भारतीय समाज में हिन्दू कोड बिल के महत्व का अध्ययन

भारतीय समाज में हिन्दू कोड बिल के महत्व का अध्ययन

Authors

  • Sunita Nirankari Research Scholar, Department of Arts Mangalayatan University, Beswan, Aligarh, India
  • Dr. Shagufta Parveen Assistant professor, supervisor, Department of Arts Mangalayatan University, Beswan, Aligarh, India

DOI:

https://doi.org/10.29121/shodhkosh.v5.i1.2024.2247

Abstract [English]

हम प्राचीन भारतीय इतिहास में देखते है कि दशरथ की तीन पत्नियाँ थीं। याज्ञवल्क्य ऋषि की एक ही समय में दो पत्नियाँ थी। क्या हमारा भी यही आदर्श होना चाहिए? राम ने सीताकी अग्नि परीक्षा करने के पश्चात् गर्भवती सीता को सन्देह और धोबी के लोक अपवाद पर ही ऐसी दयनीय दशा में अपने पास रखने से इंकार कर दिया और धोखा देकर लक्ष्मण के साथ उसे वन में धकेल दिया। जहाँ उसे बाल्मीकि के आश्रम में दुक्खमय जीवन बिताना पड़ा। क्या मेरी बहन यही चाहती है कि भारतीय हिन्दू नारी निरीह तथा निर्दोष सीता की तरह पतियों के झूठे आरोपों पर जंगलों में मारी मारी फिरें। सती सावित्री ने जो त्याग किया और अपने पति को यमराज के चंगुल से छुड़ा लिया, किन्तु क्या पुरुषों ने भी कभी ऐसी तपस्या और त्याग कासबूत दिया है।आज के युग में नारी दास बनकर नहीं रह सकती। वह पति के बराबर अधिकार चाहती है। वह पति पर अत्याचार नहीं करना चाहती किन्तु वह पतियों के अत्याचारों को अब तक सहन करती आ रही है, अब अधिक जुल्म सहन नहीं कर सकती। यह झूठे और काल्पनिक आदर्श, जो पुरुषों ने अपनी स्वार्थपूर्ति और कामवासना की पूर्ति के लिए गढ़ रखे हैं, उन्हें बर्दाश्त नहीं किया जा सकता। विधुर पति पत्नी के शव को जलाने के पश्चात् उसकी चिता की आग ठण्डी न होने से पहले श्मशान भूमि में ही दूसरे विवाह के लिए वाग्पान ले ले, किन्तु विधवा पत्नी जीवनभर मृत पति का नाम लेकर रोती रहे। न तो उसे अपने पतृपक्ष में सम्पत्ति का अधिकार और न ही ससुराल पक्ष में सम्पत्ति का अंशदान । वह पहले तो मृत पति की चिता में जीवित जलाई जाती रही और अब भिखारिन से भी निन्दनीय और निरादरपूर्ण जीवन व्यतीत करे। पति एक समय में अनेक पत्नियों और रखैल ‘उप पत्नियाँ’ रखने का अधिकारी है, किन्तु पत्नी बेचारी को एक पति का भी पूर्ण आश्रय प्राप्त नहीं। क्या पुत्र और पुत्री दोनों ही पिता के एक रक्त बिन्दु तथा माता के गर्भ से उत्पन्न नहीं होती ? क्या लड़कियों में पशुओं का दिमाग रहता है और लड़कों में देवताओं का? क्या दोनों में समान बुद्धि नहीं है? क्या लड़की लड़के की भाँति शिक्षा में कुशलता पाने में अयोग्य है? स्त्रियों और शूद्रों पर शिक्षा प्राप्ति के दरवाजे ईर्ष्यालु पुरुष पण्डितों ने बन्द कर दिए। मेरे विचार में नारी अधिक सहनशीलता, अधिक त्यागवृत्ति, अधिक स्नेह और बौद्धिक रूप से अधिक कौशलपूर्ण है, किन्तु उसे झूठे आदर्शों के जाल में फँसाकर आज तक उसे मूर्ख और पंगु सा बना दिया है। स्वाधीन भारत में स्त्री को भी पुरुषों की भाँति समान अधिकार चाहिएँ। हिन्दू कोड उस दिशा की ओर एक कदम है। भारतीय स्त्रियाँ इस कोड बिल के पारित हो जाने पर अपने वैध तथा चिरवंचित अधिकार प्राप्त कर सकेंगी। सारे सभ्य संसार के समाजों में स्त्रियों की ऐसी दुर्गति नहीं, जैसी भारतीय स्त्रियों की है। जंगली जातियों में भी स्त्रियों को भारतीय नारियों से अधिक अधिकार प्राप्त हैं। भारत की स्वाधीनता प्राप्ति में नारियों ने भी पुरुषों की भाँति बड़ चड़कर संघर्ष किया है।

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Published

2024-01-31

How to Cite

Nirankari, S., & Parveen, S. (2024). भारतीय समाज में हिन्दू कोड बिल के महत्व का अध्ययन. ShodhKosh: Journal of Visual and Performing Arts, 5(1), 783–790. https://doi.org/10.29121/shodhkosh.v5.i1.2024.2247