IMPORTANCE OF COLORS IN THE LIFE OF TRIBES OF MADHYA PRADESH
मध्यप्रदेश के जनजातियों के जीवन में रंगों का महत्त्व
DOI:
https://doi.org/10.29121/granthaalayah.v2.i3SE.2014.3621Keywords:
मध्यप्रदेश, जीवन, रंगों का महत्त्वAbstract [English]
Colors are always encouraging, the natural properties of colors are the rays of light, which by their wavelengths transform the vibrations of the innermost of the creatures and creatures in nature. The taste and taste are inferior, yet the creature experiences color and taste from its experience. Whose influence plays an important role in his life. Life also gives man the art of living according to his karma, karma is directly related to art. If you define art as the life of a human being, then this fact comes, which is moving and mentally stimulate. Man is physically mortal, soul is considered immortal. The form, color of the soul is visually impaired, but man is able to give it a visual appearance through art. Color and form are the means by which a man is able to express himself to other beings. Man gives the form of visual appearance in different ways, but by using color combination in it, it makes it energetic.
रंग सदैव उत्साहवर्धन करते हैं, रंगों का प्राकृतिक गुण ही प्रकाश की किरणें होती हैं, जो अपनी तरंगदैध्र्य से प्रकृति में व्याप्त जीवों और प्राणियों के अन्तर्मन के कंपन को ऊर्जा में परिवर्तित करती है। रंग-स्वाद हीन होते हैं, फिर भी प्राणी अपने अनुभव से रंग-स्वाद की अनुभूति करता है। जिसका प्रभाव उसके जीवन में महत्त्वपूर्ण भूमिका निभाते हैं। जीवन, मनुष्य को अपने कर्म के अनुसार जीने की कला भी प्रदान करता है, कर्म का सीधा सम्पर्क कला से है। कला को मनुष्य के जीवन के रूप में परिभाषित करें तो यह तथ्य आता है, जो गतिमान हो और मानसिक रूप से उद्वेलित करें। मनुष्य शारीरिक रूप से नश्वर होता है, आत्मा को अमर माना जाता रहा है। आत्मा का रूप, रंग दृष्टिहीन होता है, लेकिन मनष्ुय कला के माध्यम से इसे दृष्टिगत रूप देने में सक्षम होता है। रंग और रूप ऐसा माध्यम है, जिसके द्वारा मनुष्य अपनी अभिव्यक्ति दूसरे प्राणियों तक पहंुचाने में सामथ्र्यशाली होता है। रूप को मनुष्य भिन्न-भिन्न तरह से दृष्टिगत रूप देता है, परन्तु इसमें रंग संयोजन का प्रयोग कर, इसे ऊर्जावान बनाता है।
Downloads
References
उपाध्याय एवं शर्मा-भारत में जनजातिय संस्कृति, मध्यप्रदेश ग्रन्थ अकादमी, भोपाल
कुमार, एस.-आदिवासी संस्कृति एवं राजनीति, विश्व भारती पब्लिकेशन्स नई दिल्ली-2009
गुप्ता, मंजु-जनजातियों का सामाजिक-आर्थिक उत्थान, अर्जुन पब्लिशिंग हाऊस नई दिल्ली-2010
गुप्ता, रमणिका-आदिवासी लोक भाग 1 व 2 शिल्पायन दिल्ली-2006
गुप्ता, रमणिका-आदिवासी विकास से विस्थापन, राधाकृष्ण नई दिल्ली पटना, इलाहाबाद-2008
चैमासा- अंक- 59, 88, 89 मध्यप्रदेश आदिवासी लोक कला परिषद, भोपाल
जोशी, रामशरण-आदिवासी समाज और शिक्षा, ग्रन्थ शिल्पी नई दिल्ली-1996
जैन, नेमीचन्द-भील भाषा साहित्य और संस्कृति, हीरा भैया प्रकाशन इंदौर-1994
तिवारी, राकेशकुमार -आदिवासी समाज में आर्थिक परिवर्तन, नार्दन बुक सेन्टर नई दिल्ली-1990
तिवारी, शिवकुमार एवं शर्मा, डाॅ. श्री कमल-मध्यप्रदेश की जनजातियाँ समाज एवं व्यवस्था मध्यप्रदेश, हिन्दी ग्रन्थ अकादमी भोपाल-1975
निरगुणे, वसन्त एवं गेहलोत, भानुशंकर-पिठौरा, आदिवासी लोककला एवं तुलसी साहित्य अकादमी, मध्यप्रदेश संस्कृति परिषद-2011
पाटिल, अशोक डी.-भील जनजीवन और संस्कृति, मध्य प्रदेश हिन्दी ग्रन्थ अकादमी, भोपाल-1998
पाठक, शोमनाथ-भीलों के बीच बीस वर्ष, प्रभात प्रकाशन दिल्ली
भावसार, वीरबाला-आदिवासी कला, सूचना और प्रसारण मंत्रालय, नई दिल्ली, नवम्बर-1993
वर्मा, एम.एल.-भीलों की सामाजिक व्यवस्था, क्लासिकल पब्लिशिंग कम्पनी.नई दिल्ली-1992
व्यास, नरेन्द्र एन. एवं भानावत, डाॅ. महेन्द्र -आदिवासी जीवनधारा हिमांशु पब्लिकेशन-2008
वैष्णव, टी. के.-मध्यप्रदेश की अनुसूचित जनजातियाँ, आदिम जाति अनुसंधान एवं विकास संस्था, भोपाल, मध्यप्रदेश
शुक्ल, हीरालाल-आदिवासी आदिवासी अस्मिता और विकास मध्य प्रदेश हिन्दी ग्रन्थ अकादमी भोपाल-1997
सम्पदा-आदिवासी लोक कला एवं तुलसी साहित्य भोपाल-2010
सिंह, के.एस.-हमारी आदिवासी विरासत, दि नेशनल ट्राइबल फेस्टिबल,राॅची, अक्टूबर-1989
सिंह, रामराज-आदिवासी अर्थव्यवस्था के सांस्कृतिक आधार-बिहार हिन्दी ग्रन्थ अकादमी पटना, नवम्बर 1976
Downloads
Published
How to Cite
Issue
Section
License
With the licence CC-BY, authors retain the copyright, allowing anyone to download, reuse, re-print, modify, distribute, and/or copy their contribution. The work must be properly attributed to its author.
It is not necessary to ask for further permission from the author or journal board.
This journal provides immediate open access to its content on the principle that making research freely available to the public supports a greater global exchange of knowledge.