Granthaalayah

POPULATION GROWTH AND ENVIRONMENTAL DEGRADATION: A GEOGRAPHY OF GHAZIPUR DISTRICT STUDY

जनसंख्या वृद्धि एवं पर्यावरण अवनयन : गाजीपुर जनपद का एक भौगोलिक अध्ययन

 

Dr. Vivek Kumar Rai *1Envelope

*1 Teacher, Shri Shivpujan Shastri, Vidyalaya Nakhar Bhagirath Rohtas (Bihar), India

 

DOI: https://doi.org/10.29121/granthaalayah.v8.i10.2020.1830

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Article Type: Research Article

 

Article Citation: Dr. Vivek Kumar Rai. (2020). POPULATION GROWTH AND ENVIRONMENTAL DEGRADATION: A GEOGRAPHY OF GHAZIPUR DISTRICT STUDY. International Journal of Research -GRANTHAALAYAH, 8(10), 164 – 171. https://doi.org/10.29121/granthaalayah.v8.i10.2020.1830

 

Received Date: 28 September 2020

 

Accepted Date: 28 October 2020

 

Keywords:

Population Growth

Environmental

Degradation

 

 

ABSTRACT

English: Rapid population growth is one of the major causes of environmental degradation. In fact, as a result of increase in human population, there are phenomena such as expansion in agriculture, urbanization, intensive industrialization etc. which play an important role in environmental degradation and ecological imbalance. Ghazipur is a district located in the Ganges River basin in the eastern part of Uttar Pradesh, whose district headquarters is Ghazipur. Its latitudinal range is between 25 ° 19′ and 25 ° 54′ and longitudinal 83 ° 4′ and 83 ° 58 ′, covering an area of ​​3577 square kilometers. According to the 2011 census, the total population of the district is 3620268. The subject matter of this research paper has been studied mainly on the basis of secondary data. For the construction of the map, then MSP Excel 2016 has been used for the analysis of data and data. The census data has been obtained from the Indian Census 2011. The fast growing population in India is considered as the main reason for the increasing pressure on the country's extremely limited natural resources due to the ever increasing population due to which the sustainable capacity of the environment is saturated and the gap between human need and ecological balance Is getting older Development of technology and technology is desirable to meet the needs of a rapidly growing population, yet as a result of technological and technological development, environmental exploitation and exploitation of natural resources has taken place at a rapid pace which is our industrial development, urban expansion agriculture This is reflected in the development and expansion of the area and the development of the means of transport and communication. Although development of all these aspects is necessary, in order to develop the present generation, we must also keep in mind the needs of future generations so that the concept of sustainable development can be realized.

 

Hindi: तीव्र जनसंख्या वृद्धि पर्यावरणीय ह्रास प्रमुख कारणों में से एक है । वास्तव में मानव जनसंख्या में वृद्धि के परिणाम स्वरूप कृषि क्षेत्रों में विस्तार, नगरीकरण, गहन औद्योगिकरण आदि   परिघटनाएं  होती हैं  जो पर्यावरण  अवनयन एवं पारिस्थिति की असंतुलन में महत्वपूर्ण भूमिका निभाती हैं। गाजीपुर उत्तर प्रदेश के पूर्वी हिस्से में गंगा नदी द्रोणी में अवस्थित एक जिला है जिसका जिला मुख्यालय गाजीपुर है । इसका अक्षांशीय विस्तार 25° 19′और 25° 54′एवं देशांतरीय 83° 4′और  83° 58′ के बीच है जिसका क्षेत्रफल 3577  वर्ग किलोमीटर है। जनपद की कुल जनसंख्या सन 2011 की जनगणना के अनुसार 3620268है। मुख्य रूप से द्वितीयक आंकड़ों के आधार पर इस शोध पत्र  के विषय वस्तु का अध्ययन किया गया है। मानचित्र के निर्माण के लिए  ArcGIS 10.1 एवं आंकड़ों के विश्लेषण के लिए एम० एस० एक्सेल 2016 का प्रयोग किया गया है। जनगणना संबंधी आंकड़े भारतीय जनगणना 2011 से प्राप्त किया गया है। लगातार बढ़ती जनसंख्या के कारण देश की अति सीमित प्राकृतिक संसाधनों पर बढ़ता दबाव के प्रमुख कारण के रूप में भारत में तेज गति से बढ़ती जनसंख्या को माना जाता है जिसके कारण पर्यावरण की वहनीय क्षमता संतृप्त होती जाती है  एवं मानवीय आवश्यकता एवं पारिस्थितिकी संतुलन के बीच  खाई बड़ी होती जा रही है। तीव्र गति से बढ़ती हुई जनसंख्या की आवश्यकताओं को पूरा करने के लिए  तकनीक एवं प्रौद्योगिकी का विकास वांछनीय है फिर भी तकनीकी एवं प्रौद्योगिकी के विकास के परिणाम स्वरूप पर्यावरणीय शोषण एवं प्राकृतिक संसाधनों का दोहन तीव्र गति से हुआ है जो कि हमारे औद्योगिक विकासए नगरी विस्तार कृषि क्षेत्र में विकास एवं विस्तार तथा यातायात एवं संचार के माध्यमों के विकास के रूप में  परिलक्षित हो रहा है। यद्यपि  इन सभी पहलुओं का विकास आवश्यक है फिर भी हमें वर्तमान पीढ़ी  के विकास करने के क्रम में भविष्य में आने वाली पीढ़ियों की आवश्यकताओं  को भी निरंतर संज्ञान में रखना चाहिए जिससे कि धारणीय विकास की संकल्पना साकार हो सके।



 

1.    प्रस्तावना

 

पर्यावरण ह्रास में तीव्र जनसंख्या वृद्धि सबसे प्रमुख कारण है। 20 वी शताब्दी में विश्व की जनसंख्या वृद्धि  एवं जनसंख्या वृद्धि दर सर्वाधिक अंकित हुई। भारत जैसे विकासशील देश भी इस बढ़ती हुई जनसंख्या से अछूते ना रहे। चुकी जनसंख्या अतिरेक का प्रभाव पर्यावरण एवं पारिस्थितिकी पर आवश्यक रूप में पड़ता है इसलिए भारत   के पर्यावरणीय संदर्भ में भी  यह सुचारू रूप से लागू होता है । मानव की बढ़ती जनसंख्या एवं उससे भी तेज गति से बढ़ती हुई उसकी भौतिक सुख की लालसा एवं उसे पूरा करने जिज्ञासा उसे प्राकृतिक संसाधन एवं पर्यावरण के अति दोहन की विभीषिका में उतरने को मजबूर कर देता है। पर्यावरण एवं संसाधनों का सतत अति दोहन पृथ्वी को मानव  निवास के प्रतिकूल निर्मित करेगा जो कि मानव सभ्यताओं के लिए विनाश पूर्ण है।

वास्तव में पर्यावरण अवनयन एवं पारिस्थितिकी असंतुलन का मूल कारण मानव जनसंख्या में वृद्धि है क्योंकि कृषि में विस्तार नगरीकरण औद्योगिकरण आदि  बढ़ते हुए मानव समुदाय के ही प्रतिफल हैं। जनसंख्या में लगातार वृद्धि होने के कारण सीमित प्राकृतिक संसाधनों पर दबाव प्रतिदिन बढ़ता जा रहा है। जिस कारण प्राकृतिक संसाधनों की तेजी से परंतु धुआंधार विदोहन के कारण अनेक पर्यावरणीय समस्याएं उत्पन्न हो रही है। भारत में पर्यावरण के कारणों में तीव्र से बढ़ती जनसंख्या को शुरू प्रमुख कारण समझा जाता है क्योंकि लगातार बढ़ती जनसंख्या के कारण देश की सीमित प्राकृतिक संसाधनों पर दबाव बढ़ता जा रहा है वास्तव में औद्योगिक विस्तार नगरीय वृद्धि कृषि में विस्तार एवं विकास यातायात एवं संचार के साधनों में वृद्धि आज जनसंख्या में निरंतर वृद्धि के ही परिणाम है। मानव समुदाय को भुखमरी एवं प्राकृतिक आपदाओं से बचाने के लिए वैज्ञानिक तकनीकों एवं आधुनिक प्रौद्योगिकी का विकास करना पड़ रहा है। परिणाम स्वरूप जनसंख्या में वृद्धि दर की अपेक्षा प्राकृतिक संसाधनों के दोहन की दर बढ़ती जा रही है। जिस कारण कई कीमती एवं और नवीकरणीय संसाधनों का अभाव होता जा रहा है। ज्ञातव्य है कि जैसे-जैसे जनसंख्या में वृद्धि होती जाती है वैसे वैसे प्राकृतिक संसाधनों पर दबाव बढ़ता जा रहा है क्योंकि अतिरिक्त जनसंख्या के भरण-पोषण के लिए अतिरिक्त खाद्यान्न  एवं आवास की आवश्यकता तथा आवश्यक सामग्री की मांग बढ़ती जा रही है ।

 

2.    अध्ययन क्षेत्र

 

मध्य गंगा मैदान में अवस्थित गाजीपुर जिला उत्तर प्रदेश के वाराणसी मंडल के पूर्वी भाग में स्थित है चित्र (1) । यह जौनपुर के पूर्व और वाराणसी के उत्तरी दिशा में स्थित है जिसका अक्षांशीय विस्तार 25° 19′और 25° 54′एवं देशांतरीय 83° 4′और  83° 58′विस्तार है।इस जिले की समुद्र तल से ऊंचाई 67.5 मीटर है। जिले की पूर्व से पश्चिम की तरफ लंबाई 90 किलोमीटर और उत्तर से दक्षिण की तरफ चौड़ाई 64 किलोमीटर है। गंगा नदी एक छोर पर तथा कर्मनाशा नदी दूसरे छोर से बिहार से इस जिले को अलग करती है। यह पूर्व में बलिया और बिहार राज्य से जुड़ा हुआ हैएजौनपुर वाराणसी और आजमगढ़  पश्चिमी दिशाए मऊ और बलिया उत्तरी दिशा और चंदौली दक्षिणी दिशा से इसकी सीमाएं बनाती है। गाजीपुर जिले में प्रवाहित होने वाली नदियां जैसे गंगा करना सा और गोमती इस जिले को आर्थिक और भौगोलिक रूप से सशक्त बनाती हैं। जिले  जिले का कुल क्षेत्रफल 3377  वर्ग किलोमीटर है। सन 2011 की जनगणना के अनुसार जनपद  की कुल जनसंख्या 3615555 है। इस जनपद में 16 विकासखंड (सदर, सैदपुर, देवकली, बिरनो,  मरदह, रेवतीपुर, सादात, मनिहारी, जमानिया, जखनिया, करंडा, कासिमाबाद, बाराचावर, मोहम्मदाबाद, भांवरकोल तथा भदौरा) है। इस जनपद में तीन नगरपालिका  (गाजीपुर मोहम्मदाबाद तथा जमानिया) तथा 5 नगर पंचायत बहादुरगंज सैदपुर जंगीपुर दिलदारनगर तथा सादात) हैं। इस जनपद में 7 तहसीलें (गाजीपुर सदर, सैदपुर, मोहम्मदाबाद, जमानिया, जखनिया, कासिमाबाद तथा सेवराईद्ध हैं। इस जनपद में 1237 ग्राम पंचायत तथा 1681 ग्राम है । उत्तर प्रदेश विधानसभा में जनपद से 7  जनप्रतिनिधि जबकि भारतीय संसद के निचले सदन लोकसभा में दो जनप्रतिनिधि  जनता का प्रतिनिधित्व करते हैं। इस जनपद की प्रमुख आर्थिक क्रिया कृषि आधारित है  जिनमें मुख्य रूप से  छोटे और सीमांत किसानों  की संख्या अधिक है। 

 

3.    शोध विधि तंत्र

 

अनेक विद्वानों एवं भूगोल वक्ताओं ने भौगोलिक अध्ययन हेतु अनेक विषयों पर अनेक शोध विधियों का प्रयोग किया है सामान्यतया अध्ययन का आधार  सूक्ष्म एवं व्यापक दोनों स्तर पर ही निर्धारित किया जाता है। कभी जनपद स्तर को तो कभी विकासखंड स्तर को अध्ययन का इकाई मान कर शोध कार्य किया जाता है। किसी भी अध्ययन में द्वितीयक आंकड़ों के साथ-साथ प्राथमिक आंकड़े  एकत्र करने के लिए विभिन्न प्रकार के सर्वेक्षण अपेक्षित हैं हालांकि इस शोधपत्र में केवल द्वितीयक आंकड़ों का प्रयोग किया गया है। इस शोधपत्र में जनसंख्या संबंधी आंकड़े भारतीय जनगणना 2011 एवं अर्थ एवं संख्या प्रभाग गाजीपुर द्वारा प्राप्त किया गया है तथा आंकड़ों के समुचित  विश्लेषण एवं निर्वाचन के लिए  तालिका एवं सांख्यिकी विधियों का प्रयोग किया गया है। जबकि  ग्राफो का प्रयोग करके जनसंख्या के विभिन्न आयामों  की व्याख्या का प्रयास किया गया है। ग्राफ को एम एस एक्सेल में तैयार किया गया है। अध्ययन क्षेत्र के मानचित्र को बनाने के लिए ArcGIS 10.1 सॉफ्टवेयर का प्रयोग किया गया है।

 

4.    गाजीपुर जिले का  जननांकीय गुणधर्म

 

सन 2011 में गाजीपुर जनपद की कुल जनसंख्याप् 3,620,268 जिनमें 1,855,075पुरुष थे और 1,765,193  महिलाएं थी. सन 2001 में गाजीपुर की जनसंख्या 3,037,582  थी जिनमें 1,537,141  पुरुष  और शेष 1,500,441महिलाएं थी। 2001 की जनगणना के परिपेक्ष में जनपद में 2011 की जनगणना में जनसंख्या 19.18 प्रतिशत वृद्धि हुई थी वही 2001 की जनगणना में 1991 की जनगणना के आधार पर 25.70 प्रतिशत की वृद्धि हुई थी।गाजीपुर जनपद के लिए भारतीय जनगणना 2011 द्वारा प्रकाशित अनंतिम आंकड़ों के अनुसारजनपद की जनसंख्या घनत्व 1072 व्यक्ति प्रति वर्ग किलोमीटर है 2001 में जनपद की जनसंख्या घनत्व 899 व्यक्तिप्रति वर्ग किलोमीटर था।

गाजीपुर जिले में साक्षरता दर 74.27% है जोकि राष्ट्रीय औसत साक्षरता दर 74.4% से अधिक है। जनपद में पुरुष साक्षरता दर  85.77% है जबकि महिला साक्षरता दर 62.29% है। ग्रामीण जनसंख्या में औसत साक्षरता दर  73.62% है वही नगरीय जनसंख्या में यह प्रतिशत 82.05% है। यदि साक्षरता दर को पुरुष एवं महिला के आधार पर देखें तो  सन 2011 में क्रमशः 82.80 प्रतिशत एवं 60.29 प्रतिशत थी जबकि यही प्रतिशत अंक 2001 की जनगणना में 74.87 एवं 44.03 प्रतिशत थी। जनपद गाजीपुर में 2011 की जनगणना में कुल साक्षर व्यक्तियों की संख्या 2,197,549 थी  जिनमें 1,293,553  पुरुष और 903,996  महिलाएं थी।

लिंगानुपात के संबंध में गाजीपुर जनपद में गिरावट आई है 2001 में हुई जनगणना के अनुसार प्रति हजार पुरुषों पर महिलाओं की संख्या 976 थी वही 2011 की जनगणना के अनुसार यह मात्र 952 रह गई थी। जनगणना रिपोर्ट  2011 के अनुसार  राष्ट्रीय लिंगानुपात प्रति हजार पुरुषों पर  महिलाओं की संख्या 940 थी। 2011 की जनगणना के अनुसार शिशु  लिंगानुपात में प्रति 1000 लड़कों पर लड़कियों की संख्या 908 थी वही 2001 की जनगणना के अनुसार प्रति 1000 लड़कों पर लड़कियों की संख्या 934 थी। गाजीपुर की नगरीय क्षेत्रों  में लिंगानुपात 2011 की जनगणना के अनुसार प्रति हजार पुरुषों पर महिलाओं की  संख्या 913  वही शिशु लिंगानुपात 2011 की जनगणना के अनुसार 898 थी। नगरीय क्षेत्रों में शिशु जनसंख्या (0.6) 38,092 थी। जिनमें  लड़कों की संख्या 20,066 और लड़कियों की संख्या 18,026 थी। यह शिशु जनसंख्या गाजीपुर जनपद की कुल नगरीय जनसंख्या की 13.99: थी।

जनपद में कुल  नगरीय जनसंख्या 92.42 प्रतिशत है वही ग्रामीण जनसंख्या केवल 7.58% है । कुल जनसंख्या 3622727  में ग्रामीण जनसंख्या 3348855 है जबकि नगरीय जनसंख्या 273872 है। गाजीपुर जनपद की कुल ग्रामीण  जनसंख्या में  पुरुषों की संख्या 1,711,651 तथा महिलाओं की संख्या 1,634,257 है।

तालिका-II से स्पष्ट है कि जखनियां विकासखण्ड में सन् 2011 के जनगणना के अनुसार ग्रामीण जनसंख्या वृद्धि दर जखनियां विकासखण्ड में 19.03 प्रतिशत मनिहारी विकासखण्ड में 17.21 प्रतिशत, सादात विकासखण्ड में 16.76 प्रतिशत, सैदपुर विकासखण्ड में 12.53 प्रतिशत, देवकली विकासखण्ड में 17.66 प्रतिशत,बिरनो विकासखण्ड में 23.61 प्रतिशत, मरदह विकासखण्ड में 18.57 प्रतिशत, सदर विकासखण्ड में 22.36 प्रतिशत, करन्डा विकासखण्ड में 16.92 प्रतिशत, कासिमाबाद विकासखण्ड में 20.07 प्रतिशत, बाराचवर विकासखण्ड में 25.66 प्रतिशत, मोहम्मदाबाद विकासखण्ड में 18.35 प्रतिशत, भाॅवरकोल विकासखण्ड में 16.96 प्रतिशत, जमानियां विकासखण्ड में 24.93 प्रतिशत, रेवतीपुर विकासखण्ड में 17.69 प्रतिशत तथा भदौरा विकास खण्ड में 19.04 प्रतिशत गत दशक की तुलना में जनसंख्या वृद्धि हुई है। सबसे कम ग्रामीण जनसंख्या वृद्धि सैदपुर विकासखण्ड मेंतथा सबसे अधिक बाराचवर विकासखण्ड में हुई है। सम्पूर्ण जनपद गाजीपुर का कुल ग्रामीण जनसंख्या वृद्धि 19.15 है।

 

5.    जनसंख्या वृद्धि का पर्यावरण पर प्रभाव (IMPACT OF POPULATION GROWTH ON ENVIRONMENT)

 

भौगोलिक अध्ययन में मानव का स्थान केन्द्रीय है। धरातल पर मानव सबसे महत्वपूर्ण प्राणी है एवं यह प्राकृतिक तथा  सांस्कृतिक वातावरण का उपयोग करता है और उसे अपनी उपस्थिति से प्रभावित करता है। हालांकि मानव का आगमन पृथ्वी की सतह पर जैव विकास के काल की दृष्टि से भी अत्यन्त नवीन है, अर्थात् भूतल पर प्रारम्भिक जैव समुदाय का विकास सम्भवतः आज से 50 से 55 करोड़ वर्ष पूर्व हो चूका था। वहीं मानव का विकास अर्थात् मस्तिष्क-युक्त मनुष्य नामक प्राणी भी कहते हैं कि उत्पत्ति वनमानुष के पश्चात् सम्भवतः 10 से 15 लाख वर्ष पूर्व हुई होगी। विकसित एवं विकासशील देश अपनी  आर्थिक एवं तकनीकी असमर्थता के कारण संसाधनों का  उपयोग असन्तुलित ढंग से करते हैं, जिसका  नकारात्मक प्रभाव वहाँ के पर्यावरण पर पड़ता है। इस प्रकार की देशों में  लगातार बढ़ती जनसंख्या  की मूलभूत आवश्यकताओं जैसे भोजन, वस्त्र और अन्य उपभोक्ता वस्तुओं के लिए भी विकसित देशों के निर्देश पर संसाधन का दोहन करना पड़ता है। साथ ही साथ इन देशों में विकसित देशों की बहुराष्ट्रीय कंपनियां एवं उपक्रम स्थानीय व्यवस्था में हस्तक्षेप करके केवल अपने लाभ हेतु नीतियों को निर्धारित करने का प्रयास करती हैं एवं स्थानीय पर्यावरण संबंधी समस्याओं को नजर अंदाज करते हैं। जनपद गाजीपुर अपनी आर्थिक  पिछड़ेपन एवं  विकास के प्रति राजनीतिक स्तर पर उपेक्षित होने के कारण  प्राकृतिक संसाधनों एवं संभावनाओं का समुचित उपयोग  करने में अक्षम है जिसका पर्यावरण पर नकारात्मक प्रभाव पड़ रहा है।

पर्यावरण अवनयन के प्रमुख कारणों में अज्ञानता और प्रकृति के प्रति उपेक्षापूर्ण व्यवहार भी मुख्य कारण है।  अल्पविकसित एवं विकासशील देशों की विशाल जनसंख्या  संगठित रूप से प्रयास न होने के कारण प्रकृति की शत्रु बन गयी। आदिवासी समाज अज्ञानता के कारण वन विनाश परिवर्तनशील कृषि के लिए करता है। खान से खनिज निकालने वाला श्रमिक धरातल और वनस्पतियों को विनष्टकरता है। पशुपालन पशुओं द्वारा अधिक चराई कर पर्यावरण को नुकसान पहुँचाने में पीछे नहीं हैं। विकसित समाज में प्रकृति के प्रति उदासीनता इतनी बढ़ गई है कि वह अपनी आवश्यकताओं को नहीं बल्कि भौतिक सुख-सुविधाओं के लिए प्रकृति का अप्रत्याशित रूप से दोहन अपनी विकसित प्रौद्योगिकी एवं तकनीकी से बहुत तेजी से कर रहे हैं  जिसका आने वाली पीढ़ियों पर गंभीर नकारात्मक प्रभाव पड़ेगा। विकसित देश आकाश मे आणविक परीक्षण से वायुमण्डल को प्रदूषित कर रहें हैं। समुद्रीजल में खनिज तेल, कचरा और अन्य प्रदूषक सामग्री डालकर विकसित देश समुद्री जीवों का विनाश कर रहें हैं। जंगल का विनाश करते समय नहीं सोच पाते कि पेड़ जीवन संचार के लिए आधारी घटक है।   हाल के दिनों में पर्यावरण उद्योग के  विकसित होने के कारण अनेक देशों में पर्यावरण का ह्रास हुआ है। अध्ययन क्षेत्र में पर्यावरण में अवनयन जनसंख्या वृद्धि के कारण अधिक मात्रा में वनों का विनाश करके वनों का कृषि योग्य भूमि तथा आवास बनाने के कारण हो रहा है । पर्यावरण अवनयन होनें से यहाँ के लोंगों के बहुत से  अप्रत्याशित समस्याओं का सामना करना पड़ रहा है। वनस्पतियों का दोहन कर के सड़कों का निर्माण किया जा रहा है जिससे पर्यावरण अवनयन में वृद्धि होती जा रही है।

1)    जनसंख्या वृद्धि का वनों पर प्रभाव. जनपद गाजीपुर में जनसंख्या वृद्धि का वनों पर बहुत ही व्यापक प्रभाव पड़ रहा है। जनसंख्या वृद्धि के कारण ही वनों का अत्याधिक मात्रा में दोहन हो रहा है। सन 2003-04 में जनपद में 4348 हेक्टेयर भूमि पर वन थे जो 2014-15 में घटकर मात्र 121 हेक्टेयर शेष हैं। वनों की मात्रा में इतनी तीब्र गति से गिरावट जनसंख्या वृद्धि होने के कारण हुआ है,क्योंकि वन भूमि के अधिकांश भाग को कृषि योग्य बनाया गया है।

2)    सड़क निर्माण का पर्यावरण पर प्रभाव. आधुनिक समय में स्थल यातायात की मुख्य माध्यम सड़के हैं। खेत एवं खलिहानों से कारखानों तक विनिर्मित माल बाजारों तथा उपभोक्ता के द्वार तक सड़क द्वारा पहुँचाया जाता है। जनपद में सन् 2001-02 में पक्की सड़कों की लम्बाई 3032 किमी0 थी। 2006-2007 में 3703 किमी0 तथा 2013-14 में बढ़कर 5531 किमी0 हो गयी है। इस प्रकार निरन्तर सड़कों की लम्बाई में वृद्धि हो रही है। ये सत्य है कि पक्की सड़कों का निर्माण वनों का विनाश करके किया गया है। वनों का विनाश होने से पर्यावरण अवनयन में वृद्धि होती जा रही है।

3)    वाहनों के वृद्धि का पर्यावरण पर प्रभाव. वाहनों के वृद्धि का मुख्य कारण जनसंख्या वृद्धि है। जनसंख्या वृद्धि के साथ-साथ वाहनों की संख्या में भी वृद्धि होती जा रही है। जनपद में सन् 2001 में दो पहिया वाहन 28131 तथा कार, जीप, वैनों की संख्या 6024 थी, जो लगभग तीन गुने वृद्धि के साथ सन् 2011 में दो पहिया वाहन 78218 तथा कार, जीप, वैन 21169 हो गयी। वाहनों की संख्या में वृद्धि के कारण ही वायु प्रदूषण को बढ़ावा मिल रहा है।

4)    मकानों के विकास का पर्यावरण पर प्रभाव. मकान के विकास का भी मुख्य कारण जनसंख्या वृद्धि है। जनसंख्या वृद्धि के साथ-साथ मकानों की संख्या में भी तीव्र गति से वृद्धि होती जा रही है। जनसंख्या वृद्धि के साथ-साथ मकानों की संख्या में भी तीव्र गति से वृद्धि होती जा रही है। जनपद में सन् 1971 में मकानों की संख्या 209036, सन् 1991 में 341149 थी। इस प्रकार निरन्तर मकानों की संख्या में वृद्धि होने के कारण मकानों की संख्या 2011 में 499162 हो गयी। जितने ही तेजी के साथ जनसंख्या में वृद्धि होती जा रही है। उतनी ही तेजी के साथ वनस्पतियों का दोहन करके मकानों का निर्माण किया जा रहा है। जिस कारण पर्यावरण अवनयन को बढ़ावा मिल रहा है।

 

6.    निष्कर्ष

 

आदिकाल से ही पृथ्वी की सतह पर मनुष्य और पर्यावरण का संबंध संतुलित एवं मैत्रीपूर्ण रहा है। किन्तु पिछली दो तीन शताब्दियों में अत्यधिक बढ़ी हुई जनसंख्या तथा उसकी विभिन्न आवश्यकताओं की पूर्ति  के लिए प्रकृति एवं प्राकृतिक संसाधनों के संबंध में आए वैचारिक परिवर्तन और औद्योगिक क्रान्ति की द्वन्द्व से भी सदियों से चले आ रहे हैं मानव तथा प्रकृति के आदर्श वातावरण सम्बन्धों में असन्तुलन की स्थिति पैदा हो गई है जिससे विभिन्न पर्यावरण के विभिन्न आयाम  परिवर्तित होने लगे हैं। जनसंख्या एवं कृषि विकास में घनिष्ठ सम्बन्ध हैं। मानव एवं कृषि विकास का बहुत ही गहरा पारस्परिक सम्बन्ध पाया जाता है। बढ़ती हुई जनसंख्या वृद्धि की आवश्यकताओं की पूर्ति के लिए कृषि क्षेत्र में तकनीकी एवं प्रौद्योगिकी का प्रयोग  उत्तरोत्तर बढ़ता गया है जिसका  सकारात्मक प्रभाव सीधे कृषि उत्पादन एवं विकास पर परिलक्षित होता है। लेकिन इसके नकारात्मक प्रभावों की भी उपेक्षा नहीं की जा सकती जैसे कि मृदा की उर्वरा शक्ति का प्रभावित होना, उनमें  वांछनीय  जीवो का  विनाश होना अर्थात मृदा पारिस्थितिकी का और संतुलित होना  आदि। जैसा कि उपर्युक्त विवेचन से स्पष्ट होता है कि जनपद गाजीपुर में जनसंख्या तीव्र गति से बढ़ रही है जो यहाँ  के  पर्यावरण  को अत्यधिक  नकारात्मक रूप से प्रभावित  कर रही है। विकासखण्ड बाराचवर इस जनपद में जनसंख्या वृद्धि दर  सबसे अधिक अर्थात् 25.66 प्रतिशत है। जनपद गाजीपुर में कृषि तथा आवाज योग्य भूमि प्राप्त करने के लिए वनों की तीव्र गति से कटाई हुई है जोकि तीव्र जनसंख्या वृद्धि की देन है । आज इस जनपद में जनसंख्या वृद्धि की देन है कि बेरोजगारी तथा गरीबी दिन-प्रतिदिन बढ़ रही है। इस जनपद में सन् 1901 में जनसंख्या 858090, 1951 में, 1141278 तथा बढ़कर सन् 2011 में 3620268 हो गयी है। इससे अन्दाजा लगाया जा सकता है कि जनपद गाजीपुर में जनसंख्या कितनी तेजी के साथ बढ़ रही है। तथा इसका पर्यावरण पर कितना नकारात्मक प्रभाव पड़ेगा।

यदि  जनसंख्या  की वृद्धि  दर  यही रही तो यहाँ के पर्यावरण अवनयन को रोका नहीं जा सकता। जिससे यहाँ रहने वाले मानव या पाये जाने वाले जीवधारियों को अत्यधिक समस्याओं का सामना करना पड़ेगा। जनपद में बढ़ती हुई जनसंख्या की आवश्यकता जैसे सड़कों व मकानों  का विकास के साथ साथ पर्यावरण  संबंधी समस्याओं को भी समग्र रूप से ध्यान देने की आवश्यकता है जिससे कि धारणीय विकास की संकल्पना को मूर्त रूप प्रदान किया जा सके।

 

 

 

 

1)    जखनियां                     221776 19.03

2)    मनिहारी                      217046 17.21

3)    सादात                         213766 16.76

4)    सैदपुर                         235540 12.53

5)    देवकली                       226207 17.66

6)    बिरनो                          166598 23.61

7)    मरदह                         186435 18.57

8)    गाजीपुर (सदरद्ध)        210159 22.36

9)    करन्डा                         144106 16.92

10)  कासिमाबाद                239768 20.07

11)  बाराचवर                     204173 25.66

12)  मोहम्मदाबाद               221471 18.35

13)  भावरकोल                   191085 16.96

14)  जमानियां                     261124 24.93

15)  रेवतीपुर                      178354 17.69

16)  भदौरा                         223547 19.04

योग ग्रामीण                        3341155          19.15

 

SOURCES OF FUNDING

 

None.

 

CONFLICT OF INTEREST

 

None.

 

ACKNOWLEDGMENT

 

None.

 

REFERENCES

 

      [1]     जनपद सांख्यिकी पत्रिका गाजीपुर, 2015-16 पृष्ठ सं0 17

      [2]     डॉ0 आर0 सी0 चन्दना, जनसंख्या भूगोल 2017, कल्याणी पब्लिकेशन लुधियाना

      [3]     डॉ0 सविन्द्र सिंह, पर्यावरण भूगोल, 2009, शारदा पुस्तक भवन, इलाहाबाद, पृष्ठ सं0 155

      [4]     डॉ0 लोकेश श्रीवास्तव, पर्यावरण अध्ययन एवं प्रबन्धन 2009, शारदा पुस्तक भवन इलाहाबाद , पृष्ठ सं0 128

      [5]     योजना पत्रिका दिसम्बर 2015 नई दिल्ली पृष्ठ संख्या 13

 

 

 

 

 

                                                                

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