Original Article
A STUDY OF THE SOCIAL BEHAVIOR OF NORMAL AND GIFTED STUDENTS STUDYING AT THE SECONDARY LEVEL
माध्यमिक
स्तर पर अध्ययनरत
सामान्य एवं प्रतिभाषाली
विद्यार्थियों
के सामाजिक व्यवहार
का अध्ययन
|
Dr. Dinesh Kumar Maurya 1*, Vikas Kumar Jaiswar
2 1 Associate Professor, Department of Education, M.L.K. (P.G.)
College, Balrampur, Uttar Pradesh, India 2 Research
Scholar, M.L.K. (P.G.) College, Balrampur, Uttar Pradesh, India |
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ABSTRACT |
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English: The present study aimed to compare the social behavior of normal and gifted students studying at the secondary level. A total of 200 students were included in the study, comprising 100 normal students (50 boys and 50 girls) and 100 gifted students (50 boys and 50 girls). A standardized social behavior inventory was used for data collection. The collected data were analyzed using the t-test. The results revealed a statistically significant difference in the social behavior of normal and gifted students, with gifted students exhibiting higher levels of self-control, leadership, and social responsibility. However, no significant difference was found in the social behavior of normal and gifted students based on gender. Based on the study, specific educational suggestions for schools, teachers, and parents have also been provided for the development of social behavior. Hindi: वर्तमान अध्ययन
का उद्देश्य माध्यमिक
स्तर पर अध्ययनरत
सामान्य एवं प्रतिभाशाली
विद्यार्थियों
के सामाजिक व्यवहार
की तुलना करना
था। शोध में कुल
200 विद्यार्थी शामिल
किए गए, जिनमें
100 सामान्य (50 छात्र
और 50 छात्राएँ) और
100 प्रतिभाशाली
(50 छात्र और छात्राएँ)
थे। प्रदत्त संग्रह
के लिए मानक सामाजिक
व्यवहार सूची
का उपयोग किया
गया। प्राप्त
आंकड़ों का विश्लेषण
टी-परीक्षण द्वारा
किया गया। परिणामों
से ज्ञात हुआ कि
सामान्य एवं प्रतिभाशाली
विद्यार्थियों
के सामाजिक व्यवहार
में सांख्यिकीय
रूप से सार्थक
अंतर पाया गया,
जिसमें प्रतिभाशाली
विद्यार्थियों
में आत्मनियंत्रण,
नेतृत्व और सामाजिक
उत्तरदायित्व
अधिक थे। वहीं,
लिंग के आधार पर
सामान्य और प्रतिभाशाली
विद्यार्थियों
के बीच सामाजिक
व्यवहार में कोई
सार्थक अंतर नहीं
पाया गया। अध्ययन
के आधार पर सामाजिक
व्यवहार विकास
हेतु विद्यालयों,
शिक्षकों और अभिभावकों
के लिए विशिष्ट
शैक्षणिक सुझाव
भी प्रस्तुत किए
गए हैं। Keywords: Social Behavior, Gifted Students,
Normal Students, Secondary Level, सामाजिक
व्यवहार, प्रतिभाशाली
विद्यार्थी, सामान्य
विद्यार्थी, माध्यमिक
स्तर |
||
प्रस्तावना
शिक्षा
का उद्देश्य केवल
बौद्धिक विकास
तक सीमित नहीं
है, बल्कि यह व्यक्ति
के समग्र व्यक्तित्व
निर्माण का माध्यम
भी है। माध्यमिक
स्तर ऐसा महत्वपूर्ण
शैक्षिक चरण है
जहाँ विद्यार्थियों
के सामाजिक, भावनात्मक
तथा नैतिक गुणों
का निर्माण होता
है। इस अवस्था
में विद्यार्थियों
के व्यवहार, दृष्टिकोण
और सामाजिक समायोजन
की प्रवृत्तियाँ
तीव्रता से विकसित
होती हैं।
सामाजिक
व्यवहार व्यक्ति
के समाज में अनुकूलन,
सहयोग, सहानुभूति,
अनुशासन, नेतृत्व,
तथा सामाजिक उत्तरदायित्व
जैसे गुणों का
प्रतिबिंब होता
है। सामान्य एवं
प्रतिभाशाली दोनों
प्रकार के विद्यार्थी
इस विकास प्रक्रिया
से गुजरते हैं,
किन्तु उनकी सामाजिक
अभिव्यक्तियाँ,
दृष्टिकोण और सहभागिता
के स्तर में भिन्नता
पाई जा सकती है।
प्रतिभाशाली विद्यार्थी
बौद्धिक रूप से
आगे होते हैं, परंतु
उनके सामाजिक संबंध
और समूह-व्यवहार
कभी-कभी सामान्य
विद्यार्थियों
से अलग हो सकते
हैं।
अतः
माध्यमिक स्तर
पर सामान्य एवं
प्रतिभाशाली विद्यार्थियों
के सामाजिक व्यवहार
का तुलनात्मक अध्ययन
यह समझने में सहायक
होगा कि उनकी सामाजिक
सहभागिता, सहयोग,
समायोजन एवं नेतृत्व
क्षमता में क्या
भिन्नताएँ विद्यमान
हैं तथा किन कारकों
से इनका विकास
प्रभावित होता
है।
संबंधित
साहित्य का अध्ययन
·
शर्मा (2019) - “माध्यमिक
स्तर के सामान्य
एवं प्रतिभाशाली
विद्यार्थियों
के सामाजिक व्यवहार
का तुलनात्मक अध्ययन”।
इस अध्ययन में
सामान्य और प्रतिभाशाली
विद्यार्थियों
के सामाजिक व्यवहार
का तुलनात्मक विश्लेषण
किया गया। परिणामों
से ज्ञात हुआ कि
प्रतिभाशाली विद्यार्थियों
में आत्मनियंत्रण,
आत्मविष्वास तथा
नेतृत्व की प्रवृत्ति
सामान्य विद्यार्थियों
की अपेक्षा अधिक
थी।
यद्यपि,
सामान्य विद्यार्थी
समूह-सहयोग, सहभागिता
और सहानुभूति में
आगे रहे। शोधकर्ता
ने निष्कर्ष निकाला
कि दोनों वर्गों
के सामाजिक व्यवहार
में बौद्धिक स्तर
के आधार पर महत्वपूर्ण
अंतर पाया गया।
·
जैन (2021) - “प्रतिभाशाली
एवं सामान्य विद्यार्थियों
के सामाजिक व्यवहार
का तुलनात्मक विश्लेषण”। इस अध्ययन का उद्देश्य प्रतिभाशाली और सामान्य
विद्यार्थियों
के सामाजिक व्यवहार
में पाए जाने वाले
अंतरों का विश्लेषण
करना था। निष्कर्षों
से पता चला कि प्रतिभाशाली
विद्यार्थी आत्मनिर्भर
और आत्मविष्वासी
होते हैं, किंतु
उनमें समूह-अनुकूलन
की प्रवृत्ति सीमित
रहती है। दूसरी
ओर, सामान्य विद्यार्थी
समूह गतिविधियों
में अधिक सहजता
और सहयोग की भावना
दिखाते हैं। अध्ययन
से यह भी स्पष्ट
हुआ कि सामाजिक
अनुकूलन का स्तर
बुद्धिलब्धि से
प्रत्यक्ष रूप
से प्रभावित होता
है।
·
गुप्ता एवं
मिश्रा (2022) - “भावनात्मक
बुद्धिमत्ता और
सामाजिक व्यवहार
का अध्ययन सामान्य
एवं प्रतिभाशाली
विद्यार्थियों
के संदर्भ में”।
इस शोध में भावनात्मक
बुद्धिमत्ता और
सामाजिक व्यवहार
के मध्य संबंध
का अध्ययन किया
गया। परिणामों
से ज्ञात हुआ कि
जिन विद्यार्थियों
की भावनात्मक बुद्धिमत्ता
उच्च थी, वे अधिक
सहयोगात्मक और
संवेदनशील सामाजिक
व्यवहार प्रदर्शित
करते थे। प्रतिभाशाली
विद्यार्थियों
में आत्मसंयम,
आत्मविष्वास और
निर्णय क्षमता
अधिक थी, जबकि सामान्य
विद्यार्थियों
में सामूहिक सहभागिता
और पारस्परिक संबंधों
की प्रवृत्ति अपेक्षाकृत
अधिक देखी गई।
·
चैधरी (2023) - “विद्यालयी
वातावरण का प्रभाव
प्रतिभाशाली एवं
सामान्य विद्यार्थियों
के सामाजिक व्यवहार
पर अध्ययन”। अध्ययन
में विद्यालयी
वातावरण, शिक्षक
व्यवहार और सहपाठी
संबंधों का विद्यार्थियों
के सामाजिक व्यवहार
पर प्रभाव विश्लेषित
किया गया। निष्कर्षों
से ज्ञात हुआ कि
सहयोगी विद्यालयी
वातावरण प्रतिभाशाली
विद्यार्थियों
में सामाजिक समायोजन
को बढ़ाता है, जबकि
नकारात्मक या असहयोगी
वातावरण उन्हें
सामाजिक रूप से
अलगाव की ओर प्रेरित
करता है। सामान्य
विद्यार्थी अपेक्षाकृत
अधिक सामाजिक सहभागिता
और समायोजन प्रदर्शित
करते हैं।
समस्या
का औचित्य
वर्तमान
समय में शिक्षा
केवल ज्ञानार्जन
की प्रक्रिया नहीं
रही, बल्कि यह समाज
में व्यवहारिकता,
नैतिकता और सहयोग
की भावना विकसित
करने का माध्यम
बन चुकी है। विद्यार्थियों
का सामाजिक व्यवहार
ही उनके भावी नागरिक
रूप को निर्धारित
करता है। माध्यमिक
स्तर पर विद्यार्थी
किशोरावस्था के
दौर से गुजरते
हैं, जहाँ सामाजिक
पहचान और आत्म-अभिव्यक्ति
की भावना प्रबल
होती है। इस अवस्था
में प्रतिभाशाली
विद्यार्थियों
का व्यवहार उनकी
बौद्धिक क्षमता
के कारण विशिष्ट
हो सकता है, जबकि
सामान्य विद्यार्थी
सामाजिक सहभागिता
में अधिक संतुलित
या अलग प्रवृत्तियाँ
प्रदर्शित कर सकते
हैं। इन दोनों
वर्गों के सामाजिक
व्यवहार को समझना
शिक्षक, परामर्शदाता
तथा शिक्षा नीति
निर्धारकों के
लिए अत्यंत उपयोगी
सिद्ध हो सकता
है।
यह
अध्ययन विद्यार्थियों
के सामाजिक विकास
से संबंधित उन
कारकों को उजागर
करेगा जो उनकी
सीखने की प्रक्रिया,
समूह-संबंधों तथा
विद्यालय वातावरण
को प्रभावित करते
हैं। साथ ही, यह
शोध शिक्षा प्रणाली
में ऐसे उपायों
की दिशा में मार्गदर्शन
करेगा जो सामान्य
और प्रतिभाशाली
दोनों प्रकार के
विद्यार्थियों
में संतुलित सामाजिक
व्यवहार के विकास
को प्रोत्साहित
करें।
समस्या
कथन
माध्यमिक
स्तर पर अध्ययनरत
सामान्य एवं प्रतिभाशाली
विद्यार्थियों
के सामाजिक व्यवहार
का
अध्ययन
षोध
के उद्देष्य
1)
माध्यमिक
स्तर के सामान्य
एवं प्रतिभाशाली
विद्यार्थियों
के सामाजिक व्यवहार
का अध्ययन करना।
2)
माध्यमिक
स्तर के सामान्य
छात्र एवं छात्राओं
के सामाजिक व्यवहार
का अध्ययन करना।
3)
माध्यमिक
स्तर के प्रतिभाशाली
छात्र एवं छात्राओं
के सामाजिक व्यवहार
का
अध्ययन
करना।
षोध
की परिकल्पना
1)
माध्यमिक
स्तर के सामान्य
एवं प्रतिभाशाली
विद्यार्थियों
के सामाजिक व्यवहार
में सार्थक अंतर
नहीं पाया जाता
है।
2)
माध्यमिक
स्तर के सामान्य
छात्र एवं छात्राओं
के सामाजिक व्यवहार
में सार्थक अंतर
नहीं पाया जाता
है।
3)
माध्यमिक
स्तर के प्रतिभाशाली
छात्र एवं छात्राओं
के सामाजिक व्यवहार
में सार्थक अंतर
नहीं पाया जाता
है।
शोध प्रविधि
-
वर्णनात्मक अनुसंधान
के अन्तर्गत सर्वेक्षण
विधि का प्रयोग
प्रयुक्त अनुसंधान
में किया गया है।
न्यादर्ष
-
प्रस्तुत शोध अध्ययन
में कानपुर जनपद
के माध्यमिक स्तर
के 200 विद्यार्थियों
को साधारण यादृच्छिक
विधि द्वारा चुना
गया है। जिनमें
से 100 सामान्य एवं
100 प्रतिभाशाली
विद्यार्थी हैं।
उपकरण - प्रस्तुत
अध्ययन में विद्यार्थियों
के सामाजिक व्यवहार
का अध्ययन करने
के लिये डॉ. अशोक
कुमार एरिगाला
और लॉरेंस खरलूनी
द्वारा निर्मित
सामाजिक व्यवहार
का प्रयोग किया
गया है।
शोध में प्रयुक्त
सांख्यिकी - प्रस्तुत
अनुसंधान कार्य
में निम्नलिखित
सांख्यिकीय विधियों
का प्रयोग किया
गया है-
·
मध्यमान
·
मानक विचलन
·
टी परीक्षण
आंकड़ों
का विष्लेषण एवं
व्याख्या
परिकल्पना
1 - “माध्यमिक स्तर
के सामान्य एवं
प्रतिभाशाली विद्यार्थियों
के सामाजिक व्यवहार
में सार्थक अंतर
नहीं पाया जाता
है।”
तालिका-1
|
तालिका
1 सामान्य एवं
प्रतिभाशाली
विद्यार्थियों
के सामाजिक व्यवहार
में अंतर का विश्लेषण |
|||||||
|
समूह |
संख्या |
मध्यमान |
मानक
विचलन |
टी-मूल्य |
स्वतंत्रता
का अंष |
सार्थकता
स्तर (0. 05) |
परिणाम |
|
सामान्य
विद्यार्थी |
100 |
72.45 |
8.32 |
2.18 |
198 |
1.97 |
सार्थक अंतर
पाया गया |
|
प्रतिभाशाली
विद्यार्थी |
100 |
76.32 |
7.94 |
||||
व्याख्या
प्रस्तुत
अध्ययन में माध्यमिक
स्तर पर अध्ययनरत
सामान्य एवं प्रतिभाशाली
विद्यार्थियों
के सामाजिक व्यवहार
की तुलना टी-परीक्षण
के माध्यम से की
गई। प्राप्त परिणामों
से ज्ञात हुआ कि
टी-मूल्य 2.18 है, जो
0.05 स्तर पर सार्थक
पाया गया। यह परिणाम
इंगित करता है
कि प्रतिभाशाली
विद्यार्थियों
का सामाजिक व्यवहार
सामान्य विद्यार्थियों
की तुलना में अधिक
परिपक्व, संगठित
और उत्तरदायी है।
वे आत्मनियंत्रण,
निर्णय क्षमता,
सामाजिक उत्तरदायित्व
तथा नेतृत्व गुणों
में आगे पाए गए।
यह निष्कर्ष पूर्ववर्ती
अध्ययनों शर्मा
(2019) और जैन (2021) शर्मा
से भी मेल खाता
है, जिनमें प्रतिभाशाली
विद्यार्थियों
के आत्मविष्वास
एवं आत्मसंयम का
स्तर सामान्य विद्यार्थियों
से अधिक पाया गया
था। अतः यह परिकल्पना
अस्वीकृत की जाती
है।
परिकल्पना
2 - “माध्यमिक स्तर
के सामान्य छात्र
एवं छात्राओं के
सामाजिक व्यवहार
में सार्थक अंतर
नहीं पाया जाता
है।”
तालिका-2
|
तालिका
2 सामान्य विद्यार्थियों
के छात्र एवं छात्राओं
के सामाजिक व्यवहार
में अंतर का विश्लेषण |
|||||||
|
समूह |
संख्या |
मध्यमान |
मानक विचलन |
टी-मूल्य |
स्वतंत्रता
का अंष |
सार्थकता
(-0.05) |
परिणाम |
|
सामान्य
छात्र |
50 |
71.60 |
8.45 |
0.92 |
98 |
1.98 |
अंतर
असार्थक |
|
सामान्य छात्राएँ |
50 |
73.30 |
8.10 |
||||
व्याख्या
सामान्य
विद्यार्थियों
के छात्र एवं छात्राओं
के सामाजिक व्यवहार
की तुलना हेतु
टी-परीक्षण का
उपयोग किया गया।
प्राप्त परिणामों
से ज्ञात हुआ कि
टी-मूल्य 0.92 है, जो
0.05 स्तर पर असार्थक
पाया गया। इससे
स्पष्ट हुआ कि
लिंग के आधार पर
सामान्य विद्यार्थियों
के सामाजिक व्यवहार
में कोई महत्वपूर्ण
अंतर नहीं है।
दोनों ही समूहों
ने सहयोग, सहानुभूति,
सामाजिक उत्तरदायित्व
और समूह-अनुकूलन
की प्रवृत्तियाँ
लगभग समान रूप
में प्रदर्शित
कीं। यह परिणाम
वर्मा (2024) के अध्ययन
से भी संगत है, जिसमें
सामाजिक व्यवहार
में लिंगानुसार
कोई सार्थक अंतर
नहीं पाया गया
था। अतः यह परिकल्पना
स्वीकार की जाती
है।
परिकल्पना
3 - “माध्यमिक स्तर
के प्रतिभाशाली
छात्र एवं छात्राओं
के सामाजिक व्यवहार
में सार्थक अंतर
नहीं पाया जाता
है।”
तालिका-3
|
तालिका
3 प्रतिभाशाली
विद्यार्थियों
के छात्र एवं छात्राओं
के सामाजिक व्यवहार
में अंतर का विश्लेषण |
|||||||
|
समूह |
संख्या |
मध्यमान |
मानक विचलन |
टी-मूल्य |
स्वतंत्रता
का अंष |
सार्थकता
(-0.05) |
परिणाम |
|
प्रतिभाशाली छात्र |
50 |
75.80 |
8.05 |
0.68 |
98 |
1.98 |
अंतर
असार्थक |
|
प्रतिभाशाली छात्राएँ |
50 |
76.85 |
7.82 |
||||
व्याख्या
प्रतिभाशाली
विद्यार्थियों
के छात्र एवं छात्राओं
के सामाजिक व्यवहार
का तुलनात्मक विश्लेषण
करने पर पाया गया
कि टी-मूल्य 0.68 है,
जो 0.05 स्तर पर असार्थक
है। इसका अर्थ
है कि प्रतिभाशाली
छात्र एवं छात्राएँ
दोनों ही समान
स्तर पर सामाजिक
रूप से उत्तरदायी,
आत्मनियंत्रित
एवं सहयोगी व्यवहार
प्रदर्शित करते
हैं। लिंग के आधार
पर उनके सामाजिक
व्यवहार में कोई
उल्लेखनीय अंतर
नहीं पाया गया।
यह निष्कर्ष चैधरी
(2023) के अध्ययन के
अनुरूप है, जिसमें
विद्यालयी वातावरण
और बौद्धिक समानता
को सामाजिक व्यवहार
के समान स्तर का
प्रमुख कारण बताया
गया। अतः यह परिकल्पना
स्वीकार की जाती
है।
शैक्षणिक
सुझाव
·
सामाजिक
व्यवहार विकास
हेतु कार्यक्रमों
का आयोजनः- विद्यालयों
में सामाजिक व्यवहार,
सहयोग एवं सहानुभूति
विकसित करने हेतु
समूह चर्चा, भूमिका
निर्वाह और सामूहिक
कार्यशालाओं का
आयोजन किया जाना
चाहिए।
·
प्रतिभाशाली
विद्यार्थियों
के लिए विशेष मार्गदर्शनः-
प्रतिभाशाली विद्यार्थियों
में नेतृत्व क्षमता
एवं सामाजिक संवेदनशीलता
को बढ़ाने के लिए
विशेष काउंसलिंग
और को-करिकुलर
गतिविधियों का
समावेश किया जाना
चाहिए।
·
समान अवसर
आधारित शिक्षण
वातावरणः- शिक्षकों
को चाहिए कि वे
कक्षा में ऐसा
वातावरण निर्मित
करें जहाँ सामान्य
एवं प्रतिभाशाली
दोनों वर्गों को
समान रूप से सहभागिता
के अवसर मिलें।
इससे सामाजिक समायोजन
की भावना प्रबल
होगी।
·
शिक्षक प्रशिक्षण
में सामाजिक कौशल
का समावेशः- शिक्षक
प्रशिक्षण कार्यक्रमों
में सामाजिक-भावनात्मक
अधिगम से जुड़े
घटकों को शामिल
किया जाए, ताकि
शिक्षक विद्यार्थियों
में सकारात्मक
सामाजिक व्यवहार
का विकास कर सकें।
·
लिंग समानता
पर बलः- शिक्षा
व्यवस्था में ऐसे
प्रयास किए जाएँ
जिससे छात्र और
छात्राएँ दोनों
समान रूप से आत्म-अभिव्यक्ति,
नेतृत्व और सहयोग
की प्रवृत्तियाँ
विकसित कर सकें।
·
विद्यालय
वातावरण का सुदृढ़ीकरणः-
विद्यालयों में
सहयोगी, प्रोत्साहनात्मक
और संवादमूलक वातावरण
तैयार किया जाए
ताकि विद्यार्थी
आपसी सम्मान, सहयोग
एवं उत्तरदायित्व
की भावना से व्यवहार
कर सकें।
·
अभिभावक
सहभागिता बढ़ानाः-
अभिभावकों को विद्यालयी
कार्यक्रमों में
सम्मिलित कर विद्यार्थियों
के सामाजिक विकास
के लिए घर-विद्यालय
के बीच संतुलन
और सहयोगात्मक
दृष्टिकोण विकसित
किया जाए।
·
सामाजिक
उत्तरदायित्व
आधारित गतिविधियाँः-
विद्यार्थियों
को समाजसेवा, स्वच्छता
अभियान, और सहयोगात्मक
परियोजनाओं में
भाग लेने के लिए
प्रेरित
किया जाए ताकि
उनमें सामाजिक
उत्तरदायित्व
और सहानुभूति के
मूल्य विकसित हों।
·
समावेशी
शिक्षा दृष्टिकोण
का अपनानाः- शिक्षा
नीति में ऐसे कदम
उठाए जाएँ जिससे
सामान्य एवं प्रतिभाशाली
दोनों प्रकार के
विद्यार्थी एक
साथ सीखने के अवसर
प्राप्त करें और
परस्पर संवाद से
सामाजिक विकास
को गति मिले।
·
निरंतर मूल्यांकन
प्रणाली का उपयोगः-
सामाजिक व्यवहार
से संबंधित परिवर्तन
को पहचानने हेतु
निरंतर और गुणात्मक
मूल्यांकन प्रणाली
अपनाई जाए।.
संदर्भ
ग्रन्थ सूची
Bhatia, H.R. (2021) Elements of Educational
Psychology, New Delhi, Surjeet Publications.
Mathura, S. S. (2019) Educational Psychology,
Agraru Agarwal Publications.
Taneja, V. R. (2020). Socio-Psychological
Foundations of Education. New Delhi: Atlantic Publishers.
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