THE PLACE OF LAKULISH AMONG THE PROMOTERS OF THE PASHUPAT-SECT

पाशुपत-सम्प्रदाय के प्रवर्तकों में लकुलीश का स्थान

Authors

  • Dr. Satyendra Kumar Mishra Assistant Professor, Amity University, Lucknow, Uttar Pradesh

DOI:

https://doi.org/10.29121/granthaalayah.v7.i9.2019.613

Keywords:

पाशुपत सम्प्रदाय, लकुलीश, विचारधारा

Abstract [English]

पाशुपत-सम्प्रदाय की उत्पत्ति छठीं-पाॅचवीं शताब्दी ई. पू. में हुई होगी। परन्तु इससे यह अभिप्राय नहीं निकालना चाहिए कि पाषुपत सम्प्रदाय का उद्भव छठवीं-पाॅचवी शताब्दी ई. पू. कि कोई आकस्मिक घटना मात्र है, क्योंकि किसी भी धार्मिक संस्था अथवा विचारधारा का उद्भव विभिन्न प्रवृत्तियों और परम्पराओं और प्रवृत्तियों और परम्पराओं के पारस्परिक आदान-प्रदान एवं संघात के फलस्वरूप होता है, जो कि शताब्दियों से उस मत विषेष में होती रहती है। भारतीय धर्मसाधना और प्रवृत्तियों को निरन्तर सम्मिश्रण होता रहा है। अतः हम किसी भी धार्मिक संस्था अथवा सिद्धान्त को सर्वथा एकेान्मुख नही मान सकते है।
पाशुपत सम्प्रदाय के उद्भव का इतिहास अत्यधिक रोचक है, क्योंकि इसमें भारत की आर्य और अनार्य, वैदिक और अवैदिक, सभ्य और असभ्य, विकसित और अविकसित सभी परम्पराओं के तत्वों का समावेष हुआ है। पाषुपत मत शैव धार्मिक व्यवस्था का प्रथम साम्प्रदायिक उपज है, अतः शैव धर्म की उत्पत्ति की पृष्ठभूमि में ही पाशुपत सम्प्रदाय के निर्माणत्मक तत्वों का विष्लेषण उचित प्रतीत होता है।
भारत की सन्दर्भ में यह धारणा और भी अधिक समीचीन लगती है क्योंकि यहीं की धार्मिक विचारधारा उदार एवं सविष्णु आधारों पर विकसित हुई थी और इस उदारवादी प्रवृत्ति के कारण सभी धर्मो एवं विचारधाराओं में विभिन्न परम्पराओं और तत्वों को सम्मिश्रण हुआ।


 


The origin of the Pashupat-Sampradaya in the sixth-fifth century BC. I must have been But it should not be taken from this to mean that the origin of the Pashupat sect was in the sixth-fifth century BC. That is just an accidental event, because any religious institution or ideology arises as a result of mutual exchange and collision of different trends and traditions and tendencies and traditions, which have been in that opinion for centuries. Indian religions and trends have continued to blend. Therefore, we cannot consider any religious institution or principle to be completely eccentric.
The history of the emergence of the Pashupat Sampradaya is highly interesting, as it incorporates elements from the traditions of the Aryans and non-Aryans of India, Vedic and non-Vedic, cultured and uncultured, developed and underdeveloped. Pashupat Mat is the first communal product of the Shaivite religious system, so the analysis of the constructive elements of the Pashupat sect seems appropriate in the background of the origin of Shaivism.
In the context of India, this notion seems even more expedient because it was here that the religious ideology was developed on liberal and civil grounds and due to this liberal tendency, all religions and ideologies blend different traditions and elements.

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पंचम, षष्ठम शताब्दी ईसा पूर्व से वैदिक परम्परा का संघात क्षीणता को प्राप्त होने लगता है एवं अवैदिक धर्मो; जैसे- बौद्ध, जैैन, शैव एवं वैष्णव की लोकप्रियता द्विगुणित होती जाती है। इन सम्प्रदायों के अधिसंख्यक साक्ष्यांे की अभिव्यक्ति का बाहुल्य है, द्रष्टव्य- मजूमदार रमेषचन्द्र (स) दी एज आॅफ इम्पीरियल यूनिटी, पृ‐ 360-361,

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भण्डारकर आर‐जी‐- वैष्णाविज्म, शैविज्म एण्ड माइनर रिलीजस सिसटम्स, पृ‐ 102-112

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Published

2019-09-30

How to Cite

Mishra, S. K. (2019). THE PLACE OF LAKULISH AMONG THE PROMOTERS OF THE PASHUPAT-SECT: पाशुपत-सम्प्रदाय के प्रवर्तकों में लकुलीश का स्थान. International Journal of Research -GRANTHAALAYAH, 7(9), 292–298. https://doi.org/10.29121/granthaalayah.v7.i9.2019.613