Granthaalayah
THE EFFECTIVENESS OF THE ‘INGAT PESAN IBU’ CAMPAIGN IN CHANGING LATE ADOLESCENT BEHAVIOR IN THE TOURISM AREAS OF BALI, BANDUNG, AND YOGYAKARTA

OPPORTUNITIES AND CHALLENGES IN LANGUAGE EDUCATION IN THE AGE OF ARTIFICIAL INTELLIGENCE

कृत्रिम बुद्धिमत्ता के युग में भाषा शिक्षा सम्बन्धी अवसर एवं चुनौतियाँ

 

1 Dr. Badri Narayan Mishra, Dr. Shriprakash 2

 

1 Assistant Professor, Department of Education CSJM University, Kanpur, India

2 Assistant Professor, Department of Hindi CSJM University, Kanpur, India

 

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ABSTRACT

English: In the age of artificial intelligence, the nature of language education is rapidly changing. AI-based chatbots, translators, voice-recognition systems, and adaptive learning platforms are making the language learning process personalized, effective, and accessible. Students can practice at their own pace and improve their pronunciation, grammar, vocabulary, and writing skills. This has made language learning more engaging, accessible, and relevant. However, it also brings with it numerous challenges—such as excessive technological dependence, a decline in creativity, a crisis of linguistic authenticity, data security threats, and technological inequality. AI machines cannot fully understand human emotions, cultural contexts, and creative expression, so the human role in language education remains indispensable. Thus, while AI has enriched language education with new opportunities, the need for its balanced and judicious use is equally important.

 

Hindi: कृत्रिम बुद्धिमत्ता के युग में भाषा-शिक्षा का स्वरूप तेजी से बदल रहा है। AI आधारित चैटबॉट, अनुवादक, वॉइस-रिकग्निशन सिस्टम और एडाप्टिव लर्निंग प्लेटफ़ॉर्म भाषा सीखने की प्रक्रिया को व्यक्तिगत, प्रभावी और सुगम बना रहे हैं। विद्यार्थी अपनी गति से अभ्यास करते हुए उच्चारण, व्याकरण, शब्दावली और लेखन कौशल में सुधार कर सकते हैं। इससे भाषा सीखना अधिक आकर्षक, उपलब्ध और प्रासंगिक बन गया है। परंतु इसके साथ अनेक चुनौतियाँ भी उभर रही हैं—जैसे अत्यधिक तकनीकी निर्भरता, रचनात्मकता में कमी, भाषाई प्रामाणिकता का संकट, डेटा सुरक्षा के खतरे और तकनीकी असमानता। AI मशीनें मानवीय भावनाओं, सांस्कृतिक संदर्भों और रचनात्मक अभिव्यक्ति को पूर्णतः नहीं समझ सकतीं, इसलिए भाषा-शिक्षा में मानवीय भूमिका अभी भी अपरिहार्य है। इस प्रकार AI ने भाषा-शिक्षा को नए अवसरों से समृद्ध तो किया है, पर उसके संतुलित और विवेकपूर्ण उपयोग की आवश्यकता भी उतनी ही महत्वपूर्ण है।

 

Received 17 April 2025

Accepted 22 May 2025

Published 30 June 2025

DOI 10.29121/granthaalayah.v13.i6.2025.6473  

Funding: This research received no specific grant from any funding agency in the public, commercial, or not-for-profit sectors.

Copyright: © 2025 The Author(s). This work is licensed under a Creative Commons Attribution 4.0 International License.

With the license CC-BY, authors retain the copyright, allowing anyone to download, reuse, re-print, modify, distribute, and/or copy their contribution. The work must be properly attributed to its author.

 

Keywords: Artificial Intelligence, Language Education, Opportunities and Challenges, Learning Process, Linguistic Authenticity, Human Emotion, Human Role कृत्रिम बुद्धिमत्ता, भाषा शिक्षा, अवसर एवं चुनौतियाँ, सीखने की प्रक्रिया, भाषाई प्रामाणिकता, मानवीय भावना, मानवीय भूमिका


1.   प्रस्तावना

वर्तमान समय में कृत्रिम बुद्धिमत्ता जिस तीव्रता से शिक्षा जगत को प्रभावित कर रही है, उसने भाषा-शिक्षा के क्षेत्र में अभूतपूर्व परिवर्तन उत्पन्न किए हैं। भाषा-शिक्षा सदैव मानवीय संचार, संवेदना, अभिव्यक्ति और सांस्कृतिक अनुभवों से जुड़ी रही है, किंतु AI तकनीकों के प्रयोग से इसमें नई संभावनाएँ भी उभरकर सामने आई हैं। एक ओर AI आधारित टूल्स, चैटबॉट, अनुवादक, वॉइस-रिकग्निशन सिस्टम और व्यक्तिगत शिक्षण प्लेटफॉर्म भाषा सीखने की प्रक्रिया को अधिक रोचक, सरल और सुलभ बना रहे हैं, वहीं दूसरी ओर इनके अत्यधिक उपयोग से मानवीय रचनात्मकता, आलोचनात्मक क्षमता और भाषा की सांस्कृतिक गहराइयों को समझने में चुनौतियाँ भी खड़ी हो रही हैं। इस प्रकार AI का युग भाषा-शिक्षा के लिए अवसरों और चुनौतियों का एक संयुक्त परिदृश्य प्रस्तुत करता है, जिसे संतुलित और विवेकपूर्ण दृष्टि से समझना आवश्यक है। AI-आधारित भाषा-शिक्षण उपकरणों की सबसे बड़ी विशेषता यह है कि वे शिक्षार्थियों की व्यक्तिगत आवश्यकताओं के अनुरूप सीखने का अवसर प्रदान करते हैं। एडाप्टिव लर्निंग प्लेटफ़ॉर्म विद्यार्थी की गति, पूर्वज्ञान, क्षमता और त्रुटियों का विश्लेषण करके उसे उसी के अनुरूप अभ्यास, व्याकरण गतिविधियाँ तथा शब्दावली विस्तार के कार्य प्रदान करते हैं। इससे सीखने की प्रक्रिया एकरूप, नीरस या कठिन नहीं लगती, बल्कि हर विद्यार्थी अपनी गति से प्रगति कर पाता है। भाषाई कौशल—श्रवण, वाचन, लेखन और बोलने—को विकसित करने के लिए AI आधारित वॉइस-रिकग्निशन तकनीक उच्चारण सुधारने में भी प्रभावी सिद्ध हो रही है। उदाहरण के लिए, वर्चुअल स्पीकिंग ट्यूटर विद्यार्थियों के उच्चारण की त्रुटियों को तुरंत पहचानकर सुधार सुझाते हैं, जिससे किसी प्रशिक्षक के अभाव में भी विद्यार्थी नियमित अभ्यास कर सकता है।

भाषा शिक्षण में AI द्वारा निर्मित चैटबॉट एक महत्त्वपूर्ण माध्यम बनकर उभरे हैं। ये चैटबॉट विद्यार्थियों के साथ अनवरत संवाद स्थापित करते हैं, विभिन्न परिस्थितियों में भाषा के व्यावहारिक प्रयोग का वातावरण तैयार करते हैं और त्वरित प्रतिक्रिया देकर सीखने की प्रक्रिया को अधिक जीवंत बनाते हैं। किसी विदेशी भाषा के शिक्षार्थी के लिए यह तकनीक अत्यंत लाभप्रद है, क्योंकि वह संवाद करने के लिए किसी वास्तविक व्यक्ति की प्रतीक्षा किए बिना, कभी भी और कहीं भी अभ्यास कर सकता है। इसके साथ ही, अनुवाद तकनीक ने भाषाई विविधता के बीच संचार की दूरी को कम किया है। AI आधारित अनुवादक मिनटों में पाठ का अनुवाद करके वैश्विक स्तर पर ज्ञान तक पहुँच आसान बनाते हैं। यह विशेष रूप से उन विद्यार्थियों के लिए उपयोगी है, जिनके पास किसी भाषा का प्राथमिक ज्ञान तो है, परंतु जटिल पाठों को समझने में कठिनाई होती है।

भाषा-शिक्षा में रचनात्मक लेखन एक महत्त्वपूर्ण अंग है, और AI टूल लेखन को प्रोत्साहित करने में नई दिशा प्रदान कर रहे हैं। AI की सहायता से विद्यार्थी अपने लेखन की व्याकरणिक त्रुटियों, शैली, अनुच्छेद संरचना और शब्द चयन में सुधार पा सकते हैं। इसी प्रकार, कंटेंट जनरेट करने वाले टूल लेखन की प्रक्रिया को अधिक सुलभ बनाते हैं तथा नए विचार उत्पन्न करने में सहायता देते हैं। डिजिटल प्लेटफॉर्म पर उपलब्ध AI टूल्स कहानी लिखने, निबंध तैयार करने, सारांश बनाने और प्रस्तुति (प्रेज़ेंटेशन) तैयार करने में भी सहयोग करते हैं, जिससे विद्यार्थी अपनी रचनात्मक क्षमताओं को विकसित कर सकते हैं। इन अवसरों के साथ-साथ कुछ महत्त्वपूर्ण चुनौतियाँ भी सामने आती हैं। सबसे बड़ी चुनौती यह है कि AI आधारित तकनीकों पर अत्यधिक निर्भरता भाषा की स्वाभाविकता और मानवीय अभिव्यक्ति पर असर डाल सकती है। जब विद्यार्थी प्रत्येक कार्य में AI की सहायता लेने लगता है, तो उसकी अपनी सोचने-समझने, विश्लेषण करने और रचनात्मक लेखन की क्षमता कमजोर पड़ सकती है। भाषा सीखने की प्रक्रिया में आत्मअनुभव, संवादात्मक अभ्यास, सांस्कृतिक संदर्भ और मानवीय भावनाओं का जो महत्व है, उसे मशीनें पूरी तरह नहीं समझ सकतीं। अतः यदि AI को विवेकपूर्ण ढंग से प्रयोग न किया जाए तो यह भाषा-शिक्षा के मानवीय पक्ष को कमजोर कर सकता है।

दूसरी बड़ी चुनौती ‘भाषाई प्रामाणिकता’ की है। AI आधारित अनुवादक कई बार संदर्भ, मुहावरे, लोकोक्तियों या सांस्कृतिक अर्थों को सही ढंग से व्यक्त नहीं कर पाते, जिससे विद्यार्थियों में गलत प्रयोग की प्रवृत्ति उत्पन्न हो सकती है। इसी प्रकार, AI द्वारा निर्मित सामग्री में मौलिकता की कमी रहती है, और यदि विद्यार्थी ऐसे कंटेंट पर निर्भर होते हैं, तो उनकी अपनी सृजनात्मक बौद्धिकता प्रभावित हो सकती है। शिक्षक के लिए भी चुनौती यह है कि AI-जनित सामग्री और छात्र द्वारा स्वयं लिखित सामग्री के बीच अंतर करना कभी-कभी कठिन हो जाता है, जिससे मूल्यांकन की विश्वसनीयता प्रभावित होती है।

तकनीकी असमानता भी एक गंभीर चुनौती है। सभी विद्यार्थियों के पास उच्च गुणवत्ता वाले उपकरण, इंटरनेट कनेक्शन या AI प्रयोग के संसाधन उपलब्ध नहीं होते। इससे डिजिटल विभाजन (Digital Divide) बढ़ता है और भाषा सीखने के अवसर समान रूप से उपलब्ध नहीं हो पाते। ग्रामीण क्षेत्रों या आर्थिक रूप से कमजोर छात्रों के लिए AI आधारित भाषा शिक्षण प्लेटफ़ॉर्म तक पहुँच अभी भी सीमित है। शिक्षकों के लिए भी AI युग नई अपेक्षाएँ लेकर आया है। शिक्षक को तकनीक की समझ, डिजिटल संसाधनों का प्रयोग, AI-आधारित मूल्यांकन प्रणाली और छात्रों के डेटा की सुरक्षा जैसे मुद्दों का ध्यान रखना पड़ता है। AI शिक्षण को पूरी तरह प्रतिस्थापित नहीं कर सकता, बल्कि शिक्षक को मार्गदर्शक, मूल्यांकनकर्ता और भावनात्मक सहयोगी के रूप में और अधिक जिम्मेदार बनाता है। अतः शिक्षकों के लिए डिजिटल प्रशिक्षण अनिवार्य हो गया है ताकि वे AI उपकरणों का उपयोग सही, संतुलित और उद्देश्यपूर्ण ढंग से कर सकें।

भाषा-शिक्षा में नैतिक मुद्दे भी उभर रहे हैं। विद्यार्थियों के डेटा की गोपनीयता, AI प्लेटफॉर्म पर सामग्री की विश्वसनीयता, गलत सूचना का खतरा और AI द्वारा निर्मित सामग्री के कॉपीराइट जैसे प्रश्न गंभीर रूप से विचारणीय हैं। यदि इन पहलुओं पर ध्यान नहीं दिया गया, तो भाषा शिक्षण की गुणवत्ता और विश्वसनीयता दोनों प्रभावित हो सकती हैं। इन सभी चुनौतियों के बावजूद, AI के युग में भाषा-शिक्षा की संभावनाएँ अत्यंत व्यापक हैं। AI का उद्देश्य शिक्षक का स्थान लेना नहीं, बल्कि शिक्षण को अधिक प्रभावी, समृद्ध और लचीला बनाना है। भाषा-शिक्षा में AI का उपयोग तभी सार्थक होगा जब इसे मानवीय मूल्यों, रचनात्मकता, संवाद और सांस्कृतिक अनुभूति के साथ संतुलित किया जाए। आवश्यकता इस बात की है कि विद्यार्थी AI का उपयोग सहायक साधन के रूप में करें, न कि पूर्ण स्रोत के रूप में। यदि शिक्षक, विद्यार्थी और नीति-निर्माता मिलकर एक संतुलित, सुरक्षित और मानवीय दृष्टिकोण अपनाएँ, तो AI भाषा-शिक्षा के क्षेत्र में नवाचार, पहुँच विस्तार और गुणवत्ता सुधार का एक नया अध्याय खोल सकता है।

 

2.   कृत्रिम बुद्धिमत्ता (एआई)

हाल के वर्षों में AI शब्द एक आम बोलचाल की भाषा बन गया है. लेकिन इसका इस्तेमाल पहली बार 1950 के दशक में किया गया था, जिसका मतलव था मशीनों द्वारा मानव बुद्धिमत्ता की नकल करना। स्पष्टतः कहें तो AI सभी अनुप्रयोगों को संदर्भित करता है, जो जटिल कार्य करते है। जिनके लिए पहले मानवीय रचनात्मकता और भागीदारी की आवश्यकता होती थी। आज हमारे रोजमर्रा के जीवन में आर्टिफिशियल इंटेलिजेंस के कई उदाहरण मौजूद हैं, जैसे कि गूगल मैप्स, विभिन्न राइड हेलिंग एप्लिकेशन, फेस डिटेक्शन सॉफ्टवेयर, टेक्स्ट एडिटर या ऑटोकरेक्टर, सर्च रिकमेंडेशन, चैटबॉट, डिजिटल असिस्टेंट, ई-पेमेंट और नेचुरल लैंग्वेज प्रोसेसिंग (एनएलपी) टूल आदि। इन तकनीकों का उद्देश्य कम्प्यूटर को बौद्धिक कार्य करने में सक्षम बनाना है। इनमें निर्णय लेना, समस्या समाधान, धारणा और मानव संचार को समझना जैसे कार्य शामिल हैं।

 

2.1.     कृत्रिम बुद्धिमत्ता का उद्देश्य

यह बहुत प्रासांगिक है कि आज के समय में तकनीक इतनी, विकसित हो गई है कि जटिल गतिविधियों में इंसानों की मदद करने के लिए AI का विकास किया गया है। लेकिन वास्तव में कृत्रिम बुद्धिमत्ता का उद्देश्य क्या है? इसे हम कुछ निम्न बिन्दुओं की सहायता से समझ सकते हैं-

उच्च मात्रा वाले काम को स्वचालित करना AI लगातार और उच्च मात्रा वाले कम्प्यूटरीकृत कार्यो को बिना थके करने में मदद करता है। हालांकि अभी भी इससे कामों के लिए हमें मानवीय जांच की आवश्यकता है।

1)     इंटलिजेंस जोड़ने के लिए एक आदर्श उपकरण AI मौजूदा उत्पादों में इंटेलिजेंस जोड़ने में मदद करता है। इसका मतलब है कि AI पहले से मौजूद एप्लिकेशन में मूल्य जोड़ सकता है।

2)     प्राकृतिक भाषा प्रसंस्करण-डीप न्यूरल नेटवर्क की मदद से AI का आगमन काफी मददगार है। इस तकनीक का उपयोग प्राकृतिक मानव भाषा को पहचानने और बनाने के लिए किया जाता है। उदाहरण के लिए एलेक्सा गूगल सर्च और गूगल फोटोज के साथ बातचीत AI के कारण संभव है।

3)     सुरक्षा को बेहतर बनाना आज के समय में साइबर सुरक्षा हम सबके सामने सबसे बड़ा प्रश्न है परन्तु AI के द्वारा आज साइबर सुरक्षा को काफी हद तक बेहतर बना लिया गया है।

 

 

 

3.   शिक्षा के क्षेत्र में AI की भूमिका

AI का मूल लक्ष्य मानव बुद्धि की नकल करना और जटिल मानवीय कार्यों को अधिक कुशलतापूर्वक और तेजी से निष्पादित करना है। आज शैक्षिक क्षेत्र में AI पूरी शिक्षण अधिगम प्रक्रिया को तेजी से आगे बढ़ा सकता है। इसी परिप्रेक्ष्य में शिक्षा क्षेत्र में कृत्रिम बुद्धिमत्ता की भूमिका पर नजर डालते हैं।

1)     अनुकूलित शिक्षण

शिक्षा क्षेत्र में AI की भूमिकाओं में से एक है सीखने को अनुकूलित करने में मदद करना। पारम्परिक कक्षाएं अक्सर एक आकार-फिट प्रकार की होती हैं। हालाँकि, यह दृष्टिकोण इस तथ्य को अनदेखा करता है कि प्रत्येक बच्चा अद्वितीय है. जिसमें अलग-अलग सीखने की शैलियाँ, कौशल और कमियाँ हैं। यहाँ शिक्षा क्षेत्र में AI की भागीदारी आती है सीखने की सामग्री को अनुकूलित करना। अनुकूली शिक्षण पद्धति उन सर्वोत्तम तरीकों में से एक है, जिससे AI सीखने को व्यक्तिगत बनाने में मदद कर सकता है। इस तकनीक में AI का वास्तविक समय में एक शिक्षार्थी की ताकत और कमियों का मूल्यांकन करता है और व्यक्तिगत सीखने के रास्तों की सिफारिश करता है। इसके अलावा AI अनुकूलित सामग्री अनुशंसाओं, व्यक्तिगत आकलन, अनुकूलित प्रतिक्रया आदि में मदद कर सकता है।

2)     विशेष आवश्यकता वाले छात्रों की शिक्षा के लिए AI:

आज विशेष आवश्यकता वाले छात्रों के लिए AI की मदद से विशेष सुविधाएं प्राप्त हो सकती हैं। विकलांगता से पीड़ित छात्र AI की मदद से बातचीत के नए तरीके खोज सकते हैं एवं AI. उनकी व्यक्तिगत आवश्यकताओं के अनुरूप पाठ योजनाएं बनाने में सहायता कर सकता है। उदाहरण के लिए, भाषण या संचार संबंधी अक्षमता वाले छात्र शिक्षकों और साथी छात्रों के साथ संवाद करने के लिए AI संचालित वाक पहचान और टैक्स्ट-टू-स्वीच तकनीकों का उपयोग कर सकते हैं।

3)     बेहतर शिक्षण के लिए AI

AI में सम्पूर्ण शिक्षण प्रक्रिया को सरल और अधिक कुशल बनाने की क्षमता है। यहाँ कुछ तरीके दिए गए हैं। जिनसे AI तकनीक शिक्षकों को अधिक प्रभावी ढंग से पढ़ाने में मदद कर सकती है।

1)     अनुकूली शिक्षण सामग्री तैयार करना।

2)     वास्तविक समय में छात्रों की आवश्यकताओं के आधार पर फीडबैक प्रदान करना।

3)     स्मार्ट सामग्री बनाना।

4)     मूल्यांकन, ग्रेडिंग, विद्यार्थियों के प्रश्नों का उत्तर देने आदि जैसे कार्यों में सुविधा प्रदान करना।

5)     अनुकूली प्रौद्योगिकियों के उपयोग के माध्यम से विशेष आवश्यकता वाले छात्रों के साथ बातचीत में सुधार करना।

 

4.   भाषा सीखने के लिए AI

आजकल AI और ML तकनीकों की बदौलत शिक्षार्थी दुनिया में कहीं से भी कोई भी नई भाषा सीख सकते हैं। ऐसे कई वर्चुअल प्लेटफॉर्म है जो उच्चारण, व्याकरण आदि जैसे पहुलओं पर वास्तविक समय की प्रतिक्रिया के साथ भाषा के पाठ प्रदान करते हैं। यही बात ऑनलाइन सीखने के लिए भी कही जा सकती है।

 

5.   भाषा-अधिगम में AI की भूमिका

कृत्रिम बुद्धिमत्ता (AI) ने भाषा-अधिगम की प्रक्रिया को अत्यधिक प्रभावी, व्यक्तिगत और सहज बनाया है। परंपरागत भाषा-शिक्षा जहाँ शिक्षक-केंद्रित और समय-सीमित थी, वहीं AI आधारित उपकरणों ने इस प्रक्रिया को सीखने वाले की आवश्यकताओं और क्षमताओं के अनुरूप अनुकूलित कर दिया है। एडाप्टिव लर्निंग सिस्टम विद्यार्थियों की गति, त्रुटियों, पूर्वज्ञान और रुचियों का विश्लेषण कर व्यक्तिगत अभ्यास प्रश्न तैयार करते हैं, जिससे सीखना अधिक लक्ष्योन्मुख और प्रभावी बनता है। वॉइस-रिकग्निशन तकनीक उच्चारण में सुधार लाने में महत्वपूर्ण भूमिका निभाती है; यह विद्यार्थी के बोलने के तरीक़े का विश्लेषण कर तुरंत प्रतिक्रिया (Feedback) प्रदान करती है। चैटबॉट और वर्चुअल असिस्टेंट वास्तविक जीवन की संवाद स्थितियों का अभ्यास करवाते हैं, जिससे सीखने वालों के श्रवण और बोलने के कौशल में स्वाभाविक सुधार होता है। इसके अतिरिक्त, AI आधारित अनुवादक और शब्दार्थ उपकरण बहुभाषिकता को प्रोत्साहित करते हुए जटिल पाठों को समझना सरल बनाते हैं। लेखन क्षेत्र में भी AI व्याकरण सुधार, वाक्य संरचना, शैली और शब्द चयन में सहायता प्रदान कर विद्यार्थियों के रचनात्मक कौशल को सुदृढ़ करता है। इस प्रकार AI केवल सहायक उपकरण नहीं, बल्कि भाषा-अधिगम को अधिक सुलभ, आकर्षक और व्यवहारिक बनाने वाला एक शक्तिशाली माध्यम बन चुका है, जिसने भाषा शिक्षा को तकनीकी नवाचार के नए आयामों से समृद्ध किया है।

 

6.   वॉइस-रिकग्निशन और उच्चारण सुधार की तकनीकें

कृत्रिम बुद्धिमत्ता आधारित वॉइस-रिकग्निशन तकनीक ने भाषा-अधिगम में उच्चारण सुधार की दिशा में क्रांतिकारी परिवर्तन किए हैं। यह तकनीक शिक्षार्थी की आवाज़ को पहचानकर उसे डिजिटल रूप में परिवर्तित करती है और फिर उसे मानक उच्चारण से तुलना कर त्रुटियों का विश्लेषण करती है। वॉइस-रिकग्निशन सिस्टम भाषाई ध्वनियों (Phonemes), बलाघात (Stress), स्वराघात (Intonation), लय (Rhythm) और शब्दों के उच्चारण पैटर्न को समझने में सक्षम होते हैं, जिसके आधार पर यह शिक्षार्थी को त्वरित प्रतिक्रिया प्रदान करते हैं। कई AI आधारित अनुप्रयोग—जैसे वर्चुअल स्पीकिंग ट्यूटर, भाषा सीखने वाले ऐप और स्पीच-विश्लेषण प्लेटफॉर्म—शिक्षार्थी की ध्वनि के सूक्ष्म अंतर पकड़कर उन्हें सुधारने के लिए सुझाव, नमूना उच्चारण, ध्वन्यात्मक संकेत और अभ्यास गतिविधियाँ उपलब्ध कराते हैं। ये तकनीकें दोहराव (Repetition), त्वरित फीडबैक और आत्म-सुधार पर आधारित होती हैं, जिससे शिक्षार्थी अपने उच्चारण को बिना शिक्षक की उपस्थिति में भी निरंतर सुधार सकता है। इसके अतिरिक्त, डीप लर्निंग और स्पीच-सिंथेसिस तकनीकों ने विभिन्न भाषाओं के स्वाभाविक उच्चारण, स्थानीय लहजे और प्राकृतिक टोन को समझना आसान बनाया है। वॉइस-रिकग्निशन की मदद से शिक्षार्थी न केवल शुद्ध उच्चारण सीखता है, बल्कि भाषा बोलते समय आत्मविश्वास, प्रवाह और स्वाभाविकता भी विकसित करता है। इस प्रकार, यह तकनीक भाषा-अधिगम को अधिक इंटरैक्टिव, सटीक और प्रभावशाली बनाकर शिक्षण प्रक्रिया में एक महत्वपूर्ण भूमिका निभा रही है।

 

7.   चैटबॉट और वर्चुअल संवाद: भाषा के व्यावहारिक उपयोग के अवसर

कृत्रिम बुद्धिमत्ता आधारित चैटबॉट और वर्चुअल संवाद प्लेटफॉर्म ने भाषा-अधिगम में व्यावहारिक उपयोग के नए अवसर उत्पन्न किए हैं। परंपरागत भाषा-शिक्षा में विद्यार्थियों को वास्तविक परिस्थितियों में संवाद करने का पर्याप्त अवसर नहीं मिल पाता था, लेकिन चैटबॉट इस कमी को प्रभावी रूप से पूरा करते हैं। AI चैटबॉट विभिन्न संवाद स्थितियों—जैसे अभिवादन, खरीदारी, यात्रा, समस्या-समाधान या औपचारिक वार्तालाप—का सिमुलेशन करके सीखने वाले को वास्तविक भाषा प्रयोग का वातावरण प्रदान करते हैं। विद्यार्थी इन चैटबॉट्स के साथ अनवरत बातचीत कर सकते हैं, जबकि सिस्टम उनके व्याकरण, शब्द चयन, वाक्य संरचना और संप्रेषण शैली का विश्लेषण करके त्वरित प्रतिक्रिया देता है। इस प्रक्रिया से भाषा का व्यावहारिक ज्ञान, संवाद कौशल, शब्दावली और अभिव्यक्ति क्षमता स्वाभाविक रूप से विकसित होती है।

वर्चुअल संवाद वातावरण सीखने वाले में आत्मविश्वास भी बढ़ाता है, क्योंकि वह गलतियों के डर के बिना बोलने और लिखने का अभ्यास कर सकता है। विदेशी भाषाओं के शिक्षार्थियों के लिए यह तकनीक विशेष रूप से लाभकारी है, क्योंकि चैटबॉट वास्तविक बोलचाल की शैली, विविध लहजों और सांस्कृतिक संदर्भों को भी समझने में सहायता करते हैं। इसके अतिरिक्त, एआई आधारित वर्चुअल ट्यूटर 24×7 उपलब्ध होते हैं, जिससे अभ्यास का समय और स्थान पर निर्भरता समाप्त हो जाती है। इस प्रकार, चैटबॉट और वर्चुअल संवाद तकनीकें भाषा के वास्तविक उपयोग, निरंतर अभ्यास और सशक्त संप्रेषण कौशल के विकास में अत्यंत महत्वपूर्ण भूमिका निभाती हैं, और भाषा-अधिगम को अधिक जीवंत, व्यक्तिगत और व्यवहारिक बनाती हैं।

 

8.   अनुवाद तकनीक और बहुभाषिकता का विकास

कृत्रिम बुद्धिमत्ता आधारित अनुवाद तकनीकों ने भाषा-अधिगम और बहुभाषिक संचार के क्षेत्र में अभूतपूर्व विकास किया है। परंपरागत अनुवाद प्रक्रियाएँ समय-सापेक्ष और श्रमप्रधान होती थीं, जिससे सीखने वाले को सीमित सामग्री और संसाधन ही उपलब्ध हो पाते थे। AI आधारित अनुवादक जैसे Google Translate, DeepL और अन्य मशीन लर्निंग आधारित सिस्टम्स मिनटों में पाठ का अनुवाद कर देते हैं, जिससे बहुभाषिक सामग्री तक त्वरित पहुँच संभव होती है। ये तकनीकें न केवल शब्दार्थ का अनुवाद करती हैं, बल्कि वाक्य संरचना, भाव और संदर्भ के अनुसार उपयुक्त अनुवाद प्रदान करने में भी सक्षम हो रही हैं।

बहुभाषिकता का विकास AI तकनीक के माध्यम से और सशक्त हुआ है। शिक्षार्थी विभिन्न भाषाओं में संवाद करने, दस्तावेज़ समझने और वैश्विक स्तर पर ज्ञान का आदान-प्रदान करने में सक्षम हुए हैं। अनुवाद तकनीक न केवल भाषा-अधिगम को सरल बनाती है, बल्कि वैश्विक शिक्षा, व्यवसाय, विज्ञान और संस्कृति में बहुभाषिक सहभागिता को भी प्रोत्साहित करती है। इसके साथ ही, यह तकनीक भाषाई विविधता की सुरक्षा में योगदान देती है, क्योंकि दुर्लभ या स्थानीय भाषाओं के लिए भी AI आधारित मॉडल विकसित किए जा रहे हैं। फिर भी, कुछ चुनौतियाँ विद्यमान हैं। AI अनुवाद कभी-कभी सांस्कृतिक संदर्भ, मुहावरे और भावनाओं को सही ढंग से प्रस्तुत नहीं कर पाता, जिससे सीखने वाले को त्रुटिपूर्ण समझ हो सकती है। इसके बावजूद, AI आधारित अनुवाद तकनीक भाषा-अधिगम में बहुभाषिकता के विकास को गति प्रदान करने वाला एक शक्तिशाली उपकरण बन गई है, जो सीखने वाले को वैश्विक और सांस्कृतिक रूप से संवेदनशील बनाने में मदद करती है।

 

8.1.     शिक्षा में कृत्रिम बुद्धिमत्ता के लाभ

1)     शिक्षण अधिगम विधियों को प्रभावी बनाना।

2)     बेहतर शिक्षक छात्र संचार में सहायता करना।

3)     वास्तविक समय पर प्रतिक्रिया प्रदान करना।

4)     लचीला शिक्षण वातावरण स्थापित करना।

5)     विशेष आवश्यकता वाले छात्रों के लिए समावेशी शिक्षण अधिगम सामग्री तैयार करना।

6)     समय की बचत।

7)     अनुकूली शिक्षण सामग्री तैयार करना।

8)     चैटबॉट के माध्यम से 24x7 सहायता।

9)     कौशल अंतराल को प्रभावी ढंग से संबोधित करना।

10) दूरस्थ शिक्षा को सुविधाजनक बनाना।

11) शिक्षा में AI की चुनौतियां -

 गोपनीयता और सुरक्षा संबंधी चिंताएं- छात्रों से बड़ी मात्रा में व्यक्तिगत डेटा का संग्रह और विश्लेषण गलत हाथों में पड़ने पर जोखिम पैदा कर सकता है। संस्थानों को यह सुनिश्चित करना चाहिए कि वे छात्रों की गोपनीयता की रक्षा करने और डेटा उल्लंघन को रोकने के लिए उचित उपाय करें।

विश्वास की कमी- छात्र एआई शिरटग द्वारा दिए गए ग्रेड या फीडबैक को स्वीकार करने में झिझक सकते हैं। वे मानवीय इनपुट और मूल्यांकन को प्राथमिकता देते हैं। छात्रों के साथ विश्वास स्थापित करना और उन्हें तकनीक के साथ सहज महसूस कराना महत्वपूर्ण है।

लागत- कर्षत्रम बुद्धिमता प्रणाली को लागू करना और बनाए रखना महंगा हो सकता है। जो उन शैक्षणिक संस्थानों के लिए एक चुनौती हो सकती है। जो पहले ही बजट की कमी का सामना कर रहे हैं। सस्थानों को अपनी कक्षाओं में कर्षत्रम बुद्धिमत्ता प्रणाली लागू करने की लागत और लाभों पर सावधानीपूर्वक विचार करना चाहिए।

संभावित पूर्वाग्रह- AI सिस्टम पक्षपाती हो सकते हैं, खासकर अगर उन्हें पक्षपाती डेटा पर प्रशिक्षित किया जाता है। इसका परिणाम कुछ छात्रों के साथ अनुचित व्यवहार हो सकता है। अतः संस्थानों को यह सुनिश्चित करना चाहिए कि उनके AI सिस्टम निष्पक्ष हो और मौजूदा असमानताओं को बनाये न रखें।

पहुँच सुनिश्चित करना- AI आधारित शिक्षा प्रणालियों को पहुंच को ध्यान में रखते हुए डिजाइन किया जाना चाहिए, ताकि यह सुनिश्चित किया जा सके कि विकलांगो सहित सभी छात्र प्रौद्योगिकी तक पहुँच और उसका उपयोग कर सकें।

पारदर्शिता- सभी प्रणालियाँ पारदर्शी होनी चाहिए तथा स्पष्ट स्पष्टीकरण होना चाहिए कि वे कैसे और क्यों निर्णय लेती है? इससे छात्रों के साथ विश्वास बनाने में मदद मिल सकती है और यह सुनिश्चित हो सकता है कि वे तकनीक को समझते हैं।

निष्पक्षता- Al आधारित शिक्षा प्रणाली निष्पक्ष होनी चाहिए तथा यह सुनिश्चित होना चाहिए कि सभी छात्रों के साथ समान व्यवहार किया जाए तथा उनकी जाति, लिंग या अन्य कारकों के आधार पर उनके साथ भेदभाव न किया जाए।

 

9.   निष्कर्ष

कृत्रिम बुद्धिमत्ता का युग भाषा-शिक्षा के लिए एक महत्वपूर्ण मोड़ लेकर आया है, जहाँ अवसर और चुनौतियाँ दोनों समान रूप से उपस्थित हैं। यदि AI का उपयोग सीखने को सहयोगी, सृजनात्मक और बहुआयामी बनाने में किया जाए, तो यह भाषा-शिक्षा की गुणवत्ता को अत्यधिक बढ़ा सकता है। परंतु यदि विद्यार्थी या शिक्षक अत्यधिक निर्भरता विकसित कर लेते हैं, तो भाषा के मूल तत्व—मानवीय संवेदना, संवाद, आलोचनात्मक चिंतन और सांस्कृतिक गहराई—कमज़ोर पड़ सकते हैं। इसलिए आवश्यक है कि AI को शिक्षा का प्रतिस्थापक नहीं, बल्कि सहायक उपकरण माना जाए। संतुलित उपयोग, तकनीकी साक्षरता, नैतिक सावधानी और शिक्षक की सक्रिय भूमिका के माध्यम से AI भाषा-शिक्षा को अधिक प्रभावी, न्यायसंगत और वैश्विक बनाने की क्षमता रखता है। अंततः, उद्देश्य यह होना चाहिए कि तकनीक भाषा-अभ्यास को सहज बनाए, पर मानवीय रचनात्मकता और संवेदनात्मक तत्वों को भी पूर्ण संरक्षण प्रदान करे।

 

REFERENCES

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