ShodhKosh: Journal of Visual and Performing Arts
ISSN (Online): 2582-7472

INDIAN ART AND SHIVA

भारतीय कला एवं शिव

 

Shivani Rathi 1Icon

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1 Research Student, Raghunath Girls (PG) College, Meerut, India

 

 

 

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Received 15 December 2021

Accepted 28 February 2022

Published 20 March 2022

Corresponding Author

Shivani Rathi, shivanirathi.art@gmail.com

DOI 10.29121/shodhkosh.v3.i1.2022.80

Funding: This research received no specific grant from any funding agency in the public, commercial, or not-for-profit sectors.

Copyright: © 2022 The Author(s). This is an open access article distributed under the terms of the Creative Commons Attribution License, which permits unrestricted use, distribution, and reproduction in any medium, provided the original author and source are credited.

 

 

 


ABSTRACT

 

English: Indian culture is the most diverse culture in the world. It symbolizes a diverse culture rich in different languages, clothing, religions, cuisines, festivals, and other activities. When we talk about religion, the image of divine power in the form of various deities starts circulating in front of us, this image starts roaming before us mainly in the form of Hindu religion.

Various gods and goddesses have a special place in Hinduism. Among all the deities, Lord Shiva has a special place in the eyes of his devotees. The marking of gods and goddesses is seen in Indian art since prehistoric times. The marking of Pasupathi Shiva is also found in the Indus Civilization. The wonderful confluence of Indian art and Shiva gives a new form to Indian art.

Lord Shiva is known as creation, power, protection, and transformation. Shiva is considered one of the three most powerful deities of Hinduism. Roop Nataraja, dancing to Lord Shiva, has a wonderful place in Indian sculpture.

 

Hindi: भारतीय संस्कृति विश्व में सर्वाधिक विविधतापूर्ण संस्कृति है। यह विभिन्न भाषाओं, वस्त्रों, धर्मों, व्यंजनों, उत्सवों और अन्य गतिविधियों में समृद्ध विविध संस्कृति की प्रतीक है। जब हम धर्म की बात करते है तो हमारे समक्ष विभिन्न देवताओं के रूप में दैवीय शक्ति की छवि विचरण करने लगती है, यह छवि मुख्यतः हिन्दू धर्म के रूप में हमारे समक्ष घूमने लगती है।

       हिन्दू धर्म में विभिन्न देवी-देवताओं को विशेष स्थान प्राप्त है। सभी देवताओं में भगवान शिव का अपने भक्तों की दृष्टि में विशेष स्थान है। भारतीय कला में प्रागैतिहासिक काल से ही देवी-देवताओं का अंकन देखने को मिलता है। सिन्धु कालीन सभ्यता में भी पशुपति शिव का अंकन मिलता है। भारतीय कला एवं शिव का अद्भुत संगम भारतीय कला को एक नवीन रूप प्रदान करता है।

        भगवान शिव सृजन, शक्ति, सुरक्षा एवं परिवर्तन के रूप में जाने जाते है। शिव को हिन्दू धर्म के तीन सर्वाधिक शक्तिशाली देवताओं में से एक माना जाता है। भगवान शिव के नृत्य करते हुए रूप नटराज को भारतीय मूर्तिकला में अद्भुत स्थान प्राप्त है।.

 

Keywords: Art, Culture, Shiva, Religion, Civilization, Creation, Expression, कला, संस्कृति, शिव, धर्म, सभ्यता, निर्माण, अभिव्यक्ति

 

1. प्रस्तावना

        प्राचीन काल से ही धर्म एवं कला एक दूसरे के पूरक रहे है। आदिकाल से ही कलाकारों ने धार्मिक अभिव्यक्ति के रूप में कला का प्रयोग किया है। इसका सर्वश्रेष्ठ उदाहरण हमें विभिन्न धार्मिक अनुष्ठानों पर देखने को मिलता है। उदाहरणतयाः नवरात्रों में सांझी (देवी की प्रतिमा)

का निर्माण, अहोई अष्टमी आदि त्यौहारों पर दीवार पर उकेरी जानी वाली कला का इस्लाम धर्म

में प्रचलित ताजिओं का निर्माण, कला एवं धर्म की परस्परता को सिद्व करता है। कलाकार

समाज के प्रत्येक रूप को भावात्मक दृष्टिकोण से अभिव्यक्त करने का यत्न करते है जो समाज

 

 


 

के धार्मिक, राजनीतिक एवं आर्थिक दृष्टिकोण को प्रदर्शित करता है। कला एवं धर्म एक ऐसा ही विषय है जो समाज को धार्मिक रीति-रिवाजों से अवगत कराता है। प्राचीन काल से ही भगवान शिव का अंकन उनकी महत्ता को प्रदर्शित करता है जो कलाकारों द्वारा विभिन्न रूपों में चित्रित की गयी है।

 

2. शोध पत्र का उद्देश्य एवं प्रारूप

 कला, रचनात्मक अभिव्यक्ति, संचार एवं आत्म-परिभाषा की विद्या के रूप में मानव अस्तित्व का एक प्रमुख पहलू है तथा धर्म के विकास का मुख्य कारक है। दृश्य अभिव्यक्ति एवं रूप के माध्यम से, कला मानवीय आकांक्षाओं, भावात्मक विचारों एवं कथाओं को अर्थ और मूल्य प्रदान करती है और इसके साथ ही साथ एक समुदाय, विश्व और ब्रह्माण्ड के क्षितिज के भीतर मानव को उन्मुख करती है। कला रचनात्मकता और संस्कृति के लिए एक प्रोत्साहन के रूप में कार्य करती है जो आध्यात्मिक अनुभवों और पौराणिक कथाओं के माध्यम से मानवता को देवत्व से जोड़ती है। कला, सत्य और सौंदर्य की यात्रा पर दृश्य आदर्शो को नियोजित करती है, जिससे दृश्य धर्म के रूप में, कला मानव, शरीर की प्रतिमा और चित्रण के माध्यम से धार्मिक विश्वासों, रीति-रिवाजों एवं मूल्यों का संचार करती है। कला, धार्मिक, अभिव्यक्ति के सशक्त माध्यम के रूप में कार्य करती है जो प्रस्तुत शोध पत्र का उद्देश्य एवं प्रारूप है।

 

3. शोध पत्र की प्रक्रिया

भारतीय कला, आदिकला से ही धार्मिक अभिव्यक्ति का मुख्य साधन रही है। धार्मिक भावनाओं को अभिव्यक्त करने के लिए कलाकारों ने विभिन्न रूपों में कला का प्रयोग किया है। प्रचलित धार्मिक विषयों के मध्य कलाकारों द्वारा भगवान शिव का अंकन अत्याधिक प्रसिद्ध रहा है। प्राचीन काल से ही भगवान शिव के अंकन के साक्ष्य प्राप्त हुए हैं। प्रस्तुत शोध पत्र को लिखने के लिए विभिन्न कालों में अंकित शिव की चित्राकृतियाँ एवं विभिन्न प्रतिमाओं का अध्ययन कर भारतीय कला एवं शिव को इस शोध पत्र का आधार बनाया गया है।

 

4. शोध पत्र की समीक्षा

साहित्य, किसी भी लेखन का मुख्य कारक होता है। साहित्य के अंतर्गत सर्वप्रथम पृष्ठ लेखन एवं आधार-सामग्री संकलन का कार्य किया जाता है। इस शोध को लिखने के लिए कुछ पुस्तकों का अध्ययन कर उनके अनुभव को सम्मिलित किया गया है। प्रस्तुत शोध को लिखने के लिए जिन पुस्तकों की सहायता ली गयी हैं उनमें Siva Art (A Study of Saiva Iconography and Miniatures) – O.C. Harda, Shiva – An Introduction – Devdutt Pattanaik, The Presence of Siva-Stella Kramrisch, Saiva Iconography : A Facet of Indian Art and Culture – Sudipa Ray Bandyopadhyay & Swati Mondal Adhikari, Siva Mahadeva, - Agrawala VS, Early Indian Religions – P. Banerji आदि प्रमुख है। संपूर्ण सूची शोध पत्र लेखन के अंत के संदर्भ ग्रंथ के अंतर्गत दी गयी है।

 

5. भारतीय कला एवं शिव

भारतीय कला प्रागैतिहासिक काल से ही उपलब्ध अन्य कलाओं के मध्य अत्याधिक रोचक एवं विविधतापूर्ण रूप ग्रहण किये हुए है। किसी भी देश की संस्कृति को जानने का सर्वाधिक सुगम माध्यम उस देश की कला होती है। कला के माध्यम देश की आर्थिक, राजनीतिक, सांस्कृतिक एवं सामाजिक स्थिति का पता लगाया जा सकता है। भारतीय कला की विवेचना करने के उपरांत भारतीय संस्कृति के परिप्रेक्ष्य का पता लगाया जा सकता है। भारतीय कला सदैव ही धर्म को साथ लेकर चली है। प्रागैतिहासिक काल से ही भारतीय कला में धर्म का आर्विभाव दृष्टनीय है। भारतीय कला में विभिन्न धर्मों का संगम देखने को मिलता है जिनमें हिन्दू, जैन एवं बौद्ध धर्म का सर्वाधिक अंकन किया गया है। हिन्दू धर्म के रूप में भारतीय कला में भगवान शिव का अंकन दृष्टनीय है जो चित्रकला एवं मूर्तिकला सभी क्षेत्रों में दिखायी देता है। भगवान शिव के अंकन के साथ ही राजपूत तथा पहाड़ी शैली में राधा-कृष्ण का अंकन दिखायी देता है।

भारतीय कला में भगवान शिव के अंकन के प्रमाण हमें सिंधु घाटी की सभ्यता से प्राप्त होते है। सिंधु घाटी सभ्यता के लोग भगवान शिव की पूजा करते थे। ‘‘द इंडियन एक्सप्रेस’’ की रिपोर्ट के अनुसार ठाकुर प्रसाद वर्मा द्वारा लिखित शोध पत्र ‘‘वैदिक सभ्यता का पुरातत्व’’ में कहा गया है कि इस सभ्यता के निवासियों द्वारा शिव की पूजा की जाती थी। शोध में यह भी कहा गया कि मोहनजोदड़ों से खुदाई में प्राप्त अनेक कलाकृतियाँ उस समय की शिव पूजा की ओर इशारा करती है।’’Handa (1992)  वहीं दूसरी ओर बनारस हिन्दू विश्वविद्यालय के एक सेवानिवृत्त प्रोफेसर वर्मा के अनुसार, प्रसिद्व ‘सील 420’, योग मुद्रा में बैठे और जानवरों से घिरी एक सींग वाली आकृति की मुहर, शिव पूजा का प्रबल प्रमाण है। वर्मा कहते है कि मोहनजोदड़ों से प्राप्त एक अन्य प्रतिष्ठित मूर्ति ‘पुजारी’ के शॉल पर दिखायी देने वाला तिहरा पैटर्न इस बात का संकेत है कि राजा एक हिन्दू देवता का अनुयायी था। उनका कहना है कि ट्रेफिल पैटर्न, विल्वा बिल्व के पत्तों जैसा दिखता है जो आज शिव की पूजा करने के लिए उपयोग किये जाते है।’’Pattanaik (1999)

चित्र 1 पशुपति शिव मुहर

Source: https://swarajyamag.com/culture/why-are-indian-historians-in-a-denial-mode

 

भारतीय कला के उत्कर्ष के साथ-साथ भगवान शिव के अंकन की परंपरा भी और अधिक विशाल एवं दृढ़ हो गयी। भारतीय मध्यकालीन युग में शिव के नृत्य करते हुए रूप ‘नटराज’ की प्रतिमा का निर्माण किया गया जो अनवरत रूप से निरंतर निर्मित की जा रही है। मध्यकालीन युग में भक्तों के आध्यात्मिक अनुभवों को कला एवं वास्तुकला के कार्यों के रूप में बढाया गया। जिस प्रकार फ्रांस में सिस्टीन चैपल के चमकीले रूप ने उपासकों को अभिभूत कर दिया था उसी प्रकार दक्षिण भारत में मदुरई में मीनाक्षी मंदिर के आंतरिक भाग में स्थित शिव-पार्वती की प्रतिमा ने हिन्दू भक्तों को अभिभूत किया। भगवान शिव की नटराज प्रतिमा को भारतीय वास्तु कला में विशेष स्थान प्राप्त है।

 

 

चित्र 2 नटराज प्रतिमा

Source: https://www.khanacademy.org/humanities/ap-art-history/south-east-se-asia/india-art/a/shiva-as-lord-of-the-dance-nataraja

 

शिव को हिन्दू धर्म के ब्रह्मांड के भीतर दैवीय ऊर्जा के शक्तिशाली त्रय के रूप में मान्यता प्राप्त है। हिन्दू धार्मिक दर्शन में सभी चीजों का स्वाभाविक अंत होना चाहिए ताकि वे नए सिरे से शुरू की जा सकें, भगवान शिव को इस अंत को लाने के रूप में जाना जाता है जिससे एक नया चक्र शुरू किया जा सकें। ‘‘भगवान शिव की प्रतिमा नटराज को दक्षिण भारत में चोल राजवंश (नौंवी-तेरहवीं शताब्दी) के दौरान निर्मित किया गया था। दक्षिण भारत में सबसे लंबे चलने वाले साम्राज्यों में से एक, चोल राजवंश ने अन्वेषण, व्यापार एवं कलात्मक युग की शुरूआत की। कांस्य मूर्तिकला, चोल कला की कलाओं के महान नवाचार धातु के क्षेत्र के रूप में प्रसिद्ध थी।’’Kramrisch (1981)  इस काल में निर्मित भगवान शिव की यह प्रतिमा, छवि दृश्य चित्रण के प्राचीन भारतीय रूपों, शिल्प शास्त्रों से ली गयी है, जिसमें दैवीय आकृति के अंगों और अनुपात के लिए माप एवं आकार का एक सटीक रूप सम्मिलित है। इसके अनुसार बांस के डंठल के समान भुजाएँ लंबी, चांद की भांति गोल चेहरे तथा कमल के पत्तों के आकार की आँखे होनी चाहिए। शास्त्र प्राचीन हिंदू विचारधारा के भीतर सौंदर्य और शारीरिक पूर्णता के आदर्शों पर आधारित थे।

नृत्य करती हुई शिव की प्रतिमा उन संपूर्ण भौतिक गुणों की प्रतीक है जो ब्रह्माण्ड का एक साथ निरंतर निर्माण और विनाश है। अग्नि का वलय जो आकृति को घेरता है, वह द्रव्यमान, समय और स्थान का एक समाहित ब्रह्माण्ड है, जिसका विनाश और उत्थान का अंतहीन चक्र शिव के ढ़ोल की थाप और उनके चरणों की ताल के अनुरूप चलता है। उनके ऊपरी दाहिने हाथ में डमरू है, जिसकी धड़कन सृष्टि के कार्य एवं समय बीतने के साथ मिलती है। उनका निचला दाहिना हाथ अपनी हथेली को ऊपर उठाकर और दर्शक की ओर मुंह करके अभय मुद्रा के इशारे में उठा हुआ है जो याचना करने वाले से कहता है, ‘‘डरो मत, क्योंकि जो लोग धार्मिकता के मार्ग पर चलते हैं, उन्हें मेरा आशीर्वाद मिलेगा।’’

शिव का निचला बायां हाथ उनकी छाती पर तिरछे फैला हुआ है जिसमें उनकी हथेली नीचे की ओर उठे हुए बाएं पैर की ओर है, जो आध्यात्मिक कृपा और ध्यान के माध्यम से पूर्ति और किसी की भूख पर महारत का प्रतीक है। अपने ऊपरी बांए हाथ में वे अग्नि धारण करते है, विनाश की ज्वाला जो डमरू की ध्वनि के अस्तित्व में आने वाली सभी चीजों को नष्ट कर देती है। शिव का दाहिना पैर बौने, राक्षस अप्सरा, अज्ञान के अवतार पर खड़ा है। शिव के बाल, योगी के लंबे बाल, ब्रह्माण्ड का गठन करने वाली अग्नि के प्रभामंडल के भीतर अंतरिक्ष में प्रवाहित होते हैं। अराजकता और नवीनीकरण की इस पूरी प्रक्रिया के दौरान, भगवान का चेहरा शांत रहता है, जिसे ‘‘इतिहासकार, भगवान के शाश्वत सार का मुखौटा कहते है।’’Agarwal (1966)

शैव विषय केवल लघुचित्रों में ही पहाड़ी चित्रकारों का पसंदीदा नही रहा है। इसे पेण्टिंग के साथ-साथ महलों की दीवारों पर भी निष्पादित किया गया है। यह चित्र हमें जम्मू से लेकर गढ़वाल तक पश्चिमी हिमालय में विभिन्न स्थानों पर मंदिरों और महलों की लघु चित्रकला शैली में दिखायी देते है। ‘‘सन् 1962-1964 में चंबा के पुराने महल में, जिसे रंगमहल कहा जाता है, जो अपने आप में स्थानीय वास्तुकला का एक महत्वपूर्ण टुकड़ा था। राजा उम्मेद सिंह (सन् 1748 - सन् 1764) द्वारा रंगमहल का निर्माण कार्य जारी रखा गया था।’’Banerji (1973)  इसके पश्चात् विभिन्न शासकों द्वारा इस चित्रशैली को जारी रखा गया। यहां पर कार्य करने वाले चित्रकार लघु-कलाकार थे जो लघु चित्रशैली में कार्य करते थे। महल में निर्मित सभी भित्ति चित्र लाइम प्लास्टर पर बनाये गये है।

पहाड़ी चित्रकला, मध्यकालीन कला आदि के साथ-साथ आधुनिक चित्रकला शैली में भी शिव का अंकन दिखायी देता है। विभिन्न आधुनिक कलाकारों जैसे राजा रवि वर्मा, नन्दलाल बसु आदि ने शिव का अंकन किया है। ‘विषपान करते हुए शिव (SHIVA DRINKING POISON) नन्दलाल बसु की अत्याधिक प्रसिद्ध कृति है। इसमें बसु ने शिव को विष पीते हुए चित्रित किया है। शिव के भाव अत्याधिक सौम्य दिखाये है। चित्राकृति में शिव के सिर के पीछे आभामण्डल दिखाया गया है। नन्दलाल बसु की अन्य कृति ‘शिव और सती’ में भगवान शिव एवं सती को चित्रित किया है। इस कृति में शिव की गोद में सती को मरणासन्न अवस्था में किया गया है। इस कलाकृति में भी पूर्व कृति की भांति शिव के पृष्ठभाग में आभामण्डल चित्रित किया गया है। इसके साथ ही अवीन्द्रनाथ टैगोर ने भी शिव का अंकन किया है।

चित्र 3 नन्दलाल बोस

Source: https://www.culturalindia.net/indian-art/painters/nandlal-bose.html

 

हाल ही में अंर्तराष्ट्रीय स्तर पर प्रसिद्व रेत कलाकार (Sand Artist) ।तजपेजद्ध सुदर्शन पटनायक ने महाशिवरात्रि (2021) के अवसर पर ओडिशा के पुरी समुद्र तट पर भगवान शिव की कलाकृति का निर्माण किया। भगवान शिव की इस रंगीन कलाकृति में ‘‘ओमः नमः शिवाय’’ लिखा। इस कलाकृति में कलाकार ने शिव पार्वती के साथ शिवलिंग को चित्रित किया है। इसके साथ ही विभिन्न समकालीन कलाकार जैसे संदीप रावल, पूजा ग्रोवर,  आत्मिका ओझा, अतुल मानसनवल, सुरेश बदतैयावत, राजेश शर्मा आदि अनेक कलाकार निरंतर शिव के विभिन्न रूपों को चित्रित कर रहे है।

चित्र 4 सदर्शन पटनायक द्वारा रचित रेत कला

Source: https://www.indiatoday.in/trending-news/story/sudarsan-pattnaik-creates-amazing-sculpture-of-lord-shiva-on-puri-beach-on-mahashivratri-1778055-2021-03-11

 

6. उपसंहार

शिव भारतीय सभ्यता, धर्म और विचार के आदि देवता रहे हैं। युगों से कला में असंख्य रूपों में शिव का चित्रांकन किया गया है। शिव के प्राचीनतम प्रतीकात्मक रूप का सर्वप्रथम शास्त्रों में उल्लेख किया गया है। शिव को विभिन्न शास्त्रों में अलग-अलग नामों से उल्लेखित किया गया है। भारतीय चित्रकला में शिव का अद्भुत समागम देखने को मिलता है। शिव का वर्चस्व भारतीय प्राचीन काल से लेकर वर्तमान समय तक अनवरत चला आ रहा है। वर्तमान समय में समकालीन कलाकार विभिन्न माध्यमों में शिव का अंकन कर रहे है। मूर्तिकला, स्थापत्य कला, चित्रकला, डिजिटल (कम्प्यूटर कला) आदि सभी रूपों में शिव का चित्रांकन दृष्टनीय है।.

 

RefErences

Agarwal, V. S. (1966). Siva Mahadeva, Varanasi.

Bandyopadhyay, S. R. & Adhikari S. M. (2018). Saiva Iconography: A Fact of Indian Art and Culture. Kolkata: Sagnik Books.

Banerji, P. (1973). Early Indian Religions. Delhi: Vikas.

Enstice, W. and Peter M. (2003). Drawing: (Space, Form, and Expression). Pearson Education.

Handa, O.C. (1992). Siva in Art (A Study of Saiva Iconography and Miniatures). New Delhi: Indus Publishing Company.

Kramrisch, S. (1981). The Presence of Siva, Princeton University Press. https://doi.org/10.1515/9780691224220.

Pattanaik, D. (1999). Shiva - An Introduction. Vakils, Feffer and Simons Limited.

Preble, D., Preble, S. & Frank P. L. (1999). Artforms: An Introduction to the Visual Arts. Wesley Educational Publishers Inc.

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