PHILOSOPHICAL ROLE OF RANGO IN JAINISM
जैन धर्म में रंगो की दार्शनिक भूमिका
DOI:
https://doi.org/10.29121/granthaalayah.v2.i3SE.2014.3599Keywords:
जैन धर्म, रंग, वस्तुAbstract [English]
Rango has its own unique world. 'Rang' gives meaning to words, objects and reflects them. Only through colors, the properties and expressions of words, words can be easily understood. The color itself holds many meanings. In the absence of colors, the painting ceases to exist. Color is an important means of expressing emotions. It is necessary to take special care of stone characters in sculpture as well. The religious area also could not remain untouched by the symbolism of colors. Philosophical sentiments are also expressed in Jainism through the symbolism of Rango. Color is a unique pool of many emotions. Five colors have predominated in Jainism. White, red, yellow, blue or green, black. These three main colors are also red, blue and yellow. Different colors are formed by different proportional mixtures of these. These colors also have a prominent place in the fields of happiness, prosperity and medicine.
In the picture book of Vishnu Dharmottara Purana, there are five main colors of white, red, yellow, blue and black. The importance of these five colors is in the character of Panchaparmeshthi varna, Tirthankar varna, hetleshya and flag. These five colors have contributed significantly to our internal and external development.
रंगो का अपना अनूठा संसार अपनी भाषा होती है। ‘रंग’ शब्दों, वस्तुओ को अर्थ प्रदान कर उन्हे प्रतिबिम्बित करते है। रंगो के द्वारा ही वस्तु, शब्दों के गुण व भावों को आसानी से समझा जा सकता है। रंग अपने आप में अनेक अर्थो को समाये रहता है। रंगों के अभाव में चित्रकला का अस्तित्व ही समाप्त हो जाता है। भावों को व्यक्त करने का रंग महत्वपूर्ण साधन है। मूर्तिकला में भी प्रस्तर वर्ण का विशेष ध्यान रखना आवश्यक है।धार्मिक क्षेत्र भी रंगो की प्रतीकात्मकता से अछूता न रह सका। जैन धर्म में दार्शनिक भावनाओं को रंगो की प्रतीकात्मकता द्वारा भी व्यक्त किया है। रंग अनेक भावनाओं का अनूठा पुंज है। जैन धर्म में पांच रंगों की ही प्रधानता रही है। श्वेत, लाल, पीला, नीला या हरा, काला। लाल, नीला और पीला ये तीन प्रधान रंग भी है। इन्हीं के भिन्न-भिन्न अनुपातिक मिश्रण से अन्य रंग बनते है। इन रंगो का सुख, समृद्धि और चिकित्सा के क्षेत्र में भी प्रमुख स्थान है।
‘विष्णु धर्मोत्तर पुराण के चित्र सूत्र में भी श्वेत, लाल, पीला, नीला व काला पाँच प्रकार के प्रमुख रंग बतायें है। पंचपरमेष्ठी वर्ण, तीर्थकर वर्ण, षट्लेश्या व ध्वज के वर्ण में इन्ही पाँच रंगो की महत्वता है। इन पांचो रंगो का हमारे आन्तरिक एवं बाह्य विकास में महत्वपूर्ण योगदान है।
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