Article Type: Research Article Article Citation: Dr. Archana
Rani, and Apeksha Choudary. (2021). CONTEMPORARY LANDSCAPE IN TRADITIONAL GOND
ART. International Journal of Research -GRANTHAALAYAH, 9(1), 169-175. DOI: https://doi.org/10.29121/granthaalayah.v9.i1.2021.3047 Received Date: 01 January 2021 Accepted Date: 31 January 2021 Keywords: गोंड कला जनगण सिंह श्याम मयंक श्याम जापानी श्याम समकालीन वेंकेटरमन सिंह
श्याम English: Indian Folk art mainly depicts social and
cultural aspects of trible society. Gond Painting is developed by Gond
Community which is a large trible community in India and hence named after the
same. “This art is quite famous in central India. Traditionally Gond
Art were painted on walls and floors during weddings and on auspicious
occasions. With time the art witnessed developments and now it is seen on
textile, canvas, clothes, articles and valuable artifacts. Last decade
witnessed a boom in the popularity of Gond Art. Jangan Singh Shyam who is
called the father of Gond Art is one such artist who introduced Gond art at
world platform. The presented research paper highlights the initial and
contemporary changes which were introduced by Jangan Singh and his descendants
Mayank Shyam (Son) and Japani Shyam (Daughter) and famous gond artist Vanket
Raman Singh Shyam in their Gond Paintings under the effects of the surroundings
with Time. Hindi: भारतीय
लोक कलाएँ मुख्यतः
आदिवासी समाज के
सामाजिक और सांस्कृतिक
स्वरूप को दर्शाती
है। गोंड चित्रकला
भारत के विशाल
जनजातीय गोंड समुदाय
द्वारा विकसित
की गयी है। अतः
इस कला को यह नाम
गोंड जनजाति से
मिला। यह कला मध्य
भारत की एक विख्यात
कला है। अपने परम्परागत
रूप में गोंड चित्र
दीवारों और धरातल
पर शादी-विवाह
और अन्य शुभ अवसरों
पर सृजित किये
जाते थे। अब समय
के साथ उनके माध्यम
में परिवर्तन दिखाई
देने लगा और ये
कैनवास, पेपर, कपड़े,
उपयोगी एवं सजावटी
वस्तुओं पर भी
बनायी जाने लगी
है। पिछले एक दशक
में इस कला को अत्यधिक
प्रसिद्धि प्राप्त
हुई है। गोंड कला
के पितामह कहे
जाने वाले जनगण
सिंह श्याम एक
ऐसे पहले कलाकार
है जिन्होनेगोंड
कला को विश्व स्तर
पर परिचित कराया।
प्रस्तुत शोध पत्र
में गोंड कला के
प्रणेता श्री जनगण
सिंह श्याम और
उनकी कला की संरक्षक
पीढी पुत्र मयंक
श्याम व पुत्री
जापानी श्याम तथा
प्रसिद्ध चित्रकार
वेंकेटरमन सिंह श्याम
के चित्रों में
पारम्परिक और समसामयिक
परिवेश के अनुरूप
आये बदलाव के संदर्भ
से प्रस्तुत करने
का प्रयास किया
है।
1.
प्रस्तावना
प्रस्तावना
- भारतीय कला के
इतिहास में विभिन्न
जनजातीय समुदाय
का योगदान सराहनीय
रहा है जैसे - महाराष्ट्र
की वर्ली, बिहार
की मधुबनी, राजस्थान
फड चित्रकला, आदिवासी
भील कला और गोंड
कला आदि। गोंड
समुदाय मध्यप्रदेश
के पहाड़ो में विकसित
हुई जनजाति है
जिस कारण उनके
चित्रों में पेड़- पौधों, जीव-जन्तुओं
का चित्रण सबसे
अधिक किया गया
है। भारतीय संस्कृति
के अनोखे रंग विभिन्न
जनजातीय समुदाय
के माध्यम से भारत
के कोने-कोने में
फैले हुए हैं।
उन्हीं में से
एक गोंड समुदाय
मध्यप्रदेश और
छत्तीसगढ़ में सबसे
अधिक पाये जाते
हैं। जनजातीय समाज
आपसी प्रेम, सहयोग
में अत्यधिक विश्वास
रखते है। द्रविडयन
’शब्द’ ’कोंड’ से निकला
यह शब्द ’गोंड’ कहलाया।
द्रविडयन शब्द
कोंड का शाब्दिक
अर्थ ’’वनाच्छित
पर्वतीय क्षेत्र’
अर्थात् वनों से
घिरे पर्वतीय क्षेत्र
के निवासी गोंड
कहलाये। विंध्याचल
पर्वत श्रेणी और
सतपुडा के उपजाऊ
क्षेत्र के इन
निवासियों का यह
क्षेत्र अत्यन्त
प्राचीन है जिसे
लगभग चैदहवी शताब्दी
में गोंड राजाओं
द्वारा पोषित किया
गया। [1] इन कृतियों
में आदिवासी कलाकारों
ने सरल रूपों, सहज
रेखाओं एवं चटख
रंगों के संयोजन
से अपनी भावनाओं
की अभिव्यक्ति
की है। ये कृतियाँ
देखने में आकर्षक
तो हैं ही साथ ही
अपने अन्दर गूढ
अर्थो को समेटे
हुए हैं। चित्रों
में प्रकृति का
वास्तविक नैसर्गिक
सौन्दर्य, जीवन
का उल्लास, ताजगी
एक ओज और जीवन प्रवाह
दृृष्टिगोचर होता
है। गोंड कृतियाँ
भारतीय जनजातीय
समाज की संस्कृति
के उल्लासपूर्ण
और रंगों से मेरे
परिवेश का रचनात्मक
दृश्य प्रस्तुत
करती है। गोंड
जनजाति का उद्भव
नवीं शताब्दी के
लगभग माना जाता
है। गोंड राजाओं
का वर्चस्व चैदहवीं
शताब्दी से सोलहवीं
शताब्दी तक गोंडवाना
क्षेत्र के अन्तर्गत
आने वाले क्षेत्रों
पर रहा। [2] गोंड समुदाय
भारत के प्रभावी
जनजातीय समुदाय
में से एक समुदाय
रहा। जिन्होंने
मध्य भारत पर प्रभावी
राजाओं के रूप
में शासन किया।
प्रभावी राजाओं
में संग्राम शाह,
दलपति शाह, हृदयशाह
का नाम विशेष रूप
से उल्लेखनीय है
और गोंड रानी दुर्गावती
के सुशासन और वीरता
की कहानियाँ आज भी गोंड लोगों
में प्रचलित हैं।
गोंड राजाओं ने
अनेक किलों और
जलाश्यों का निर्माण
कराया। हृदयशाह
ने अनेक शिलालेखों
का निर्माण करा
गोंडों के गौरवशाली
इतिहास को संरक्षित
किया। इस समय के
कोई लिखित साक्ष्य
उपलब्ध नहीं हैं।
[3] मुगल शासन
के आने से गोंड
राजवंश क्षीण होता
चला गया, जिससे
गोंड जनो को जंगली
क्षेत्रों में
प्रस्थान के लिए
विवश होना पड़ा
और गोंड राजवंश
पूर्णतः समाप्त
हो गया। आदिवासी
गोंड समाज में
कला के विकास क्रम
के प्राचीन लिखित
साक्ष्य उपलब्ध
नहीं है सम्भवतः
गोंड लोककला का
ग्रामीण समाज में
ही अस्तित्व रहा
होगा। गोंड किलों,
जलाश्यों, और शिलालेखों
का अस्तित्व तो
रहा, किन्तु कला
का समुचित विकास
नहीं रहा और न ही
उन्हें राजघरानों
का संरक्षण मिला।
बारह सौ वर्ष पुरानी
इस कला में पिछले
तीन दशकों में
विस्तार देखने
को मिला। गोंड
कला का सफर अत्यन्त
प्राचीन नही हैं
अपितु लगभग पचास
वर्षों से ही यह
कला अस्तित्व में
आयी। शोध पत्र
का साहित्य अवलोकन
-प्रस्तुत शोध
पत्र के लेखन से
पूर्व कुछ पूर्वगामी
पुस्तकों का अध्ययन
किया गया है। जिनमें
आरोगिता दास ’’जनगण
सिंह ष्याम द एनचेन्टेड
फॉरेस्ट ’ ,डॉ. कपिल
तिवारी ’’सम्पदा
मध्यप्रदेष की
जनजातीय सांस्कृतिक
परम्परा का साक्ष्य’’
तथा महावर निरंजन
’’समग्र गोंड जनजातीय
सांस्कृतिक अध्ययन’’
इत्यादि पुस्तकों
का विस्तृत अध्ययन
किया गया है और
चित्रकार मयंक
श्याम, जापानी
श्याम व वेंकटरम
सिंह श्याम के
साक्षात्कार के
आधार पर प्रस्तुत
शोध पत्र को तैयार
किया गया है। शोध-पत्र
का प्रारूप- प्रस्तुत शोध-पत्र
में जनगण सिंह
श्याम, और उनकी
दो सन्तानों- मयंक
श्याम, जापानी
श्याम और चित्रकार
वेंकेटरमन सिंह
श्याम एवं की कला
शैली पर प्रकाश
डाला गया है। अतः
गोंड कला का इतिहास
एवं प्रादुर्भाव
बताते हुए, परम्परागत
कला का वर्णन जनगण
सिंह श्याम के
विशेष सन्दर्भ
में किया गया है।
तदुपरान्त समकालीन
कला संदर्भ में
मयंक श्याम एवं
जापानी श्याम और
वेंकेटरमन सिंह
श्याम की कला-शैली
का वर्णन किया
गया है। गोंड कला
का परिचय- गोंड कला अपने
अनोखे लोक कलात्मक
सौन्दर्य के लिए
प्रसिद्ध है जिसमें
ये कला उपासक आदिवासी
लोक जीवन और उनके
सांस्कृतिक परिवेश
को विविध नमूनों
और ओजस्वी रंगों
में रंगकर अभिव्यक्त
करते है। गोंड
कला में प्रस्तुत
ये नमूने आदिवासी
जीवन से जुड़े हुए
है। [4] जनजातीय परिवेश
से सम्बन्धित ये
नमूने अत्यधिक
रचनात्मकता के
साथ सृजित किये
गये है। गोंड कला
के प्रत्येक पहलू
का अध्ययन करने
के लिए सर्वप्रथम
प्रमुख गोंड कलाकारों
के साक्षात्कार
द्वारा गोंड कला
के वास्तविक स्वरूप
व गहरे मर्म को
समझने का प्रयास
किया। गोंड कला
के अध्ययन हेतु
मध्यप्रदेश, भोपाल
में वर्षा से प्रयासरत्
कलाकारों की कृतियों
का गहन अध्ययन
किया गया। अध्ययन
को सरल बनाने के
लिए सर्वप्रथम
परम्परागत गोंड
कलाकृतियाँ और
समसामयिक विषयक
कृतियों के रूप
में गोंड चित्रों
का विभाजन किया
गया। शोध-पत्र
को सफल बनाने के
लिए जनगण सिंह
श्याम के परम्परागत
चित्रों के साथ-साथ
समय के साथ उनके
बदलते स्वरूप और
उनकी पीढ़ी के सृजनशील
कलाकार मंयक श्याम,
जापानी श्याम और
वेंकटरम सिंह श्याम
के चित्रों का
तुलनात्मक अध्ययन
किया गया। नयी
पीढी के इन गोंड
कला प्रेमियों
ने कला की प्रत्येक
छोटी-छोटी बारीकियों
को पिता के सान्निध्य
में ग्रहण किया।
परन्तु दुर्भाग्यवश
यह साथ कुछ समय
ही रह पाया। मंयक
श्याम व जापानी
श्याम ने अपनी
परम्पराओं से जुडे
हुए आज के समकालीन
परिदृश्य में भी
उन बारिकियों को
एक नवीन परिवेश
में अभिव्यक्त
करने का प्रयास
किया। परम्परागत
चित्रों के अध्ययन
हेतु जनगण सिंह
श्याम, जैसे वरिष्ठ
कलाकार के साथ
मंयक श्याम, जापानी
श्याम और वेंकटरम
सिंह श्याम जैसे
कलाकारों की कृतियों
का समसामयिक सन्दर्भ
में गहराई से अध्ययन
किया गया। विषय
के प्रभावी अध्ययन
के लिए विभिन्न
कला संग्रहालय
एवं कला दीर्घाओं
का भ्रमण कर अध्ययन
सामग्री एकत्र
की गयी। बहुआयामी
गोंड कला - ग्रामीण परिवेश
से संबंधित गोंड
समाज में जिस प्रकार
स्थानीय नृत्य,
लोकगीत, लोक संगीत,
स्थापत्य, मूर्ति
एवं परम्परागत
कथाओं के वाचन
की परम्परा के
साथ-साथ जीवन की
प्रत्येक उपयोगी
वस्तु के निर्माण
की कला का विकास
देखा जा सकता है,
ठीक उसी प्रकार
घर के धरातल, दिवारों,
दरवाजे, खिडकी
पर नक्काशी व कला
के अद्भुत नमूने
देखने को मिलते
है। ये उनकी धार्मिक,
संास्कृतिक स्वरूप
एवं प्रकृति से
प्रेम का परिचय
देते हैं। परम्परागत
रूप में गोंड समाज
में जिस कला के
स्वरूप का विस्तृत
रूप देखा जा सकता
है। उसमें पारम्परिक
गीत, नृत्य और कला
का नाम सर्वाेपरि
है। गोंड जिस प्रकार
धर्म, संस्कृति
और प्रकृति को
जीवन का अहम् अंग
मानते है, उसी प्रकार
यह परम्परागत चित्रकारी
भी उनके जीवन का
अभिन्न अंग है।
गोंड परम्पराओं
के अनुसार दिवारों
पर बनाये जाने
वाले चित्रों को
’भिन्ति चित्र’ या ’चिन्हा
बाना’ कहते
है तथा घर के धरातल
को सजाने के लिए
ज्यामितीय नमूनों
का प्रयोग किया
जाता है जिन्हे
’दिग्ना’ कहा गया।
[5] गोंड कलाकारों
द्वारा दिग्ना
नमूनों का प्रयोग
भी देखने को मिलता
है। परम्परागत
गोंड चित्रों में
देवी-देवताओं व
प्रकृति के चित्रण
में ये नमूने देखने
को मिलते है। गोंड
चित्रों में प्रयुक्त
होने वाले नमूने
अत्यन्त आकर्षक
होते हैं जो सहज
ही दृष्टा की दृष्टि
को आकर्षित कर
लेते है। गोंड कला
का विकास-वैभव- गोंड कला का
यह आकर्षण आज इस
कला की मुख्य विशेषता
बन गया है। गोंड
कला को इस स्तर
तक पहुँचाने का
श्रेय परधान जनजाति
के चित्रकार जनगण
सिंह श्याम को
जाता है। उन्होने
अपनी इस कला को
मेहनत, लगन एवं
सृजनशील प्रतिभा
से पोषित किया।
चित्रकार जगदीश
स्वामीनाथन ने
जनगण सिंह श्याम
की कला प्रतिभा
को पहचाना और उन्होनें
’जनगण कलम’ नाम से
एक नवीन कला शैली
को खोज निकाला।
यह कला मध्य भारत
अर्थात् मध्यप्रदेश
के मण्डला, डिण्डौरी
जिले के पाटनगढ़
में अपने उज्ज्वल
भविष्य की नींव
नवगठित कर रही
थी। ग्राम पाटनगढ़
के भ्रमण के समय
जे0 स्वामीनाथन
ने गांव की दिवारों
पर बनी कलाकृतियों
को देखा, जिन्हें
देखकर वे अत्यधिक
प्रभावित और उत्सुक
हो गये। ये कलाकृतियाँ
गांव के कुछ लोगो
और महिलाओं द्वारा
बनायी गयी थी।
इन कलाकृतियों
को कलाकार जनगण
सिंह श्याम ने
बनाया था। उन्होने
अनोखे नमूनो द्वारा
अपने आदिवासी देवी-देवताओं,
पशु-पक्षियों,
जलीय जीवों और
पेड़-पौधों का चित्रण
किया और कला रसिका
को एक नवीन कलाविधा
से परिचित कराया।
उनकी चित्रकारी
से प्रभावित हो
जे0 स्वामीनाथन
ने उन्हें भोपाल
के भारत भवन में
आमन्त्रित किया
और कलाकृतियों
के सृजन हेतु प्रेरित
किया। अपनी कलात्मक
प्रतिभा को अभिव्यक्त
करने के लिए उन्होंने
अनेक माध्यमों
में काम किया।
पहले जो चित्र
उन्होंने दिवारों
पर बनाये, अब वे
ही चित्र दिवारांे
से उठकर कागज और
कैनवास पर आ गये।
उन्होंने अपने
मन-मस्तिष्क पर
बने चित्रों को
दिवारों, कागज
और कैनवास पर एक
नवीन चेतना प्रदान
की। भारत भवन, भोपाल,
विधान सभा, भोपाल
की दिवारों को
अपनी सृजनात्मक
प्रतिभा द्वारा
सजीव बना दिया।
सन् 1989 में पेरिस
में आयोजित प्रदर्शिनी
में उनके चित्रों
को अत्यधिक सराहना
मिली, जो धरा के
जादूगर ’मेजिश्यन
ऑफ द अर्थ’ नाम
से आयोजित हुई।
गोंड कला के लिए
अन्तर्राष्ट्रीय
स्तर पर आयोजित
होने वाली यह प्रथम
प्रदर्शनी थी जिसने
विश्व के कला विशेषज्ञों
को भी आकर्षित
किया। सन् 1989 में
टोकियो के मिथिला
म्यूजियम में आयोजित
कला प्रदर्शनियाँ
में उनके कार्य
को अत्यधिक प्रसिद्धि
प्राप्त हुइ्र्र।
[6] इस प्रकार
उनके चित्रों की
प्रदर्शिनियाँ
देश-विदेश के अनेक
संग्रहालयों एवं
कला विथिकाओं में
सम्पन्न र्हुइं
और गोंड कला का
नाम भारतीय कला
के इतिहास में
स्वर्ण अक्षरों
में अंकित हो गया। 2.
जनगण सिंह श्याम, मयंक श्याम, जापानी श्याम और वेंकटरम सिंह श्याम की कलाकृतियों में समकालीन परिदृश्य
कला समाज का
आईना होती है।
यह विविध रूपों
में ढलकर समाज
और संस्कृति के
अनोखे स्वरूप का
रसपान कलाकार और दृष्टा
को कराती है। मन
की गहराईयों एवं
निस्वार्थ भाव
से निर्मित कृति
हृदय में भावनाओं
का स्पन्दन करती
है। ऐसी रचनात्मकता
एवं कलात्मकता
से विकसित कृतियों
का सृजन जनगण सिंह
श्याम द्वारा किया
गया। जनजातीय समाज
की परम्पराओं,
संस्कृति, प्रकृति
को नवीन कल्पनाओं
के रंग में सहेजकर
अपनी उत्कृष्ट
सोच का परिचय दिया।
गोंड आदिवासी समाज
में विवाह और उत्सवों
के अवसर पर बनाये
जाने वाले भिन्ति
चित्रों का सौन्दर्य
वास्तविक अर्थों
में अत्यन्त प्रभावी
ढंग से होता रहा
है। जनगण सिंह
श्याम ने भित्तियो
पर अत्यन्त ओजस्वी
चित्रों का अंकन
किया। जिनमे तत्कालीन
आदिवासी परिवेश
को एक भव्य सोच
के साथ चित्रतल
पर उतारा। अपने
समय और आस-पास के
सामाजिक और सांस्कृतिक
परिदृश्य को उन्होंने
रेखाओं, बालसुलभ
रूपों और चटख रंगों
में रंगकर सुखानुभूति
की भावना से प्रेरित
हो रचा। उनकी एक
कृति (फुलवारी
देवी) में आदिवासी
देवी का गोंड पारम्परिक
चित्रांकन द्वारा
प्रभावशाली अंकन
किया है। छोटी-छोटी
बिन्दुओं द्वारा
रेखाओं का आभास,
दिग्ना नमूने से
प्रभावित हो उन्होंने
स्वभाविक, सरल
व स्पष्ट चित्रण
किया है। ये चित्र आदिवासी
परम्परागत चित्रकला
की श्रेष्ठ अभिव्यक्ति
है। यह चित्र किसी
अनुकरण या नकल
से भिन्न पूर्णतः
मौलिक सृजन है।
चित्र में सतही
रंगों को जिस सृजनशीलता
के साथ उन्होंने
प्रयोग किया है
वे आश्चर्यचकित
कर देता है। रंगों
को कई पूर्णतः
में एक नयापन देने
का प्रयास किया
है। लाल, पीले, हरे,
नीले, सफेद और काले
रंग की बिन्दुओं
द्वारा उनमे एक
आकर्षण भर दिया
है। उनकी कृतियाँ
आदिवासी सांस्कृतिक
परिवेश का अत्यन्त
सादे ढंग से अन्तर्मन
द्वारा किया गया
चित्रण है। एक
ऐसी ही अन्य कृति
सन् 1989 में बनायी
जिसमे में मरा
देव को काली स्याही
से बलपूर्वक खीची
छोटी-छोटी रेखाओं
द्वारा सजाया गया
है। जनगण सिंह
श्याम की आरम्भिक
कृतियों में आदिवासी
देवो, समाज, संस्कृति
और प्रकृति का
प्रभाव दिखाई देता
है। इन चित्रों
को पोस्टर रंग
के साथ बनाया गया
है। पाटनगढ में
रहते समय वे इन
चित्रो को मिट्टी
व प्राकृतिक रंगो
द्वारा दिवारों
पर बनाते थे और
भोपाल आने के उपरान्त
उसमे परिवर्तन
दिखाई देने लगा।
पोस्टर रंग और
स्याही का प्रभाव
उनकी कृतियों में
प्रयोग होने लगा।
उनकी कृतियों में
परम्पराओं को एक
सूत्र में पिरोकर
नवीन संकल्पना
के साथ प्रस्तुत
किया गया है। जनगण
सिंह श्याम की
कृतियों में परम्पराओं
के समन्वय के साथ
गत्यात्मक प्रवाह
दिखाई देता है।
यह समय के साथ उनकी
रचनााकृतियों
में दृष्टिगोचर
होता है। कोई भी
कला अपनी परम्पराओं
से जुड़े बिना समृद्ध
नहीं हो सकती है,
परम्पराएँ उन्हें
अस्तित्व, मूल्य
एवं पूर्णत्व प्रदान
करती है। जो जनगण
सिंह श्याम की
कृतियों में दिखाई
देता है। विदेशों
में भ्रमण के उपरान्त
उनकी कृतियों में
पर्याप्त बदलाव
होता रहा। विदेशो
के विभिन्न संग्रहालयों
जैसे मिथिला म्यूजियम
में सन् 1999 में हवाई
जहाज की बनी आकृति
में समय व परिवेश
की परिवर्तनशीलता
दिखाई देती हैं
यह कृति
कला शैली के परिवर्तन
को ही नही, अपितु
अपना एक परिष्कृत
रूप उद्घाटित करता
है। [7] ये परम्पराओं
के साथ जुड़े है
और आधुनिकता को
भी अपना रहे हैं।
गोंड चित्रकार
किसी आधुनिक प्रवृत्ति
का अंधानुकरण नहीं
कर रहे हैं। जिससे
इनकी मौलिकता और
प्रभाव आज भी बना
हुआ है। ये कलाकृतियाँ
प्रत्येक वर्ग
के दर्शकों को
अपनी ओर खींचने
का सामथ्र्य रखती
है। जनगण सिंह
श्याम ने माध्यम
में नित-नये प्रयोग
किये। उन्होंने
मिटट्ी से बने
उभारदार भित्ति
चित्र, पेपर, कैनवास,
स्क्रीन प्रिटिंग,
लिथोग्राफी, इंचिग
में भी काम किया।
उनके द्वारा काली
स्याही से बनी
कलाकृतियों से
उनकी उत्कृष्ट
व प्रयोगधर्मी
सोच का परिचय मिलता
है।
मयंक श्याम
और जापानी श्याम
की कृतियांे में
समकालीन परिदृश्य
का अनुभवात्मक
रूप में परिपक्व
चित्रण किया गया
है, जो उन्होंने
अल्पायु में ही
अपने पिता से सीख
लिया। यह वास्तव
में अनोखा है, अद्भुत
है। एक ओर मंयक
श्याम की कृतियाँ
आदिवासी परम्पराओं
को अभिव्यक्त कर
रही हैं। एक और
’’वृक्ष रूपी देव
शृंखला और ’’बाना
रूपी बड़ा देव’’ जैसी कृतियाँ
हैं। वहीं, दूसरी
ओर ’द ट्रेन, द बस,
एअर, शहरी जीवन
आदि कला रचनाओं
में आज की आधुनिकता
को चटख रंगों में
रंगकर नवीन चैतन्य
रूप प्रदान किया
है।
मयंक श्याम
द्वारा सृजित द
ट्रेन, द बस, द एअर,
और अन्य अनेक कलाकृतियों
में शहरी जीवन
की जीवनशैली का
अत्यन्त प्रभावी
चित्रण प्रस्तुत
किया गया है। उन्होंने
शहरी जीवन शैली
के बढ़ते प्रभाव
से प्रकृति के
होते ह्यस की और
एक व्यंगात्मक
संकेत किया
है। [8] अपने चित्रों
में उन्होंने परम्परागत
स्वरूप को बनाये
रखा परन्तु समसामयिक
बदलाव को भी स्वीकार
कर काम में नवीनता
को लाने
का प्रयास किया।
प्रकृति को नये
रूप में ढालकर
प्रस्तुत किया
पृथ्वी, जल, पक्षियों
व पौधों को चित्रों
में एक साथ बांधकर
चित्रित किया। जापानी श्याम
की कृतियों में
दहेज, सुनामी जैसे
ज्वलंत विषय के
साथ-साथ परम्पराओं
में रंगे आज की
नारी के मनोभावों
व मनोदशाओं का
चित्रण उन्होंने
किया है। उनकी
एक कृति ’विवाह
मण्डप’ में परम्परागत
विषय को बड़ी रचनात्मकता
के साथ अभिव्यक्त
किया गया है। चित्रकार
जापानी श्याम ने
महिलाओं के मनोभावों
को पढ़कर उनके प्रभावी
चित्रों का सृजन
किया। अपनी माँ
के संघर्ष को अनुभवात्मक
रूप में सहजे मन
ने अनेक हृदयस्पर्शी
चित्रों की रचना
उन्होने कर डाली।
रंगीन चित्रों
के साथ-साथ काले
धरातल पर सफेद
रंग से चित्रण
कर एक आधुनिक सोच
को परम्परागत स्वरूप
में ढालकर दिखाया।
उन्होंने गहरे
धरातल पर सफेद
रंग से बहुत चित्रण
किया जिसमें उन्होने
के अंधकार व नकारात्मकता
से किस प्रकार
आशा के उजाले का
अनुभव किया जाता
है।[9] उसका अद्भुत
चित्रण किया है।
जापानी जी ने महिला
प्रधान चित्रों
को अत्यन्त ऊर्जा
के साथ चित्रित
किया है। जिसकी
प्रेरणा व अपनी
माँ को मानती है।
यह कृतियाँ उनकी
स्वच्छन्दतावादी
प्रवृन्ति का चित्रण
प्रस्तुत करती
है। चित्र सं0 5: चित्रकार-
जापानी श्याम,
शीर्षक-सुनामी,
माध्यम- एक्रेलिक
ऑन कैनवास गोंड परम्परागत
चित्रण को आधुनिक
अनवेषणात्मक प्रवृत्ति
के साथ प्रस्तुत
करने वाले चित्रकार
मंयक श्याम व जापानी
श्याम की कृतियाँ
भी आज अर्थात्
समकालीन परिवेश
के अनूठे स्वरूप
को उद्घाटित कर
रही हैं। दोनों
चित्रकारों की
कृतियाँ परम्परागत
तो हैं, ही किन्तु
वर्तमान परिप्रेक्ष्य
को खूब सोच-समझकर
प्रस्तुत कर रही
है। गोंड परम्परागत
कला के अनुरूप
उन्होंने आज का
चित्रण भी किया
है। चित्रकार वेंकेटरमन
सिंह श्याम एक
असाधारण प्रतिभा
के धनी कलाकार
हैं। उन्होंने
मात्र आठ वर्ष
की अल्पायु से
चित्रण कार्य करना
आरम्भ कर दिया
और कोयले व स्लेट
के टुकड़ों से दिवारों
व फर्श पर चित्रकारी
करने लगे। गोंड
कला में नवीनता
एवं विभिन्न प्रयोगों
को अपनाकर उन्होंने
गोंडकला को उपलिब्यों
के शिखर पर पहुँचाया।
विषय-वस्तु, माध्यम
एवं तकनीक में
उन्होंने गोंडकला
का लेकर बहुत प्रभावशाली
काम किया। उन्होंने
गोंड संस्कृति,
परिवेश व प्रकृति
को नये कलेवर में
ढालकर प्रस्तुत
किया। अपनी कृतियों
में प्रकृति, कल्पना
व समसामयिक विषयों
को लेकर एक अनुभवी
सोच का परिचय
दिया। वेंकेट रमन
के शब्दों में
- ’’कोई भी कला अपने
समसामयिक परिवेश
से जुड़े बिना आगे
नही बढ़ सकती, अतः
गोंड कला अपने
आरम्भिक स्वरूप
से ही समकालीन
परिपेक्ष्य को
लेकर आगे बढ़ी जिस
कारण वह आज भी अपने
सर्वोच्च स्थान
बनाये हुए है।
[10]
वेंकटरम सिंह
श्याम ने परम्परागत
चित्रों के विषयों
को लेकर काम किया,
परन्तु अपने आस-पास
के वातावरण,
स्वयं के अनुभवों
को भी उन्होंने
चित्रतल पर उतारा।
समकालीन संदर्भ
में प्रभावशाली
कलाकृतियों का
सृजन किया। उन्होंने
रिक्शा चालको,
गाड़ियों, शहरी
जीवन, देश प्रेम
से संबंधित चित्रों
का निर्माण किया।
हमारे समाज के
सकारात्मक व नकारात्मक
दोनों पहलुओं को
उन्होंने दिखाने
का प्रयास किया।
नर्भया की आवाज
को जन-जन तक पहुँचाने
के लिए बलात्कार
जैसे ज्वलन्त विषय
पर भी चित्रण कार्य
किया। जिसमें मानसिक
विकृति वाले समाज
को उन्होने मगरमच्छों,
भेडियों व सर्पो
के रूप में स्वरूपबद्ध
कर, एक चेतना लाने
का प्रयास किया।
वर्ष 2020 की भयावह
त्रासदी कोविड-19
से सम्बन्धित अनेक
कलाकृतियों का उन्होंने
सृजन किया जिसका
उन्होने हृदय की
गहरी भावनाओं से
चित्रण किया। एक
मजदूर महिला की
प्रसव पीड़ा एवं
उस समाज की दैनीय
दशा को दिखाया
तो दूसरी ओर कोविड-19
से प्रकृति में
आये सकारात्मक
बदलाव को बहखूबी
चित्रतल पर संयोजित
किया। उनकी कृतियाँ
समाज के प्रत्येक
स्वरूप को उद्घाटित
करती है उनका स्वयं
मानना है कि एक
कलाकार की सोच
उन्मुक्त होनी
चाहिए। वह किसी
सीमा में बंध कर
कार्य नहीं सकते।
एक प्रभावी व उन्मुक्त
सोच का कलाकार
ही श्रेष्ठ रचनाकृतियों
का सृजन कर सकता
है। [11] क्यांेकि
मानव की सदैव कुछ
न कुछ नया देखना
व जानना पसन्द
होता है। इसलिए
वह कलाकार के रूप
में हो या दृष्टा
के रूप में नयापन
ही उसे लुभाता
है। उनके चित्रों
में अपार नवीन
सम्भावनाएं दिखाई
देती हैं न केवल
विषय-वस्तु अपितु
माध्यम में भी
उन्होने अनेक प्रयोग
कर गोंड कला को
एक खुली सोच प्रदान
की। उन्होंने एल्युमिनियम,
पेपर मैसी, काँच,
कैनवास, पेपर, सीमेन्ट
की पक्की दिवार
और ऐनिमेशन मूवी
के लिए काम कर गोंड
कला में एक अभिनव
विचारणा को जन्म
दिया। चित्र सं0 8: चित्रकार-
वेंकेटरमन सिंह
श्याम गोंड कलाकारों
ने आदिवासी समाज
से हटकर उड़ते जहाजों,
गाड़ियों, बसों,
रिक्शा चालकों
का प्रभावपूर्ण
चित्रण किया है।
उनकी कृतियों में
अपनी परम्पराओं
की समृद्धशाली
कड़ी दिखाई देती
है तो उनमें एक
नवीनता व आधुनिकता
का भी प्रभावकारी
रूप दिखाई देता
है। जिस कारण उनकी
कला आज भी आधुनिक
कलाकारों की रचनात्मक
व विविधतापूर्ण
कृतियों से कमतर
नहीं है। क्योंकि
उनमें परम्पराओं
का गहरा जुड़ाव
रहा, तो आधुनिकता
के साथ उन्होने
मूल्यपरक कृतियों
का सृजन किया।
जिनका उद्देश्य
मात्र धन अर्जन
न होकर मूल्यों,
सवेंदनाओं, संस्कारो
व मौलिकता के महत्व
को भी स्वीकारना
है यही कारण है
कि उनके द्वारा
विकसित की गयी
कला अब भी नित-नूतन
परिवर्तनों के
साथ आधुनिक विकृति
से भिन्न एक सहज
संवेदना को अभिव्यक्त
कर रही है। जनगण सिंह
श्याम, उनके ज्येष्ठ
पुत्र मयंक श्याम,
पुत्री जापानी
श्याम और वेंकटरम
सिंह श्याम की
कृतियों द्वारा
परम्परागतता धर्म,
संस्कृति व समकालीन
परिवेश का अनूठा
रूप रचने का प्रयास
किया गया है। अपने
पिता से विरासत
में मिली कलात्मक
प्रतिभा को उन्होंने
नवीन कलेवर में
उन्हे संजोकर समकालीन
प्रवृत्तियों
के समक्ष एक मिसाल
के रूप में प्रस्तुत
किया है। उनमें
पारम्परिक मूल्यों
के साथ माध्यमों,
प्रभावों व प्रयोग
द्वारा नयी संभावनाएँ
दिखाई देती हैं।
इन गोंड कृतियों
में वर्तमान परिप्र्रेक्ष्य
के साथ समृद्ध
सांस्कृतिक परम्पराओं
का वर्चस्व है। 3.
निष्कर्ष
उर्पयुक्त
विवरण से स्पष्ट
हो जाता है कि गोंड
कृतियों में एक
मौलिकता, सौन्दर्य
एवं एक गुणात्मकता
है। आज के बदलते
परिवेश के साथ
उनकी कृतियों में
नवीन अन्वेषण व
परम्परा रूपी वृक्ष
की जड़ों की पकड़
दृष्टिगोचर होती
है। ये चित्र कहीं
न कहीं अपनी मौलिक
प्रवृत्ति को अपनाये
हुए है। जिस कारण
यह कला दिन दुगनी
रात चैगुनी विकसित
हो रही है। प्रत्येक
क्षेत्र में उनका
प्रभाव दिखाई दे
रहा है। यह प्रभाव
रंग योजना विषय-वस्तु,
संयोजन सभी दृष्टियों
से दृष्टिगोचर
है। SOURCES OF FUNDINGThis research received no specific grant from any funding agency in the public, commercial, or not-for-profit sectors. CONFLICT OF INTERESTThe author have declared that no competing interests exist. ACKNOWLEDGMENTNone. REFERENCES
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चित्रकार
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श्याम के साक्षात्कार
पर आधारित विवरण,
दिनांक: 31.01.2020
[11]
चित्रकार
वेंकेटरमन सिंह
श्याम के साक्षात्कार
पर आधारित विवरण,
दिनांक: 31.01.2020
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