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SULTANATE INDIAN SOCIETY - A HISTORICAL INTERPRETATION सल्तनतकालीन भारतीय समाज- एक ऐतिहासिक विवेचन

Sultanate Indian Society - A Historical Interpretation

सल्तनतकालीन भारतीय समाज- एक ऐतिहासिक विवेचन

 

Hoblal Sahu 1

 

1 Principal, History, Gurukul College Magarlod, District, Dhamtari (Chhattisgarh), India

 

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ABSTRACT

English: The society of the Sultanate rule in India has its own characteristics. Before the arrival of Muslims in India, many castes had made their debut like Kushan, Shaka, Greek, Parthian etc. but Indian civilization and culture was so big that in course of time all these castes were merged in Hindu society. But at the time of the arrival of the Muslims, there was a big difference in the composition of the Indian society. The Hindu people were divided into many classes, sects, castes and sub-castes and their receptive power was destroyed. On the contrary, the Muslims had their own personal civilization and their own religion. They had not only come for political victory of India but also for cultural and religious victory, which could not be influenced by Hinduism. They came to India to propagate Islam and destroy idol worship. Therefore, from the very beginning, the Muslims remained separate from the Hindus and in this way the Indian society during the Sultanate period was divided into two parts - (a) Muslim society and (b) Hindu society.

 

Hindi: भारत में सल्लतनत शासन काल का समाज अपनी निजी विशेषताएँ रखता है। भारत में मुसलमानों के आगमन से पूर्व अनेक जातियों ने पदार्पण किया था जैसे कुषाण, शक, ग्रीक, पार्थियन आदि परंतु भारतीय सभ्यता एवं संस्कृति इतनी बड़ी-चड़ी हुई थी कि कालान्तर में ये सब जातियाँ हिन्दु समाज में ही विलीन हो गयी थी। लेकिन मुसलमानों के आगमन के समय भारतीय समाज की रचना में बड़ा अंतर हो गया था। हिन्दु लोग अनेक वर्गों, सम्प्रदायों, जातियों तथा उपजातियों में विभक्त हो गये थे तथा उनकी ग्रहण शक्ति नष्ट हो गयी थी। इसके ठीक विपरीत मुसलमानों की अपनी निजी सभ्यता एवं निजी धर्म था। वे भारत की केवल राजनीतिक विजय ही नहीं वरन सांस्कृतिक तथा धार्मिक विजय भी करने आये थे, जिनके ऊपर हिन्दु धर्म का प्रभाव नहीं पड़ सकता था। वे भारत में इस्लाम का प्रचार करने तथा मूर्ति पूजा नष्ट करने के लिए आये थे। अतः आरंभ से ही मुसलमान हिन्दुओं से पृथक रहे और इस प्रकार सल्तनत कालीन भारतीय समाज दो भागों में विभाजित हो गया था -(अ) मुस्लिम समाज तथा (ब) हिन्दु समाज

 

Received 03 July 2023

Accepted 05 August 2023

Published 20 August 2023

Corresponding Author

Hoblal Sahu, gurukulcollege366@gmail.com

DOI 10.29121/granthaalayah.v11.i7.2023.5280  

Funding: This research received no specific grant from any funding agency in the public, commercial, or not-for-profit sectors.

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Keywords: Sect, Ulema, Adultery, Control, Taxpayer, Lawsuit, Slave, Revenue, Niramish, सम्प्रदाय, उलेमा, व्याभिचार, काबू, करदाता, मुकद्म, दास, राजस्व, निरामिष


1.   प्रस्तावना

1.1. मुस्लिम समाज

यद्यपि आरंभ से ही मुसलमानों ने हिन्दुओं से अलग रहने का प्रयत्न किया था, लेकिन फिर भी अधिक समय तक हिन्दुओं के देश तथा उनके निकट संपर्क में रहने के कारण वे उनके प्रभाव से मुक्त न रह सके। हिन्दुओं की वर्गीयता का प्रभाव उन पर भी पड़ा।उनके दो वर्ग सुन्नी और शिया तो पहले से ही थे तथा इन दोनों वर्गों में वैमनस्य भी रहता था जो आज भी है। कालान्तर में मुसलमानों में शेख, सैय्यद, मुगल, पठान, खान, मलिक, आदि वर्ग भी बन गये थे। इसके अतिरिक्त मुसलमानों में उलेमा, सूफी, सैय्यद, आदि थे।जिनका समाज में बड़ा आदर होता था तथा इन्हें राज्य की ओर से अनेक विशेषाधिकार प्राप्त थे। उलेमा लोग अपनी विद्वता के लिए प्रसिद्ध थे तथा राजनीति में इनका उच्च स्थान था। सुल्तान पर भी उनका असर रहता था। अलुउद्दीन ने उलेमाओं को शासन के लिए बहुत घातक समझा, इसलिए उन्हें राजनीति से हमेशा दूर रखा। मुहम्मद तुगलक ने भी उनके प्रभाव पर नियन्त्रण रखा।

सल्तनत के प्रांरभिक काल में मुसलमान अत्यधिक परिश्रमी, उत्साही, धर्मशील, एवं चरित्रवान थे, परंतु धीरे-धीरे उनके ये गुण दूर होते गये। उच्च वर्ग लोग मद्यपान और व्यभिचार में पड़ गये और उत्तरोत्तर नैतिक पतन होता गया। अमीरों एवं सुल्तानों के हरम में अनेक स्त्रियाँ रहने लगीं। तलाक की प्रथा और वैवाहिक सम्बन्ध-विच्छेद बहुत अधिक संख्या में होने लगे। मुसलामान समाज में दास प्रथा भी प्रचलित थी, यद्यपि कुछ दास ऐसे शक्तिशाली  हुए कि उन्होंने सुल्तान के पद को ग्रहण किया। इल्तुमिश एवं बलवान ऐसे ही मृत्यु के उपरान्त यही साम्राज्य के पतन के कारण बन गए। मुस्लिम समाज के उलेमा तथा मुल्ला लोगों का राजनीति में सम्मिलित होना भी हितकर सिद्ध नहीं हुआ, क्योंकि इससे हिन्दु-मुस्लिम संघर्ष को बढ़ावा मिला।

 

1.2.      हिन्दु समाज

सल्तनत काल में हिन्दुओं की संख्या लगभग 95 प्रतिशत थी किन्तु फिर भी हिन्दुओं की स्थिति अच्छी नहीं थी। मुस्लिम विजेताओं ने हिन्दुओं पर मनमाने अत्याचार किये। इतिहासकार बरनी ने हिन्दुओं को चैधरी, खुत एवं मुकद्दम इन नामों से सम्बोधित किया है। हिन्दु अधिकांशतः कृषि का कार्य करते थे, फिर व्यापार करते थे। प्रारंभ में हिन्दुओं की आर्थिक स्थिति इतनी अच्छी थी कि कुछ हिन्दुओं ने अमीरों को उधार भी दिया किन्तु 350 वर्षों के सल्तनत शासन में हिन्दुओं की स्थिति अत्यन्त दयनीय हो गई। अलाउद्दीन ने तो हिन्दुओं को निर्धन बनाने में कोई कसर नहीं छोड़ी थी। उसने स्पष्ट कहा था कि जब तक हिन्दु निर्धन नहीं बना दिये जायेगें तब तक वे काबू में नहीं आ सकते हैं। इतिहासकार बरनी ने अलाउद्दीन के समय की हिन्दुओं की स्थिति का उललेख करते लिखा है‘‘ अलाउद्दीन के शासनकाल में कोई भी हिन्दु सिर उठाकर नहीं चल सकता था। उनके घरों में सोना-चांदी दिखाने के लिए भी नहीं था। अपनी निर्धनता के कारण वे न तो घोड़े पर चढ़ सकते थे, न ही अच्छे वस्त्र धारण कर सकते थे और न ही पान चबा सकते थे।’’ Pandey (2009)

अलाउद्दीन ने हिन्दुओं की हत्याएं करवायीं। उन पर भारी भू कर लादा। उसके काजी ने हिन्दुओं के साथ अपनाई जाने वाली नीति के विषय में उससे कहा था, ‘‘ हिन्दु करदाता हैं, यदि कर वसूल करने वाला कोई अधिकारी उनके मुंह पर थूकना चाहे तो उन्हें बड़ी खुशी से उसके सम्मुख अपना मुंह खोल देना चाहिए।’’

यही नहीं, इतिहासकार बरनी ने तो यहां तक लिखा है कि अलाउद्दीन की नीति के कारण सम्मानित वर्ग की हिन्दु महिलाएं भी मुस्लिम परिवारों में काम करने के लिए आने लगीं। अतः यह तो मानना ही पड़ता है कि सल्तनत युग में हिन्दुओं की स्थिति दासें के सदृश हो गई थी। अलाउद्दीन का तो यहां तक कहना था कि यदि माल विभाग का कोई उच्च पद दिया जाता था और न ही वे इसकी मांग कर सकते थे। केवल मुहम्मद तुगलक के समय में एक हिन्दु को राजस्व पदाधिकारी का पद दिया गया था। किन्तु उसे भी षडयंत्र रचकर मार दिया गया। केवल हिन्दु चैधरी, मुकद्दम एवं खुत अपने व्यक्तित्व के प्रभाव के कारण राजस्व विभाग में कार्यरत थे क्योंकि यहां उनके बिना कार्य चलना असम्भव था अन्यथा हिन्दुओं को चतुर्थ श्रेणी का पद भी नसीब न था। Rachna (1999) हिन्दु समाज में निरक्षरता बेरोजगारी, अज्ञानता एवं अंधविश्वास के कारण विकास के सारे आयाम सफल नहां हो पाते थे। Sharma (2017)

हिन्दुओं की तत्कालीन स्थिति के सम्बन्ध में डॉ. कुरैशी ने यह सिद्ध करने का प्रयत्न किया है कि मुस्लिम राज्य में प्राचीन भारत की तुलना में हिन्दुओं की स्थिति अच्छी नहीं थी। किन्तु तत्कालीन लेखकों के विवरणों के आधार पर सल्तनत काल में हिन्दुओं की स्थिति किसी भी दशा में अच्छी नहीं मानी जा सकती।

1)     भोजन- हिन्दुओं एवं मुसलमान दोनों ही वर्गों के साधारण स्थिति वाले मनुष्यों में इतनी क्षमता नहीं थी कि वे उत्तम प्रकार का भोजन कर सके अतः वे साधारण भोजन पर ही अपना जीवन निर्वाह करते थे। खिचड़ी इस वर्ग का मुख्य भोजन था। उच्चवर्गीय तथा मध्यमवर्गीय लोग रोटी, चांवल तथा विभिन्न प्रकार की सब्जियां बनाते थे इस काल में  भी भारतीयों का मुख्य भोजन चांवल ही था। हिन्दु प्रायः निरामिष अर्थात शाकाहारी होते थे मुस्लिम परिवारों में समान्य रूप से गोश्त का प्रचलन था। मैण्डलसो ने मुसलमानों के संबंध में लिखा है ‘‘ वे स्वतंत्रता पूर्वक गाय तथा बछड़े का मांस, मछली, शिकार की जानी वाली चिड़ियां तथा भेड़ बकरी का मांस खाते थे।’’ इस मांस को स्वादिष्ट बनाने के लिए विभिन्न प्रकार के मसालों का प्रयोग करते थे। Bhattacharya (2008)

2)     मादक-द्रव्य- मुसलमानों में इसका साधारण रूप से प्रयोग होता था। इसमें कोई भी ऐसा वर्ग नहीं था जो मदिरा का सेवन न करता हो। स्त्रियां, शिक्षक, धार्मिक पुरूष गुप्त रूप से इसका सेवन करते थे तथा सिपाही एवं सैन्य अधिकारी प्रत्यक्ष रूप से मद्यपान करते थे। अलाउद्दीन खिलजी ही एक मात्र ऐसा शासक था जिसने इनका विरोध किया था तथा अन्य किसी सुल्तान ने इसका विरोध नहीं किया।

3)     वस्त्र- सल्तनत काल में विभिन्न वर्गों के लोग भिन्न-भिन्न प्रकार की पोशाक पहनते थे। साधरण तथा धनी मुसलमानों की पोशाक में कोई विशेष अन्तर नहीं था। मुसलमानों के ही वस्त्र उत्तम प्रकार के कपड़े के बने होते थे। जिसमें कूलहा, तारतार, काबा, अंगरखे, दगला आदि ऋतुओं एवं पर्व में पहना जाता था। जो सूती एवं रेशमी वस्त्र होता था।

4)     श्रृंगार- सल्तनत काल में स्त्री तथा पुरूष दोनों ही श्रृंगार प्रेमी थे। स्त्रियां नेत्रों में काजल, मांग में सिन्दुर तथा हाथों में मेंहदी लगाती थी। शीश, नाक, कान, भुजा, अंगुली, कटी आदि में तरह - तरह के आभूषण धारण किये जाते थे। चंदनहार तथा तेल का प्रयोग होता था।

5)     मनोरंजन- इसकाल के कूलीन परिवारों का मुख्य एवं प्रिय खेल चैगान था। आधुनिक युग में इसे पोलो कहा जाता है। भारत में इसको लाने का श्रेय मुसलमानों को ही है। दिल्ली सल्तनत के प्रथम शासक कुतुबुद्दीन ऐबक की मुत्यु चैगान खेलते समय घोड़े से गिरकर हुई थी। इसके अलावा शतरंज खेलना,  पशु-पक्षीयों एवं ,मछली पकड़ना आदि भी मनोरंजन का प्रमुख साधन था।

शतरंज कुलीन वर्गों का प्रिय मनोरंजन था जायसी ने अपने प्रसिद्ध महाकाव्य ‘‘पद्मावत’’ में राजा रत्नसेन एवं दिल्ली के सुल्तान अलाउद्दीन खिलजी के मध्य चित्तौड़ दूर्ग के अन्दर होने वाले शतरंज के खेल का विशद् वर्णन किया है। Shrivastav (2016)

 

2.   स्त्रियों की स्थिति

1)     परिवार में नारी का स्थान- सल्तनतकाल में स्त्रियों की दशा पुरूषों की अपेक्षा दयनीय थी किन्तु फिर भी हिन्दु समाज में स्त्रियों का सममान था स्त्री को गृह स्वामिनी के रूप में देखा जाता था धार्मिक कार्यों में इनकी उपस्थिति अनिवार्य होती थी। पुत्रवती स्त्रियों का अधिक सम्मान था । पति की सेवा एवं घर के कार्यों को करना इनके कर्तव्य थे। इतना कुछ होते हुए भी स्त्रियों को पूर्ण स्वतंत्रता नहीं थी। बचपन में ही वह माता-पिता, विवाह के बाद पति, एवं वृद्धा अवस्था में पुत्रों के अधीन रहती थी।

जहां तक मुस्लिम परिवारों में स्त्री की दशा का सम्बन्ध है, अत्यंत खराब कही जा सकती है। मुसलमानों में बहु-विवाह की प्रथा के कारण सहपत्नियों में गृह कलह होता रहता था। इससे परिवारिक जीवन कष्ट प्रद था। मुसलमान स्त्रियां पूर्णतः पति पर आश्रित थी। वह किसी से बात भी नहीं कर सकती थी। पति को पत्नी को तलाक देने का पूर्ण अधिकार था।

2)     विवाह- उच्च वर्ग के मुसलमानों में बहु-विवाह का प्रचलन था। वे प्रायः तीन या चार पत्नियां रखते थे। कुरान के अनुसार एक मुसलमान चार पत्नियों का स्वामी होता था। परंतु निम्न वर्ग हिन्दुओं व मुसलमानों में अधिकांशतः एक ही विवाह का प्रचलन था। अधिकांश हिन्दु परिवारों में एक विवाह प्रथा प्रचलित थी। कुछ राजकुमारों के एक से अधिक पत्नियां थी। हिन्दुओं में विधवा विवाह का प्रचलन नहीं था। Pandey (2009)

3)     सती प्रथा- हिन्दुओं में सती प्रथा का प्रचलन था। हिन्दुओं के उच्च वर्ग में सती प्रथा का विशेष स्थान था। इब्नबतूता ने लिखा है ‘‘ पति की मृत्यु के उपरांत पत्नि को अपने आप को जला डालना बड़ा ही प्रशंसनीय कार्य समझा जाता था, किन्तु यह अनिवार्य नहीं था। जब कोई विधवा अपने आपको जला डालती है तो उसके घर वालों का सम्मान बढ़ जाता है और वह पति भक्ति के लिए प्रसिद्ध हो जाती है। जो विधवा स्वंय को नहीं जलाती है उसे पीले वस्त्र धारण करने पड़ते हैं तथा उसे बड़ा दुखी जीवन व्यतीत करना पड़ता है। हिन्दुओं में विधवा को घृणा की दृष्टि से देखा जाता था। अतः जीवन भर की परेशानियों से बचने के लिए विधवाएं सती होना अधिक समझती थीं। जो विधवा पति के शव के साथ सती होती थी उसे सहमरण या सहगमन कहते थे। पति के दूरस्थ स्थान पर होने या स्त्री के गर्भवती होने पर वह पश्चात में पति की किसी विशेष वस्तु के साथ सती हो जाती थी जिसे अनुमरण या अनुगमन कहा जाता था।

4)     जौहर प्रथा- जौहर भारतीय विरत्व की भावना का अमूल्य प्रतीक है। राजपूतों में जौहर प्रथा प्रचलित थी। राजपूतों के रणभूमि में न्योछावर हो जाने पर उनकी वीरागणाएं स्वंय हंसते-हंसते अग्नि को समर्पित हो जाती थी। ऐसा वे इसलिए करती थी क्योंकि वे शत्रु के हाथ में पड़कर अपने को अपमानित होने से मर जाना उचित समझती थी। इब्नबतूता के अनुसार अलाउद्दीन खिलजी से स्वंय की रक्षा के लिए चित्तौड़ की रानी पदमावती ने जौहर किया था। मुहम्मद तुगलक द्वारा कम्पिला पर आक्रमण करने पर वहां की नारियों ने जौहर किया था।

5)     पर्दा प्रथा- सल्तनतकाल में पर्दा प्रथा का प्रचलन अत्यधिक बड़ गया था। रजिया बेगम द्वारा इस प्रथा की अवहेलना कर बिना पर्दे कर दरबार में जाती थी तथा पुरूष वेश भी धारण करती थी, किन्तु मुस्लिम समाज में इसका अत्यधिक महत्व था। फिरोज तुगलक ने तो ‘‘ मुसलमान स्त्रियों को दरगाहों, आदि के दर्शन के लिए जाने पर भी रोक लगा दी थी।’’उच्च घरानों की स्त्रियां पालकीयों में चलती थी जबकि निम्न वर्ग के मुस्लिम स्त्रियां सिर से पैर तक अपने को बुर्के से ढके रखती थी। हिन्दू स्त्रियां अपहरण के भय से केवल मुंह पर पल्ला डाले रहती थी। किसानों की स्त्रियां तो बिना पर्दा डाले खेतों में कार्य करती थी। ग्रामीण स्त्रियों में पर्दे का रिवाज कम था इस प्रकार माना जा सकता है कि मुस्लिम स्त्रियों में ही पर्दा प्रथा का विशेष महत्व था , हिन्दू समाज में नहीं ।

6)     बाल विवाह- तुर्की सरदार किसी सुन्दर कन्या को उठा ले जाते थे इसलिए हिन्दुओं में बाल-विवाह की प्रथा जन्म ले चुकी थी। Pandey (2009)

7)     स्त्री शिक्षा- सल्तनत युग में स्त्री शिक्षा समुचित व्यवस्था नहीं थी। शिक्षा केवल सम्पन्न एवं उच्च घरानें की स्त्रीयों को ही प्राप्त थी। उच्च वर्ग एवं धन -सम्पन्न घरानों की स्त्रियों को नृत्य व संगीत की शिक्षा दी जाती थी। देवलरानी,, रूपवती एवं पद्मावती इस युग की विदुषी महिलाएं थी। रजिया एक कुशल प्रशासिका थी। इब्नबतूता ने लिखा है कि ’’ जब वह हनोर पहुंचा तो उसे 13 विद्यालय लड़कियों के मिले।’’Mittal (2007)

 

3.   निष्कर्ष

सल्तनत कालीन समाज हिन्दु एवं मुस्लिम दो भागों में विभाजित होने के बावजूद इनमें एक दूसरे के प्रति कई स्तरों पर सामांजस्य दिखाई देता है। साधारण हिन्दु एवं मुस्लिम वर्ग में खान-पान, रहन-सहन, में कोई विशेष अन्तर नहीं था। सल्तनतकाल में दास प्रथा का प्रचलन रहा। इस काल में दासों की दशा अच्छी नहीं थीं। इस काल में स्त्रियों की स्थिति मुसलमानों की तुलना में हिन्दुओं के स्त्रियों की दशा अच्छी थी वे पुरूषों के साथ कदम से कदम मिलाकर कृषि एवं अन्य कार्यों में सहयोग प्रदान करती थी। जबकि मुस्लिम महिलाएं घर की चारदिवारी में ही सीमित रहती थी। इस प्रकार स्पष्ट है कि सल्तनत काल में स्त्रियों की स्थिति पहले की अपेक्षा अधिक खराब हो गई थी।

 

CONFLICT OF INTERESTS

None. 

 

ACKNOWLEDGMENTS

None.

 

REFERENCES

Bhattacharya, S. (2008). Economic History of Modern India (1850-1947). Rajkamal Prakashan, 59.

Mittal, A. K. (2007). History of India. Sahitya Bhavan, 183.

Pandey, S. (2009). MughalKaleen Hindu Teej Festival (Ed. 1). Satyendra Prakashan, 80-83.

Rachna (1999). Brief History of India (History of Medieval India) (Ed. 2). Rachna Prakashan, 17.

Sharma, R. N. (2017). Five Elements. Ambikapur, 5(5), 66.

Shrivastav, V. (2016). Central India Journal of Historical Archaeological Research, 170.

    

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