, ध्रुपद गायन शैली के सन्दर्भ में

Authors

  • Pro. Sharmila Taylor Music Department, Vanasthali Vidyapeeth
  • Kamna Sisodia Music Department, Vanasthali Vidyapeeth

DOI:

https://doi.org/10.29121/granthaalayah.v3.i1SE.2015.3406

Keywords:

इतिहास, प्रकृति, शास्त्रीय संगीत

Abstract [English]

Changing the tradition of history is a natural process of nature. In the context of the Dhrupad singing style in the Indian classical music world, if we take a historical view, the practice of singing Dhruva and Prabandha songs before this style was prevalent. The ritual form of Dhruva songs is found in Sanskrit drama texts from pre- to late India. Dhruva has an important place in terms of song composition.
Even in the exorcisms used in the puvarang before the Natyarambha, the Dhruvas have special importance due to the use of musical instruments. Originally, the verses of songs which are used within the play are called Dhruva to make those situations intensified or to intensify the character of the characters in various situations of the play. They are also related to the lyricists due to their use of various parts of the lyricists.


इतिहास की परम्परा में परिवर्तन होना प्रकृति की स्वाभाविक प्रक्रिया है। भारतीय शास्त्रीय संगीत जगत में ध्रुपद गायन शैली के सन्दर्भ मं हम ऐतिहासिक दृष्टि डालें तो इस शैली के पूर्व ध्रुवा एवं प्रबन्ध गीतों को गाने का प्रचलन था। ध्रुवा गीतों की परम्परा का क्रियात्मक रूप भरत के पूर्व से लेकर परवर्ती संस्कृत नाटक ग्रंथों में पाया जाता है। गीत रचना की दृष्टि से ध्रुवा का महत्त्वपूर्ण स्थान है।
नाट्यारम्भ से पहले पूर्वरंग में प्रयुक्त बहिर्गीतों में भी ध्रुवाएं वाद्यप्रयोग की उपरंजक होने के कारण विशेष महत्व रखती हैं। मूलतः नाट्य की विभिन्न परिस्थितियों में रसानुभूति करा कर उन परिस्थितियों को तीव्र बनाने अथवा पात्रों के चरित्र को उभारने के लिए जिन छन्दोबद्ध गीतों का प्रयोग नाट्य के भीतर किया जाता है वे ध्रुवा कहलताी है। गीतकों के विभिन्न अंगों का इनमें प्रयोग होने के कारण ये गीतकों से भी सम्बन्ध है।

Downloads

Download data is not yet available.

References

कुमार, डाॅ. विजय, भारतीय संगीत में शुष्काक्षरों के प्रयोग की परम्परा, नैतिक प्रकाषन, गाजियाबाद (उ.प्र.), 2013

चैधरी, डाॅ. सुभद्रा, भारतीय संगीत में ताल और रूप विधान, कृष्णा ब्रदर्स, महात्मा गांधी मार्ग, अजमेर, 1984

संगीत कला विहार, जनवरी 1996, अखिल भारतीय गांधर्व महाविद्यालय मण्डल, महाराष्ट्र

परांजपे डाॅ. शरच्चन्द्र श्रीधर, संगीत बोध, मध्य प्रदेष ग्रंथ अकादमी, भोपाल, 1972.

बांगरे, डाॅ. अरूण, ग्वालियर की संगीत परम्परा, कनिष्क पब्लिषर्स, डिस्ट्रीब्यूटर्स, नई दिल्ली, 1996

बनर्जी, डाॅ. असित कुमार, हिन्दुस्तानी संगीतः परिवर्तनषीलता, शारदा पब्लिषिंग हाउस, दिल्ली 1992.

सिन्हा, डाॅ. ज्योति, संगीत सारांष, आॅमेगा पब्लिकेषन्स, न्यू दिल्ली, 2012

तैलंग, डाॅ. मधुभट्ट, ध्रुपद गायन परम्परा, जवाहर कला केन्द्र जयपुर, 1995

शर्मा, डाॅ. भगवतीलाल, मान पदावली, संगीत।

Downloads

Published

2015-01-31

How to Cite

Taylor, S., & Sisodia, K. (2015). HISTORY OF INNOVATION IN MUSIC, WITH REFERENCE TO DHRUPAD SINGING STYLE: संगीत में नवाचार का इतिहास, ध्रुपद गायन शैली के सन्दर्भ में. International Journal of Research -GRANTHAALAYAH, 3(1SE), 1–3. https://doi.org/10.29121/granthaalayah.v3.i1SE.2015.3406