ShodhKosh: Journal of Visual and Performing Arts
ISSN (Online): 2582-7472

MONO PRINTING ON CONTEMPORARY WESTERN WEARS समकालिक पश्चिमी कैजुअलवियर परिधानों पर मोनो प्रिंटिंग

MONO PRINTING ON CONTEMPORARY WESTERN WEARS

समकालिक पश्चिमी कैजुअलवियर परिधानों पर मोनो प्रिंटिंग

 

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1 Senior Lecturer Government Women’s Polytechnic College Bhopal (M.P.), India

 

 

 

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Received 12 October 2021

Accepted 14 November 2021

Published 20 December 2021

Corresponding Author

Aarti Lad, aartilad69@gmail.com

 

DOI 10.29121/shodhkosh.v2.i2.2021.53

Funding: This research received no specific grant from any funding agency in the public, commercial, or not-for-profit sectors.

Copyright: © 2021 The Author(s). This is an open access article distributed under the terms of the Creative Commons Attribution License, which permits unrestricted use, distribution, and reproduction in any medium, provided the original author and source are credited.

 

 

 

 

 

 

 

 

ABSTRACT

 

English: Mono printing is the first printing technique used by younger people in Western countries to create a new surface for painting with the natural colors available and now to create textures on clothing as well. It has no history in India. The present research aims to gather more information about this printing technology and explore its future in the Indian modern fashion market. For this a collection of contemporary western casualwear was designed and developed. The responses of 100 adolescent girls as respondents were collected and analyzed for the awareness of this art form and its viability in the fashion market. The study revealed that the majority of the sample group were unaware of this printing technique but found the design and application of this technology to be highly aesthetic in the quality garments developed. There is a good market potential for the fashion products made by this technology of printing.

 

Hindi:   मोनो प्रिंटिंग प्रथम प्रिंटिंग तकनीक है, जो पश्चिमी देषों में कम उम्र के लोगों द्वारा उपलब्ध प्राकृतिक रंगों के साथ पेंटिग के लिए नए प्रकार की सतह बनाने और अब कपड़ों पर भी बनावट बनाने के लिए उपयोग की जाती है। भारत में इसका कोई इतिहास नहीं है।  वर्तमान अनुसंधान का उद्देश्य इस प्रिंटिंग तकनीक के बारे में अधिक जानकारी एकत्रित करना और भारतीय आधुनिक फैशन बाजार में इसके भविष्य का पता लगाना है। इस के लिए समकालिक पश्चिमी कैजुअलवियर परिधानों का संग्रह डिजाइन और विकसित किया गया। उत्तरदाताओं के रूप में १०० किशोरियों की प्रतिक्रियाओं को एकत्र कर उनमें इस कला की जागरूकता और फैशन बाजार में व्यवहार्यता का विश्लेषण किया गया । अध्ययन से पता चला है कि, सेम्पल समूह में अधिकांष प्रिंटिंग की इस तकनीक से अनभिज्ञ है, लेकिन विकसित गुणवत्तापूर्ण परिधानों की डिजाइन और उनपर इस तकनीक का उपयोग को उन्होंने अत्यधिक सौंदर्यात्मक पाया । प्रिंटिंग की इस तकनीक से तैयार फैशन उत्पादों के लिए बाजार में अच्छी संभावनाएं हैं।

 

Keywords: Mono Printing, Printing Technique, Western World, Contemporary Casual Western Wears, Fashion Market, मोनो प्रिंटिंग, प्रिंटिंग तकनीक, वेस्टर्न वर्ल्ड, कंटेम्पररी कैजुअल वेस्टर्न वेयर्स, फैशन मार्केट

 

1.    प्रस्तावना  

1.1 मोनो प्रिंटिंग का इतिहास

        मोनो प्रिंट और मोनोटाइप की उत्पत्ति का कोई रिकॉर्ड इतिहास में नहीं है। लेकिन, हम इस अद्वितीय विधि जिसे आज मोनो प्रिंटिंग के रूप में जाना जाता है, के विकास के प्रारंभिक चरणों का पता लगा सकते हैं।

       सर्वप्रथम कलाकार एक डच चित्रकार और प्रिंटमेकर हरक्यूलिस सेगर्स (1589-1638) को अपनी शैली के लिए प्रिंटमेकिंग के इतिहास में सबसे मूल और प्रभावशाली कलाकार के

 


रूप में जाना जाता है। उन्होंने विभिन्न स्याही और कागजों का उपयोग करके प्रयोग किये और पुनः अपने प्रिंटों पर हाथ से अंकन कार्य किया। क्षितिज को बल प्रदान करने के लिए उन्होंने  रंगीन छपाई के साथ, असामान्य कागजात (और लिनन) पर, और असामान्य क्षैतिज प्रारूपों के साथ प्रयोग किया।

कलाकार रेम्ब्रांट (1650) ने हर बार अलग-अलग प्रकार से प्लेट पर स्याही को डाला और मिटाया, और फिर स्याही में लताओं, उंगलियों या तूलिकाओं को घुमाकर पुनः काम किया। जितनी बार उन्होंने प्रिंट बनाया, उन्होंने हर बार थाली पर स्याही को नियंत्रित करके नाटकीय अंधेरा और उन्कृष्ट छाया निर्मित की।इसलिए, उसके द्वारा बनाई गई प्रत्येक छाप पिछली से लगभग अलग थी।

बेनेडेटो कैस्टिलोन (1609-1664) रेम्ब्रांट की कला से प्रेरित थे। उन्होंने एचिंग के विशिष्ट रूप को बहुत ही व्यक्तिगत तरीके से उपयोग किया। उन्होंने प्रकाश और छाया को चित्रकारी में कुशलता से प्रबंधित किया। छवियों को सीधे एक अनईचेड प्लेट पर बनाकर, और फिर अद्वितीय छाप लेकर उन्होंने प्रिंटमेकिंग की एक नई प्रक्रिया तैयार की। उन्होंने एक लकड़ी से सफेद रेखाओं को बनाया, अपनी उंगलियों और ब्रशों से छायावाले क्षेत्रों को बनाया , फिर एक प्रेस का उपयोग कर रंग की प्लेट को छापा। यह विधि मोनो प्रिंटिंग के लिए आज इस्तेमाल की जाती है। यह प्रिटिंग तकनीक लोकप्रिय नहीं हो सकी क्यूकि, इसमें एक ही प्रिंट लेने की सीमा होती है और जब प्रेस के भारी दबाव से कार्य किया जाता है तो इस तकनीक का प्रभाव बहुत अधिक आकस्मिक होता है और स्याही के बेकाबू गुणों पर निर्भर होता है।Understanding Monoprint Printmaking (2021)

150 वर्षों के बाद, विलियम ब्लेक (1757-1827) ने मोनोटाइप के साथ प्रयोग करना शुरू किया और इस मीडिया के साथ काम करने वाले सबसे महत्वपूर्ण कलाकारों में से एक बन गए। लेकिन प्रक्रिया फिर से आने वाले वर्षों में लगभग गायब “उपयोग शुरू किया। इन मुद्रण प्रयोगों में फोटोग्राफी के शुरुआती विकास का प्रभाव था, जिसमें काले और सफेद विरोधाभास थे और सकारात्मक और नकारात्मक छवियों की परस्पर क्रिया थी।

एडगर डेगास (1834-1917) का परिचय “ मुद्रित चित्रों “ से हुआ। उनके दोस्त लुडोविक लेपिक ने रंग पोंछते हुए छाया निर्मित करने के प्रयोग का आनंद लिया और पोंछने की रेट्रोयूजेज विधि तैयार की, यह एक तरीका है जिसमें प्रिंट पर बेहतर टोन का बनाने के लिए पहले से पोंछी रंग की प्लेट में और स्याही जोड़ी जाती है।

डेगास ने काम किया और अपनी अपनी प्लेटों पर विभिन्न तरीकों से काम किया, लत्ता, उंगलियों और ब्रश का उपयोग कर प्लेट में रंग पोंछने  और अधिक रंग जोडें, और रंग को बढ़ाने के लिए पेस्टल से अंतिम रूप प्रदान किया। प्रत्येक प्रिंट कला का अनूठा नमूना था।1877 की तीसरी इंप्रेशनिस्ट प्रदर्शनी में डेगास ने अपने मोनोटाइप का प्रदर्शन किया।इनके काम को देखकर कई कलाकारों को कला के इस रूप में रुचि हुई। Abdullah et al. (2016)

केमिली पिसारो (1830-1903), ने अपरंपरागत तरीकों का पारंपरिक प्रिंटमेकिंग तरीकों में इस्तेमाल किया। उन्होंने अद्वितीय छापों की एक श्रृंखला बनाई है, अपनी खामियों को अपने लाभ में बदलने के लिए प्रकाश और बनावट के प्रभाव उत्पन्न किए । मीडिया के रचनात्मक और सहज उपयोग के साथ, प्रिंटमेकिंग ने अंततः एक अलग दर्जा हासिल कर लिया।

 फ्रांसीसी पियरे बोनार्ड (1867-1947) ने कागज को हाथ से दबाकर या पहले से चित्रित और पेंटिग करी हुई धातु की प्लेट पर रोलर से दबाकर बड़े पैमाने पर सैकड़ों रंगीन मोनोटाइप का उत्पादन किया।

पाब्लो पिकासो (1881-1973), चगल, मिरो, डबफेट, मैटिस और कई अन्य समकालीन कलाकारों ने भी सैकड़ों असाधारण मोनोटाइप का उत्पादन किया। Monoprints (2021)

 

 

1.2. मोनो प्रिंटिंग विधियां

मोनो प्रिंटिंग प्रिंटमेकिंग का एक रूप है। इसमें केवल एक बार छवियां या रेखाऐं बनाई जा सकती हैं। मोनो एक लैटिन शब्द है जिसका अर्थ होता है एक। मोनो प्रिंट बनाने के लिए उपयोग की जाने वाली मानक प्रिंटमेकिंग तकनीकें लिथोग्राफी, वुडकट और नक्काशी हैं।

इस विधि की विशेषता यह है कि-

·        इसमें दो छवियां समान हो सकती हैं लेकिन एक जैसी नहीं

·        संस्करण संभव हैं

मोनो प्रिंट की खूबसूरती अद्वितीय स्वच्छता में निहित है जो प्रकाश की गुणवत्ता बनाती है। मोनो प्रिंट में कुछ बुनियादी मैट्रिक्स के रूप होते हैं।

मोनो प्रिंट बनाने की प्रक्रिया में हमेशा एक पैटर्न या छवि का हिस्सा होता है जो प्रत्येक प्रिंट में लगातार दोहराया जाता है। कलाकार अक्सर बनावट बनाने के लिए उकेरी हुई प्लेटों या किसी प्रकार के पैटर्न जैसे फीता, पत्तियां, कपड़े या रबर गैसकेट जैसी चीजों का उपयोग करते हैं। इसलिए, हमारे पास एक मोनो प्रिंट है जिसमें बार-बार पैटर्न होता है, यदि कुछ स्याही प्लेट पर रहती है, तो बिना स्याही को जोड़े एक और प्रिंट को लेना संभव है, इसे भूत छवि कहा जाता है। भूत छवि के अपने अद्वितीय गुण होते हैं, जो पहले प्रिंट की तुलना में बहुत हल्का होता है। प्लेट पर बनी भूत छवि में और अधिक स्याही या वाटरकलर जोड़ना भी संभव है। इस मामले में, दूसरी छवि जो ज्यादातर पिछली छवि पर आधारित होती है एक मोनो प्रिंट होगी, क्योंकि पिछले प्रिंट से बचा हुआ रंग इसका मैट्रिक्स हो जाएगा ।

मोनो प्रिंट बनाने के तीन मुख्य तरीके हैं

·        ऐडिटिव या प्रकाश क्षेत्र विधि, जिसमें प्लेट पर पिगमेंट जोड़कर या पिगमेंट निर्मित करके छवि को चित्रित किया जाता है

·        सब्ट्रैक्टिव या अंधेरे क्षेत्र विधि जिसमें रंग की पूरी प्लेट को पिगमेंट की एक पतली परत से ढांक दिया जाता है, जिसे कलाकार ब्रश, लता, लाठी, या अंय उपकरणों के साथ हटाकर अपनी छवि तैयार करता है ।

·        तीसरी विधि दोनों का संयोजन है।

 

ऐडिटिव विधि में- हम साफ प्लेट से शुरुआत करते हैं और उसपर स्याही या वाटरकलर मीडिया को विभिन्न तरीकों से लगाते है। जब प्लेट पर चित्र बनाना पूर्ण हो जाता है, तो एक अनूठे तरह के प्रिंट को बनाने के लिए गीले पेपर के टुकड़े से एक नक्काशी बनाई जाती है। इस विधि में लगभग पूरी स्याही कागज में स्थानांतरित हो जाती है इसलिए एक से अधिक प्रिंट बनाना संभव नहीं होता है, इसलिए उपसर्ग मोनो कहा  जाता है।

सब्ट्रैक्टिव विधि में- हम सतह (धातु या प्लास्टिक प्लेट) को पूरी तरह से रंगीन मीडिया से ढांक देते हैं, फिर तस्वीर या प्रिंट बनाने के लिए आवष्यक क्षेत्रों की स्याही को आंशिक रूप से या पूरी तरह से हटा देते हैं। इस प्रक्रिया को ब्रश, टूथपिक्स, कॉटन स्वाब, फोम रबर, उंगलियों, लत्ता आदि का उपयोग करके किया जा सकता है। ( www.monoprints.com)

 

1.3. मोनो प्रिंट के प्रकार

पुनर्मुद्रित ब्लॉक से बनी छवि का एक ही प्रभाव मोनो प्रिंट है। धातु प्लेटें, लिथो पत्थर या लकड़ी के ब्लॉक जैसी सामग्रियों का उपयोग उकेरने के लिए किया जाता है। एक ही छवि की कई प्रतियां छापने के बजाय, पेंटिंग या ब्लॉक पर कोलाज बनाकर केवल एक छाप बनाई जा सकती है। नक्काशी प्लेटों पर भी इस प्रकार से रंग स्याही डाली जाती है, जो कि  सही में अर्थपूर्ण और अद्वितीय हो, जिससे छवि को बिल्कुल समान पुनः तैयार नहीं किया जा सकता है। 

मोनो प्रिंट में उन तत्वों को भी शामिल किया जा सकता है जो बदलते हैं, जहां कलाकार छपाई के बीच या मुद्रण के बाद छवि में पुनः काम करता है ताकि कोई दो प्रिंट बिल्कुल समान न हों। मोनो प्रिंट में कोलाज, हाथ से चित्रित परिवर्धन, और ट्रेसिंग का एक रूप शामिल हो सकता है जिसके द्वारा एक मेज पर गाढी स्याही डाली जाती है, कागज ऊपर पर रखा जाता है और फिर चित्र बनाया जाता है, जिससे कागज पर स्याही स्थानांतरित हो जाती है।  

प्रिंट बनाने के लिए इस्तेमाल की जाने वाली स्याही के प्रकार, रंग और दबाव में फेरबदल करके अलग-अलग मोनो प्रिंट भी बनाया जा सकता है। प्रिंटमेकिंग तकनीकों में मोनो प्रिंट सबसे चित्रकारी विधि के रूप में जानी जाती है ; यह अनिवार्य रूप से एक मुद्रित पेंटिंग है। इस विधि की विशेषता यह है कि कोई भी दो प्रिंट एक जैसे नहीं होते हैं। इस माध्यम की सुंदरता इसकी अपनी सहजता और प्रिंटमेकिंग, पेंटिंग और ड्राइंग मीडिया के संयोजन में है। Monoprints (2021)

 

1.4. मोनो प्रिंट की तकनीक

मोनो प्रिंटिंग में मैट्रिक्स होता है जिसे पुनःउपयोग किया जा सकता है, लेकिन समान परिणाम उत्पन्न करने के लिए नहीं। इसमें प्लेट से कागज, कैनवास या अन्य सतह पर स्याही का हस्तांतरण शामिल है, जिसपर अंततः कला को बनना है। मोनो प्रिंट, उन प्लेटों के परिणाम हैं जिनपर स्थायी विशेषताएं हैं।

मोनो प्रिंट को एक विषय पर विविधताओं के रूप में सोचा जा सकता है, यह थीम प्लेट पर पाई जा रही कुछ स्थायी विशेषताएं - रेखाओं, बनावटों आदि - जो हर प्रिंट में बनी रहती हैं के परिणामस्वरूप होती है। विविधताएं इस बात का परिणाम होती है कि प्रत्येक प्रिंट से पहले किस प्रकार प्लेट पर रंग किया गया है। विविधताएं अंतहीन हैं, लेकिन प्लेट पर कुछ स्थायी विशेषताएं एक प्रिंट से अगले प्रिंट तक बनी रहेंगी।

 एक प्लेट पर समान रूप से स्याही फैलाएं, स्याही लगी छवि क्षेत्र पर कागज या कपड़े का एक टुकड़ा रखें और फिर सीधे कागज या कागज के पीछे आकृति को खींचें, खीचीं गई रेखाऐं कागज पर स्थानांतरित हो जाएगा और एक रिवर्स छवि बन जाएगी।

एक साथ कई रेखाओं को बनाने से गहरे क्षेत्र का उत्पादन होगा, जबकि हाथ से रब करने से़ नाजुक नरम प्रभाव बनेगा। पेंसिल के दबाव को बदल करके और विभिन्न प्रकार की चैड़ाई और कठोरता का उपयोग करके, विभिन्न प्रभाव प्राप्त किए जाते हैं।

चित्र 1 मोनो प्रिंट के विविध रूप

 

 

2.    सामग्री और विधि

सेम्पल साइज: प्रतिक्रियाओं को एकत्रित करने हेतु उत्तरदाताओं के रूप में १०० किशोरियों से  जानकारी ली गई।

लक्ष्य समूह: डिजाइन और विकसित किए समकालिक पश्चिमी कैजुअलवियर परिधानों का संग्रह को ध्यान में रखते हुए 13-19 वर्षीय किशोरिया।

सेम्पल क्षेत्र: रहवासी क्षेत्र एवं कालेज की किशोरिया।

डाटा एकत्रित करने हेतु उपकरण एवं विधि: डिजाइन और विकसित किए समकालिक पश्चिमी कैजुअलवियर परिधानों का संग्रह को प्रदर्षित कर प्रष्नावली के माध्यम से प्रतिक्रिया एकत्रण। 

डिजाइन: मोनो प्रिंट की तकनीक का उपयोग कर समकालिक पश्चिमी कैजुअलवियर परिधानों का संग्रह डिजाइन और विकसित किया गया।

 

2.1. रफ स्केच

मोनो प्रिंट की तकनीक का उपयोग कर विभिन्न प्रकार के परिधान जैसे - टॉप, लॉन्ग टॉप, फ्रॉक, वन पीस ड्रेस, टू पीस ड्रेस, स्कर्ट टॉप, निचले दो हिस्सों में बटे परिधान किशोरियों के लिए डिजाइन किये गये। चित्र निम्नानुसार है, इनमें से चयनित डिजाइन विकसित किये गये।

 

चित्र 2 मोनो प्रिंट की तकनीक का उपयोग कर डिजाइन किये विभिन्न प्रकार के परिधान के रफ स्केच

 

 

2.2. ड्रेस हेतु प्रिटिंग विधि

चित्र 3 मोनो प्रिंट की तकनीक का उपयोग कर विकसित किये परिधान की प्रक्रिया

 

 

 

 

 

 

 

 

2.3. विकसित किए समकालिक पश्चिमी कैजुअलवियर परिधानों का संग्रह 1-8

चित्र 4 मोनो प्रिंट की तकनीक का उपयोग कर विकसित किये विभिन्न परिधान

 

3.    सर्वेक्षण और डाटा विष्लेषण

चित्र 5 मोनो प्रिंट की तकनीक की जागरुकता का विष्लेषण

 

चित्र 6 कैजुअलवियर में प्राथमिकता का विष्लेषण

 

चित्र 7  तैयार परिधानों के सौन्दर्य रेटिेंग का तुलनात्मक अध्ययन

 

चित्र 8 तैयार परिधानों में सतह सजाने की तकनीकों के उपयोग की रेटिेंग

 

चित्र 9 तैयार परिधानों में गुणवत्ता की रेटिेंग

 

चित्र 10 तैयार परिधानों को दिए गए मूल्य पर खरीदने को तैयार उत्तरदाताओं का प्रतिषत

 

4.    निष्कर्ष

सर्वेक्षण के अनुसार उत्तरदाता मोनो प्रिंटिंग की कला से अनभिज्ञ थे। आरामदायकता का गुण कैजुअलवियर में सबसे अधिक  पसंद किया जाता है। उत्तरदाता मोनो प्रिंटिंग के उपयोग के साथ कढ़ाई जैसी कुछ अन्य सतह आभूषण तकनीकों के संयोजन से डिजाइन और विकसित गुणवत्ता वाले उत्पादों के सौंदर्यबोध से संतुष्ट थे। भारत में आगामी फैशन उत्पाद बाजार में मोनो प्रिंटिंग की कला के लिए अच्छी बाजार क्षमता उत्तरदाताओं की उत्सुकता से परिलक्षित होती है।

 

Refrences

Abdullah, M. Legino, R. Ebenezer, Jebakumari, S. (2016). Advanced Science Letters, Creative Process of Monoprint Into Mix Media Exploration, 22, 1452-1454.  https://doi.org/10.1166/asl.2016.6640.

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