Effect of
Anxiety and Stress on the Job Satisfaction of Secondary School Teachers
माध्यमिक विद्यालयों के अध्यापकों की कार्य संतुष्टि पर चिंताग्रस्तता एवं तनाव का प्रभाव
Dharmendra Singh
1, Dr. Vinod Kumar Jain 2
1 Research Scholar, Faculty of Education, Teerthanker Mahaveer University, Moradabad, India
2 Principal, Faculty of Education, Teerthanker Mahaveer University, Moradabad, India
|
ABSTRACT |
||
English: In schools, teachers and students are mutually
dependent on each other. The social, intellectual, physical, mental, and
technical development of students is made possible through the guidance of
teachers. Therefore, teachers hold a special place in society, as they are
considered the makers of the future. The behavior
of teachers significantly influences students, who often see their teachers
as role models and strive to emulate them. However, various factors affect
the job satisfaction of secondary school teachers. Similarly, different
factors influence the job satisfaction of female teachers in secondary
schools. To examine these effects, 120 male and female secondary school
teachers from the Bijnor district were selected using a random sampling
method. Standardized tools were used for data collection. For measuring job
satisfaction, the scale developed by Dr. Pramod Kumar and D.N. Muthya was used. To assess anxiety, the scale by H.
Sharma, R.L. Bhardwaj, and M. Bhargava was employed. For stress, the scale
developed by Dr. Arun Kumar Singh, Dr. Ashish Kumar Singh, and Dr. Aparna
Singh was used. The data obtained from these standardized instruments were analyzed using statistical methods, including the
calculation of mean, standard deviation, and t-test. Based on the results, it
was found that there is no significant difference in job satisfaction between
male and female secondary school teachers across different categories. Hindi: विद्यालयों
में अध्यापक
एवं छात्र एक
दूसरे पर
पूर्ण रूप से
निर्भर होते
हैं। छात्रÂ का
सामाजिक , बौद्धिक , शारीरिक, मानसिक एवं
तकनीकीÂ
विकासÂ
अध्यापकोंÂ द्वारा
सम्भवÂ
हैं । जिसकेÂ कारण
अध्यापकों
को समाज में एक
विशेष स्थान
दिया जाता
हैं।
क्योंकि वह
छात्र एवं
छात्राओं के
भविष्य
निर्माता
होते हैं।
अध्यापकों
के आचरण का
प्रभाव
छात्र एवं छात्राओं
पर पड़ता
हैं।
विद्यार्थी
अध्यापकों
को अपने
आदर्श के रूप
में देखते
हैं , और
उन जैसा बनने
का प्रयास
करते हैं।
लेकिन उद्देश्यों
के अनुसार
माध्यमिक
विद्यालयों
के
अध्यापकों की
कार्य
संतुष्टि पर
विभिन्न
कारकों का
प्रभाव
पड़ता हैं।
उसी प्रकार
माध्यमिक
विद्यालयों
की
अध्यापिकाओं
की कार्य
संतुष्टि पर
भी विभिन्न
कारकों का
प्रभाव
पड़ता हैं।
प्रभावों को
जानने के लिए
जनपद बिजनौर
के माध्यमिक विद्यालयों
के 120 अध्यापक
एवं
अध्यापिकाओं
का चयन
यादृच्छिक
विधि द्वारा
किया गया
हैं। आंकड़ों
का चयन करने
के लिए
मानकीकृत
उपकरणों का
प्रयोग किया
गया हैं।
कार्य
संतुष्टि के
लिए डॉ.
प्रमोद
कुमार एवं
डी.एन. मुथ्या
द्वारा तैयार
मापनी का
प्रयोग किया
गया हैं।
चिंताग्रस्तता
के लिए
चिंताग्रस्तता
मापनी -एच. शर्मा, आर.एल.
भारद्वाज और
एम.भार्गव
द्वारा
तैयार मापनी
का प्रयोग
किया गया
हैं। तनाव
मापनी - डॉ.अरुण
कुमार सिंह, डॉ. आशीष
कुमार सिंह
एवं डॉ.
अपर्णा सिंह
इन मानकीकृत
उपकरणों से
प्राप्त
आंकड़ों का
मूल्यांकन
सांख्यिकी
विधि से
मध्यमान , मानक
विचलन एवं टी.
परीक्षण
प्राप्त
करने के उपरांत
कार्य
संतुष्टि का
पता लगाया
गया हैं। आंकड़ों
से प्राप्त
परिणामों के
आधार पर कहां
गया है , कि
प्रत्येक
श्रेणी के
माध्यमिक
विद्यालयों
के
अध्यापकों
एवं
अध्यापकों
की कार्य
संतुष्टि
में सार्थक
अंतर नहीं
पाया गया हैं। |
|||
Received 23 March 2025 Accepted 30 April 2025 Published 09 June 2025 DOI 10.29121/granthaalayah.v13.i5.2025.6207 Â Funding: This research
received no specific grant from any funding agency in the public, commercial,
or not-for-profit sectors. Copyright: © 2025 The
Author(s). This work is licensed under a Creative Commons
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reuse, re-print, modify, distribute, and/or copy their contribution. The work
must be properly attributed to its author. |
|||
Keywords: Job Satisfaction, Anxiety, Stress, अध्यापकों
की कार्य
संतुष्टि, चिंताग्रस्तता
और तनाव |
1. प्रस्तावना
शिक्षा केवल
ज्ञान प्रदान करने की
प्रक्रिया
नहीं है,
बल्कि यह समाज
को दिशा
देने का
एक सशक्त माध्यम है। जब
यह कहा
जाता है
कि "भारत के
भाग्य का निर्धारण
उसकी कक्षा
में होता
है," तो
इसका तात्पर्य
यह है
कि कक्षा
में अध्ययनरत
छात्र-छात्राएं
ही भविष्य
के नागरिक,
नेता, वैज्ञानिक,
शिक्षक और विचारक
बनते हैं।
इन भविष्यनिर्माताओं
को आकार
देने का
महत्वपूर्ण
कार्य शिक्षक करते हैं,
इसीलिए उन्हें "राष्ट्र
निर्माता"
कहा जाता
है। शिक्षक
का कार्य
मात्र पाठ्यक्रम
को समाप्त
करना नहीं
है, बल्कि
वह विद्यार्थियों
के बौद्धिक,
भावनात्मक,
सामाजिक और नैतिक
विकास में भी
योगदान देता है।
यह कार्य
तभी प्रभावी
ढंग से
संपन्न हो सकता
है, जब
शिक्षक स्वयं मानसिक
रूप से
संतुलित, प्रेरित और अपने
कार्य से संतुष्ट
हो। कार्य
संतुष्टि
किसी भी
पेशे में
कार्यरत व्यक्ति की ऊर्जा,
समर्पण और प्रेरणा
का मूल
स्रोत होती है,
लेकिन शिक्षक के लिए
यह और
भी अधिक
महत्त्वपूर्ण
हो जाता
है क्योंकि
उसकी प्रेरणा
और मानसिक
स्थिति का सीधा
प्रभाव विद्यार्थियों
पर पड़ता
है। यदि
शिक्षक को विद्यालय
में पर्याप्त
मान-सम्मान,
सहयोगी वातावरण, उपयुक्त संसाधन और संतुलित
कार्यभार
प्राप्त हो, तो उसकी कार्य
संतुष्टि
स्वाभाविक
रूप से
बढ़ेगी। इसके विपरीत,
यदि उसे
उपेक्षा, प्रशासनिक
दबाव, संसाधनों
की कमी
या अत्यधिक
कार्यभार
का सामना
करना पड़े,
तो उसका
मनोबल टूट सकता
है, जिससे
न केवल उसकी कार्यक्षमता
में गिरावट
आती है,
बल्कि शिक्षा की गुणवत्ता
पर भी
प्रतिकूल
प्रभाव पड़ता है।
इसलिए शिक्षक की कार्य
संतुष्टि
केवल व्यक्तिगत
संतोष का विषय
नहीं है,
बल्कि यह पूरे
शैक्षिक तंत्र की
गुणवत्ता
और समाज
के भविष्य
से गहराई
से जुड़ी
हुई है।
एक संतुष्ट
शिक्षक न केवल प्रभावशाली
रूप से
पढ़ाता है, बल्कि
वह नवीन
प्रयोग करता है,
विद्यार्थियों
की रुचियों
को समझता
है, उनमें
आत्मविश्वास
और नैतिक
मूल्यों का संचार
करता है।
वह विद्यार्थियों
में नेतृत्व
क्षमता, सहिष्णुता,
सहयोग और आत्मविकास
जैसे गुणों
को विकसित
करता है।
इस प्रकार
शिक्षक की कार्य
संतुष्टि
छात्र के समग्र
विकास और समाज
के निर्माण
में सहायक
बनती है।
शिक्षक किसी भी
शिक्षा प्रणाली की रीढ़
होते हैं।
उनकी कार्य
संतुष्टि
न केवल उनके व्यक्तिगत
जीवन की
गुणवत्ता
को प्रभावित
करती है,
बल्कि यह विद्यार्थियों
के सीखने
के अनुभव,
विद्यालयी
वातावरण तथा शिक्षा
व्यवस्था
की समग्र
गुणवत्ता
को भी
प्रभावित
करती है।
विशेष रूप से
माध्यमिक
विद्यालयों
में कार्यरत
अध्यापक अपेक्षाकृत
अधिक जिम्मेदारियों,
पाठ्यक्रम
की जटिलताओं,
प्रशासनिक
दबावों और समाज
एवं अभिभावकों
की अपेक्षाओं
के बीच
कार्य करते हैं।
ऐसी परिस्थितियों
में कार्यस्थल
पर उत्पन्न
चिंताग्रस्तता
(Anxiety) और तनाव
(Stress) उनकी कार्य संतुष्टि
को नकारात्मक
रूप से
प्रभावित
कर सकते
हैं। जब
शिक्षक मानसिक रूप से
तनावग्रस्त
होते हैं,
तो उनके
शिक्षण कौशल, निर्णय
लेने की
क्षमता, विद्यार्थियों
से संवाद,
तथा प्रेरणा
स्तर में
गिरावट आती है,
जो उनके
पेशेवर विकास के
मार्ग में बाधा
बनती है।
अतः इस
अध्ययन का मुख्य
उद्देश्य
यही है
कि माध्यमिक
विद्यालयों
के अध्यापकों
की कार्य
संतुष्टि
पर चिंताग्रस्तता
एवं तनाव
के प्रभावों
का विश्लेषण
किया जा
सके और
ऐसे व्यावहारिक
सुझाव प्रस्तुत किए जा
सकें, जिनसे
उनकी मानसिक
स्थिति को संतुलित
कर शिक्षा
की गुणवत्ता
को सुदृढ़
किया जा
सके। निष्कर्षतः
कहा जा
सकता है
कि शिक्षा
की गुणवत्ता,
समाज की
उन्नति और राष्ट्र
निर्माण की दिशा
में शिक्षक
की स्थिति,
संतुष्टि
और प्रेरणा
अत्यंत महत्वपूर्ण
हैं। अतः
यह आवश्यक
है कि
शिक्षक को सम्मान
दिया जाए, उसकी आवश्यकताओं
को समझा
जाए और उसे एक प्रेरक
तथा सहयोगपूर्ण
वातावरण प्रदान किया जाए, ताकि वह
अपने दायित्वों
का निर्वहन
प्रभावी ढंग से
कर सके।
2. अध्ययन का उद्देश्य
1)
शासकीय सहायता
प्राप्त माध्यमिक विद्यालयों
के अध्यापकों
एवं अध्यापिकाओं
की कार्य
संतुष्टि
का अध्ययन
करना।
2)
वित्तविहीन मान्यता
प्राप्त माध्यमिक विद्यालयों
के अध्यापकों
एवं अध्यापिकाओं
की कार्य
संतुष्टि
का अध्ययन
करना।
3. परिकल्पना
1)
शासकीय सहायता
प्राप्त माध्यमिक विद्यालयों
के अध्यापकों
एवं अध्यापिकाओं
की कार्य
सतुष्टि में सार्थक
अंतर नहीं
है।
2)
वित्तविहीन मान्यता
प्राप्त माध्यमिक विद्यालयों
के अध्यापकों
एवं अध्यापिकाओं
की कार्य
संतुष्टि
में सार्थक
अंतर नहीं
है।
अध्ययन
की रूपरेखा
- प्रस्तुत शोध
में शोधार्थी
द्वारा जनपद बिजनौर
के शासकीय
सहायता प्राप्त माध्यमिक विद्यालयों
तथा वित्तविहीन
माध्यमिक
विद्यालयों
में कार्यरत
कुल 120 अध्यापकों
एवं अध्यापिकाओं
का चयन
किया गया
है। चयनित
प्रतिभागियों
में 60 पुरुष
अध्यापक तथा 60 महिला
अध्यापिकाएँ
शामिल हैं।Â
शासकीय माध्यमिक विद्यालय |
वित्तविहीन माध्यमिक विद्यालय |
||
अध्यापक |
अध्यापिकाएं |
अध्यापक |
अध्यापिकाएं |
30
|
30
|
30
|
30
|
अध्ययन
में प्रयुक्त
उपकरण -Â प्रस्तुत अध्ययन
में शोध
के उद्देश्यों
की पूर्ति
हेतु उपयुक्त
एवं मानकीकृत
मापन उपकरणों
का चयन
किया गया।
इन उपकरणों
का चयन
उनकी विश्वसनीयता,
वैधता एवं शैक्षणिक
अनुसंधान
में व्यापक
उपयोगिता
के आधार
पर किया
गया है।
अध्ययन में निम्नलिखित
मापनी उपकरणों का प्रयोग
किया गया:
1)
कार्य
संतुष्टि
मापनी (Job Satisfaction
Scale) - शिक्षकों की कार्य
संतुष्टि
के स्तर
का मूल्यांकन
करने हेतु
डॉ. प्रमोद
कुमार एवं डी.
एन. मुथ्था
द्वारा निर्मित कार्य संतुष्टि
मापनी का प्रयोग
किया गया।
यह मापनी
शिक्षकों
की नौकरी
से संबंधित
संतुष्टि
के विभिन्न
आयामों को मापने
में सक्षम
है।
2)
चिंताग्रस्तता
मापनी (Anxiety Scale)-शिक्षकों
में चिंता
अथवा मानसिक
बेचैनी की प्रवृत्ति
को जानने
हेतु एच.
शर्मा, आर. एल. भारद्वाज एवं एम.
भार्गव द्वारा विकसित चिंताग्रस्तता मापनी
का उपयोग
किया गया।
यह मापनी
व्यक्ति की आंतरिक
मनोस्थिति
को उजागर
करने में
सहायक होती है,
तथा चिंता
की तीव्रता
को मापन
योग्य बनाती है।
3)
तनाव मापनी
(Stress Scale) - शिक्षकों
में कार्यस्थल
संबंधी तनाव की
स्थिति को मापने
हेतु डॉ.
अरुण कुमार
सिंह, डॉ.
आशीष कुमार
सिंह एवं
डॉ. अपर्णा
सिंह द्वारा
विकसित तनाव मापनी
का उपयोग
किया गया।
यह मापनी
शिक्षकों
के शारीरिक,
मानसिक, सामाजिक और व्यावसायिक
तनाव के
स्तर को
मापती है।
आंकड़ों
का विश्लेषण-
शोध परिकल्पनाओं
का परीक्षण
–
परिकल्पना
क्रमांक –
01
शासकीय सहायता
प्राप्त माध्यमिक विद्यालयों
के अध्यापकों
एवं अध्यापिकाओं
की कार्य
संतुष्टि में सार्थक अंतर नहीं
हैं।
परिणाम
तालिका 01
क्रमांक संख्या |
श्रेणी |
न्यादर्श |
कार्य संतुष्टि |
सार्थकता का
स्तर एवं
परिकल्पना
की स्वीकृति
/अस्वीकृति |
|||
मध्यमान |
मानक विचलन |
टी-परीक्षणका मान |
0.05 |
0.01 |
|||
1 |
शासकीय सहायता
प्राप्त माध्यमिक विद्यालयों
के अध्यापक |
30=N |
25.26 |
2.88 |
|
|
|
2 |
शासकीय सहायता
प्राप्त माध्यमिक विद्यालयों
की अध्यापिकाएं |
30=N |
26.10 |
2.35 |
1.75 |
1.98 स्वीकृत |
2.63 स्वीकृत |
4. प्रदतों की व्याख्या
परिकल्पना संख्या-1
की पुष्टि
के लिए
तालिका क्रमांक संख्या 01 में प्रदतों
के विश्लेषण
के मान
प्राप्त करके परिणाम
बताएं गए हैं। इस
तालिका में शासकीय
सहायता प्राप्त माध्यमिक विद्यालयों
के अध्यापकों
एवं अध्यापिकाओं
की कार्य
संतुष्टि
में सार्थक
अंतर को
प्रस्तुत
किया गया
हैं। कार्य
संतुष्टि
– तालिका का अवलोकन
करने के
बाद शासकीय
सहायता प्राप्त माध्यमिक विद्यालयों
के अध्यापकों
का मध्यमान
25.26 तथा शासकीय
सहायता प्राप्त माध्यमिक विद्यालयों
की अध्यापिकाओं
का मध्यमान
26.10 हैं। दोनों ग्रुप
की कार्य
संतुष्टि
का मानक
विचलन क्रमशः 2.88 तथा 2.35 हैं।
इन प्राप्त
मानों के लिए
टी-परीक्षण
का मान
1.75 आया हैं।
वर्तमान अध्ययन
में शासकीय
सहायता प्राप्त माध्यमिक विद्यालयों
के अध्यापकों
एवं अध्यापिकाओं
की कुल
संख्या 120 हैं। जिसके
लिए सांख्यिकीय
रूप में
स्वतंत्रता
अंश (60+60-2118Â आता
हैं। स्वतंत्रता
अंश 118 का
मान प्राप्त
करने के
लिए स्वतंत्र
अंश 118 का
मान टी-
परीक्षण तालिका में 120 पर
देखते हैं। टेबल
के अनुसार
टी के
मान 0.05 स्तर
पर 1.98 तथा
0.01 पर 2.63 आता
हैं। प्रदंत
विश्लेषण
में दिए
गए मान 1.75 स्वतंत्र अंश के
मानों से कम हैं। अतः
शासकीय सहायता प्राप्त माध्यमिक विद्यालयों
के अध्यापकों
एवं अध्यापिकाओं
की कार्य
संतुष्टि
में सार्थक
अंतर नहीं
हैं।अतः शून्य परिकल्पना
को स्वीकृत
किया जाता
हैं।
परिकल्पना
क्रमांक02
वित्तविहीन माध्यमिक
विद्यालयों
के अध्यापकों
एवं अध्यापिकाओं
की कार्य
संतुष्टि
में सार्थक
अंतर नहीं
हैं।
परिणाम
तालिका 02
क्रमांक संख्या |
श्रेणी |
न्यादर्श |
कार्य संतुष्टि |
सार्थकता का
स्तर एवं
परिकल्पना
की स्वीकृति
/अस्वीकृति |
|||
मध्यमान |
मानक विचलन |
टी-परीक्षणका मान |
0.05 |
0.01 |
|||
1 |
वित्तविहीन
माध्यमिक
विद्यालयों
के अध्यापक |
30=N |
23.53 |
4.37 |
|
|
|
2 |
वित्तविहीन
माध्यमिक
विद्यालयों
के अध्यापिकाएं |
30=N |
23.21 |
3.81 |
1.75 |
1.98 स्वीकृत |
2.63 स्वीकृत |
5. प्रदतों की व्याख्या
परिकल्पना संख्या-02की
पुष्टि के लिए
तालिका क्रमांक संख्या 2 में प्रदतों
के विश्लेषण
के मान
प्राप्त करके परिणाम
बताएं गए हैं। इस
तालिका में वित्तविहीन
माध्यमिक
विद्यालयों
के अध्यापकों
एवं अध्यापिकाओं
की कार्य
संतुष्टि
में सार्थक
अंतर को
प्रस्तुत
किया गया
हैं। कार्य
संतुष्टि
– तालिका का अवलोकन
करने के
बाद वित्तविहीन
माध्यमिक
विद्यालयों
के अध्यापकों
का मध्यमान
23.53 तथा वित्तविहीन
माध्यमिक
विद्यालयों
की अध्यापिकाओं
का मध्यमान
23.21 है। दोनों
ग्रुप की कार्य
संतुष्टि
का मानक
विचलन क्रमश4.37
तथा 3.81Â हैं।
इन प्राप्त
मानो के
लिए टी-परीक्षण
का मान
0.43 आया हैं।
वर्तमान अध्ययन
में वित्तविहीन
माध्यमिक
विद्यालयों
के अध्यापक
एवं अध्यापिकाओं
की कुल
संख्या 120 हैं। जिसके
लिए सांख्यिकीय
रूप में
स्वतंत्रता
अंश (60+60-2) 118 आता हैं।
स्वतंत्रताअंश
118 का मान
प्राप्त करने के
लिए स्वतंत्र
अंश 118 का
मान टी
परीक्षण तालिका में 120 पर
देखते हैं। टेबल
के अनुसार
टी के
मान 0.05 स्तर
पर 1.98 तथा0.01Â पर 2.63
आता है।
प्रदंत विश्लेषण में दिए
गए मान 0.43 स्वतंत्र अंश के
मानों से कम हैं। अतःशासकीय
सहायता प्राप्त माध्यमिक विद्यालयों
के अध्यापकों
एवं अध्यापिकाओं
की कार्य
संतुष्टि
में सार्थक
अंतर नहीं
हैं। अतः
शून्य परिकल्पना
को स्वीकृत
किया जाता
हैं।
6. निष्कर्ष
शासकीय सहायता
प्राप्त माध्यमिक विद्यालयों
के अध्यापकों
एवं अध्यापिकाओं
की कार्य
संतुष्टि
में सार्थक
अंतर नहीं
हैं। अतःशून्य
परिकल्पना
को स्वीकृत
किया जाता
हैं।
वित्तविहीन मान्यता
प्राप्त माध्यमिक विद्यालयों
के अध्यापकों
एवं अध्यापिकाओं
की कार्य
संतुष्टि
में सार्थक
अंतर नहीं
हैं। अतःशून्य
परिकल्पना
को स्वीकृत
किया जाता
हैं।
परिणाम के
आधार पर
कहा जा
सकता हैं,
कि प्रत्येक
श्रेणी के उच्च
माध्यमिक
विद्यालयों
के अध्यापकों
एवं अध्यापिकाओं
की कार्य
संतुष्टि
में सार्थक
अंतर नहीं
होता हैं।
यद्यपि कार्य संतुष्टि
को विभिन्न
कारणों जैसे- चिंताग्रस्तता, तनाव,
परिवार , समाज, विद्यालय
प्रबंधन, विद्यार्थी
,स्वास्थ्य
, पाठ्यक्रम,
सहगामी क्रियाएं आदि भी
प्रभावित
करते हैं।
अतः अध्यापकों
एवं अध्यापिकाओं
की कार्य
संतुष्टि
के लिए
इन सभी
के साथ
समायोजन होना बहुत
जरूरी हैं। विद्यालय
के प्रबंधक,
शिक्षा में उच्च
अधिकारी एवं प्रधानाचार्य
तीनों को अध्यापकों
एवं अध्यापिकाओं
की कार्य
संतुष्टि
के लिए
सतत् प्रयास
करने चाहिए।
क्योंकि वह उन छात्र एवं
छात्राओं
का विकास
करते हैं,
जो राष्ट्रÂ के विकास में
अहम भूमिका
निभाते हैं। अतःछात्र
एवं छात्राओं
के सम्पूर्ण
विकास की जिम्मेदारी
अध्यापकों
एवं अध्यापिकाओं
की होती
है।
Â
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