"IN THE CONTEXT OF PAINTING-MANDALA LEGISLATION IN JAIN CULTURE / RELIGION"

”जैन संस्कृति/धर्म में चित्रकला-मण्डल विधान के विषेष संदर्भ में“

Authors

  • Dr. Nisha Modi Associate Professor, Sociology S.S.L.B. Virgo graduate. College, Indore

DOI:

https://doi.org/10.29121/granthaalayah.v7.i11.2019.3742

Keywords:

मण्डल, विधान, धर्म, संस्कृति, रत्नत्रयी, अष्टद्रव्य, अष्टप्रतिहाय

Abstract [English]

Right from the beginning of creation, the things that man has created to fulfill his needs are his culture - both in tangible form and intangible form. E.g. Housing, clothing practices, thoughts, attitudes, faith, religion, art, etc. With the change of age, today man has entered the technology era but human valuelessness has increased. Humans became restless and criminals. According to the Gita, there was an increase in fortifications. In the country of Mahavira, Buddha and Gandhi, one of the many avenues to come out of this ignorance and darkness - worship and praise, to develop virtues by walking on the path of righteousness. For the development of cultured life in Jain culture and religion, the worship of the divine, the divine, has been said to be the utmost necessity of today's human. In the Chitra Shali, Mandal Vidhan has been formulated to fulfill many objectives in Jain culture. This research paper is based on these circles.


सृष्टी के आरम्भ से ही मनुष्य ने अपनी आवष्यकतओं को पूर्ण करने जिन वस्तुओं का निर्माण किया वह उसकी संस्कृति है - मूर्त रूप और अमूर्त रूप दोनों में। उदा. आवास, वस्त्र व्यवहार, विचार, मनोवृतियाँ, विष्वास, धर्म, कला इत्यादि। काल परिवर्तन के साथ आज मनुष्य प्रौद्योगिकी युग में तो आ गया परंतु मानव मूल्य विहीनता में वृद्धि होती गई। मनुष्य अषांत और अपराधी हो गये। गीता के अनुसार दुर्गुणों में वृद्धि होती गई। महावीर, बुद्ध, गांधी के देष में इस अज्ञान और अंधकार से बाहर आने के अनेक मार्गों में एक है - पूजा-स्तुति, धर्माचरण के मार्ग पर चलकर सदगुणों का विकास करना। जैन संस्कृति और धर्म में सुसंस्कृत जीवन के विकास के लिये परमात्मा, परमेष्ठी की उपासना को आज के मानव की अति आवष्यकता बताई गई है। चित्र षैली में जैन संस्कृति में अनेक उद्देष्यों को पूर्ण करने मण्डल विधान की रचना की गई है। यह षोध पत्र इन्हीं मण्डल पर आधारित है।

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References

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ीजजचेध्ध्ीपण्उण्ूपापचमकपंण्वतहध्ूपाप भारतीय चित्रकला, अक्टूबर 2019

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जैन डाॅ. दयाचन्द्र, साहित्यचार्य - जैन पूजा - काव्य एक चिंतन (2003) भारतीय ज्ञानपीठ, नयी दिल्ली, पृ. 401

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Published

2019-11-30

How to Cite

Modi, N. (2019). "IN THE CONTEXT OF PAINTING-MANDALA LEGISLATION IN JAIN CULTURE / RELIGION": ”जैन संस्कृति/धर्म में चित्रकला-मण्डल विधान के विषेष संदर्भ में“. International Journal of Research -GRANTHAALAYAH, 7(11), 235–240. https://doi.org/10.29121/granthaalayah.v7.i11.2019.3742