ShodhKosh: Journal of Visual and Performing Arts
ISSN (Online): 2582-7472

A STUDY ON COLLAGE TECHNIQUE BY CONTEMPORARY INDIAN ARTISTS समकालीन भारतीय कलाकारों की कोलाज तकनीक का अध्ययन

A Study on collage technique by contemporary Indian Artists

समकालीन भारतीय कलाकारों की कोलाज तकनीक का अध्ययन

Manisha Verma 1 Icon

Description automatically generated, Dr. Ishwar Chand Gupta 2

 

1 Research Scholar, Department Drawing and Painting, Dharma Samaj Mahavidyala Aligarh (U.P.), Dr. Bhim Rao Ambedkar University Agra (U.P.), India

2 Research Director, Associates Professor, Department Drawing and Painting, Dharma Samaj Mahavidyala Aligarh (U.P.), India

 

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ABSTRACT

English: In Indian Culture the Inclusion of Various arts and thoughts such a powerful Medium in which human being can express their feelings, thoughts in a cogent manner through paint brush because we believed that contemporary art means today from the art of. Though the in inception of collage technique had been come into innovation since 1912-14 by artist George Braque and Pablo Picasso.

Collage technique is a visual depiction of feelings views hovering in mind made from conjoining different forms, materials like news-paper clipping, ribbons, bits of colored or handmade paper's portions of other artwork, photographs and such glued to a base surface. The technique of collage is very suitable to present a particulars atmosphere or context that you want to capture in the form of new product ideas and concepts.

Visual thinking and visualization of ideas is inherent in thinking up ideas and solution in design some issue cannot simplify be captured in words and this is where collages assist in structuring, developing, analyzing, and presenting (depicting) the visual issues that are difficult to express in words.

Collage technique tool has given opportunities by depicting their prumaeval expression using fast/bright colour and created using fast/bright colours and created attractive pictures enchanting with Indian culture fragrance by contemporary Indian artist. The rising contemporary Indians artist stirring towards blossoming and spreading sustainable fragrance on collage technique.

 

Hindi: भारतीय संस्कृति में विभिन्न कलाओं का समावेश देखने को मिलता है। कला ही एक ऐसा सशक्त माध्यम है जिसमें मानव अपने मनोभावों तथा विचारो को अपनी तूलिका के माध्यम से प्रदर्शित कर सकता है क्योंकि हमारा मानना है कि समकालीन कला का तात्पर्य आज की कला से है। इस शोध-पत्र के अंतर्गत कलाकारों की कोलाज तकनीक के अध्ययन पर आधारित विवरण प्रस्तुत किया है। सर्वप्रथम यह जानने की आवश्यकता है कि कोलाज विधा क्या है? इस विधा की सम्पूर्ण प्रक्रिया का प्रयोग व इसकी सामाग्री पर प्रकाश डालते हुये इसके विकास को इंगित करता है कोलाज विद्या को (कट-पेस्ट) की कला भी कह सकते है। इस शैली के अंतर्गत समकालीन कलाकारों ने अपनी मौलिक अभिव्यक्ति व चटक रंगो व आकर्षक रेखाचित्रों का चित्रांकन कर आकृतियों को कलात्मक रूप प्रदान कर सुन्दर कोलाज चित्रों के अद्भुत अलंकरण सेआज पूरे विश्व में भारतीय संस्कृति रूपी पुष्प की महक को फैलाया है। कोलाज तकनीक में उत्कृष्ट संयोजन के द्वारा पूरी दुनिया में स्वयं की विशिष्ट पहचान रखती है। इन सभी कलाकारों ने कोलाज शैली को शिखर तक ले जाने में महत्वपूर्ण भूमिका निभाई है। व इस नवीन शैली के माध्यम से मानव जीवन में नयी संभावनाए दिखाई देने लगी है, और उपयोगी व अनुपयोगी वस्तुओं के प्रयोग से बनती है। वहीं कलाकृतियाँ जो कला के नये स्वरूप को वर्णित करती हैं। तथा कोलाज विद्या को एक नव चेतना प्रदान की है। कोलाज माध्यम में एक नई उर्जा व उत्साह देखने को मिली है जो एक नई दिशा की ओर चयनित के करती है।

 

Received 31 May 2022

Accepted 11 July 2022

Published 16 July 2022

Corresponding Author

Manisha Verma, kvmanisha27@gmail.com

DOI 10.29121/shodhkosh.v3.i2.2022.154  

Funding: This research received no specific grant from any funding agency in the public, commercial, or not-for-profit sectors.

Copyright: © 2022 The Author(s). This work is licensed under a Creative Commons Attribution 4.0 International License.

With the license CC-BY, authors retain the copyright, allowing anyone to download, reuse, re-print, modify, distribute, and/or copy their contribution. The work must be properly attributed to its author.

 

Keywords: Collage Technique, Contemporary Artists, Useful-Useless Newspaper Clipping, Handmade/Colour Papers, कोलाज तकनीक, समकालीन कलाकार, उपयोगी-बेकार समाचार पत्र कतरन, हस्तनिर्मित/रंगीन कागज


 

1.  प्रस्तावना

विश्व में भारत की पहचान कला से है। हमारी भारतीय संस्कृति में निहित स्थापत्य कला व लोक तत्व के अंतर्गत जीवन में व्याप्त समाजिक, ऐतिहासिक, पौराणिक, धार्मिक, परम्पराओं से है क्योंकि कलाएँ परम्पराओं की निर्वाहक होती है। समकालीन कला का उदय 19 वीं शताब्दी से 20 वीं शताब्दी के मध्य निर्मित कला के लिय संदर्भित किया जाता है। उसी समय पाश्चात्य कलाकारों ने अपने रचनात्मक कला कृतियों को कोलाज माध्यम में निर्मित किया। ये घनवादी कलाकार है पाब्लो पिकासो व जार्ज ब्राक के संयुक्त प्रयासों से संभव हो सका है।

समकालीन कला में कुछ नवीन तत्व थे जो पश्चात्य कला के स्वरूप की झलक दिखाई देती थी क्योंकि अमूर्तकला और अतियथार्थवाद आदि का प्रभाव भारतीय कला पर दृष्टिगत होने लगा। भारतीय कलाकार इस नूतन शैली से अछूते न रह सके। इस शैली में नयी संभावनाए दिखाई देने लगी और उनमें हो रहे परिवर्तन से प्रभावित होकर इस तकनीक में नय प्रयोगों द्वारा अपनी पहचान राष्ट्रीय और अंतरार्राष्ट्रीय स्तर पर बनायी।

कोलाज शैली - (1912-1914) में कोलाज शैली का आगज हुआ। पाब्लो-पिकासो और जार्ज ब्राक से ही कोलाज चित्रण का आरम्भ माना जाता है।) Sharma et al.(2010) ये क्यूब्जिम़ अविष्कारक, घनवादी चित्रकार माने जाते है।

कोलाज शब्द का अर्थ - कोलाज शब्द फ्रैन्च शब्द से आया है इसे (पेपियर कोला) (कॉलर) से निकला है। जिसका अर्थ है - चिपकाना।

 

कलाविदों के अनुसार - परिभाषा:- डॉ ममता चतुर्वेदी

’’ (कला जीवन का अनुकरण मात्र ही नहीं है बल्कि वह मौलिक सृजन है, पुनर्निमाण है सृष्टि है।) Agarwal (2011)’’

 

2.  कोलाज शैली की तकनीक

कोलाज तकनीक में विभिन्न सामाग्री का उपयोग किया जाता है। जैसे- पेपर कोलाज, कपडो की कतरन, फोटो मोंटाज़ (छवियों), न्यूज पेपर में मुद्रित तस्वीरें, व मिश्रित मिडिया माध्यम, डिजिटल कोलाज, काँच के टुकडे, लकडी आदि अनुपयोगी वस्तुओं का उपयोग शामिल है। यह किसी धरातल, सतह, बोर्ड मोटे, पेपर पर कोलाज आकृतियों का सृजन किया जाता है। जिसकों गोंद चिपकाने वाला पदार्थ की सहायता से चिपका कर कलाकृतियों को अपनी कल्पना व अनुभव के आधार पर कृति को कलात्मक रूप व रचनात्मक प्रभाव दर्शाकर अपने भावों को प्रस्तुत कर सकते है। इस नवीन तकनीक के माध्यम से मौलिक अभिव्यक्ति से उत्कृष्ट आभा का एहसास होता है। (कोलाज कृति में अपनी इच्छा अनुसार अंतराल में इस प्रकार से संयोजित किया जाये। कि किसी प्रकार के कलात्मक रूप की अभिव्यक्ति हो सके। इसे ही कोलाज शैली का नाम दिया गया है।) Balwant (2014) कोलाज शैली एक ऐसी विधा है जिसमें रंग, ब्रश, कैंची इत्यादि का प्रयोग नहीं होता है। लेकिन प्राचीन समय में चित्रकार प्राकृतिक रंगो जैसेः- टेसू के फूलों से लाल रंग, हल्दी से पीला रंग, कोयले से काला रंग बना0या जाता था। कोलाज तकनीक में कलाकार उपयोगी-अनुपयोगी वस्तुओं से सुंदर कृतियों का निर्माण कर कोलाज चित्रो का सृजन किया जाता है जो देखने में बहुत आकर्षक लगते है जिन्हें देखकर हमें आनंद की अनुभूति होती है। कोलाज भी कला के क्षेत्र में नवीन शैली नहीं है। यह हमारी भारतीय परम्पराओं में पहले से ही निहित है, क्योंकि मेरा मानना है कि कोलाज कला का मूल बीज हमारी लोक परम्पराओं में निहित है।

उदाहरण: (वृन्दावन शोध संस्थान का भ्रमण किया तो हमें यह साक्ष्य प्राप्त हुये कि हमारे देव-देवालय के विग्रह में प्रयुक्त आभूषण में कोलाज विद्या के चिन्ह दर्शित होते है। जैसेः- राधा-रानी के पेरों की नूपूर, नाक में मोर बीजनी में प्रयुक्त रत्न जणित आभूषण भी कोलाज का ही रूप है। अतः हम कह सकते है कि यह कला पश्चिमी देशों से नहीं आयी है यें हमारे यहाँ से आयी है। जैसेः- साँझी बनाते समय हम कोणियों, काँच और फूलों की पंखुडियों का उपयोग कर हम आकृतियों को सुसज्जित कर कोलाज कृति का सृजन किया जाता है, इसलिए हमारे लोक चित्रण के मूल बीज पुराने समय से मिलते है। यह बाहर की शैली होते हुये भी हमारे यहाँ से पश्चिमी देशों में गयी है।

 

3.  समकालीन भारतीय कलाकारों की तकनीक (कोलाज)

कोलाज विधा के प्रमुख कलाकारों की तकनीक का वर्णन इस प्रकार है।

चित्र 1

चित्र 1 स्वामी शरणानन्द महाराज जी

Source Picture by Uma Sharma (Artist)

 

उमा शर्मा: उमा शर्मा उन प्रतिभाशाली कलाकरों में से है जिन्होने अपनी कोलाज कला की एक नवीन शैली विकसित की और कोलाज कला में अपनी महत्वपूर्ण भूमिका अदा की, इनका जन्म 1950 में श्री कृष्ण की जन्म स्थली मथुरा में हुआ है। उमा शर्मा से हुयी व्यक्तिगत वार्तालाप में बताया की कोलाज कृति का संयोजन करते समय जिन सामग्री का आप उपयोग करती है उनमें सर्वप्रथम पेपर की कतरन, न्यूज पेपर में प्रयुक्त विज्ञापन आदि का उपयोग शामिल है। वह अपनी कोलाज कृति में जैसे मंदिर के आकार को दर्शाने के लिए यह बोर्ड, कैनवास पर सर्वप्रथम विचार, कल्पना के अनुरूप आकृति के निर्माण करने के लिये सीधे न्यूज पेपर को कृति के अनुसार चिपकाती है फिर अनुभव के आधार पर गोंद की सहायता से उमा चिपकाकर सुन्दर कोलाज कृति का सृजन करती है। यदि उन्हें किसी मानवाकृति के स्केच को बनना होता है वो वह कागज के छोटे-छोटे टुकडों को आकृति की आवश्यकता अनुसार गहरे-हलके टोंन देती है। वह रंग, ब्रश, कैंची इत्यादि का प्रयोग नहीं करती है, आप आध्यात्मिक परिवेश में जन्मी व रही है। जिसका प्रभाव आपकी कलात्मक शैली पर पडा है उन्होने कोलाज पद्धति को भारत में सुरक्षित रखा है। यह यथार्थवादी कोलाज तकनीक में चित्रण करती है। उन्होने कोलाज विधा में चित्रांकन करते समय इनको ब्रजधाम ’’इंडिया बुक ऑफ  रिकॉर्ड’’ में इनकी कोलाज कृति आज भी दिल्ली में सुरक्षित है। उनको ’’उत्तर-प्रदेश सरकार द्वारा विशिष्ट कला सम्मान’’ से सम्मानित किया गया है। इनकी प्रमुख कृतियों में वांसुरी बजाते कृष्ण, स्वामी शरणानंद महाराज जी, मथुरा वृन्दावन के सभी घाटों में विश्राम घाट आदि चित्रों का चित्रण कोलाज विधा में अनौखा संयोजन के द्वारा अपने भावों को कोलाज विधा में प्रदर्शित करती है, इनको कोलाज कला से बहुत लगाव है, इनका कार्य बडा ही प्रशंसनीय है, आज भी नया आयाम देने में योगदान दे रही है। Chaturvedi (2019), चित्र 1, चित्र 2

चित्र 2

चित्र 2 विश्राम घाट

Source Picture by Uma Sharma (Artist)

 

जी सुब्रमण्यम: जी सुब्रमण्यम विशिष्ट कलाकारों में से एक हैं। सुब्रमण्यम का जन्म (1952) थांडवंकुलम में हुआ था। जो तमिलनाडू में है।  चित्र 3, चित्र 4

चित्र 3

चित्र 3  हनुमान: आकर- 22x18 इंच, माध्यम- कैनवास पर कोलाज

Source Picture by G. Subrahmaniam Studio 3 Art Gallery

 

इन्होंने अपनी कोलाज माध्यम से सुन्दर अलंकरण कर अपनी एक उत्कृष्ट पहचान बनाई है। इनके कोलाज चित्रण में त्रि-आयामी विस्तार दिखाई देता है। कोलाज तकनीक के अंतर्गत रंगीन कागज, पत्रिकाएँ, ऐक्रेलिक रंग, इंक वाश इत्यादि का उपयोग करते है। जी सुब्रमण्यम मिश्रित मिडिया माध्यम में काम करते है। यह रंगीन पत्रिकाओं के छोटे-छोटे टुकडे़ करके अपनी आकृति के अनुसार कैनवास पर सर्वप्रथम स्कैच बनाते है फिर इंक वाश का प्रयोग करके पूरे कैनवास पर कागज से अपनी आकृति के अनूरूप कोलाज विधा में  आकृति का सृजन करके उसको गोंद की सहायता से चिपकाकर कोलाज की अनूठी कृतियाँ को संयोजन कर मन में नयी उमंग भर देते है। यह अपनी पुत्री से बहुत प्रभावित थे। इनकी प्रमुख कृतियों में, बुद्ध, बेटियों, कृष्ण, हनुमान, गणेश आदि की पौराणिक धार्मिक चित्रों का चित्रांकन कर अपनी कृति को कलात्मक रूप देकर मोहक अभिव्यक्ति व भावों को दर्शाते है। इनके अन्य चित्र में (बेटियों) इस श्रृखंला में पृष्ठभुमि में पक्षियों के साथ बालिकाओं की मासूमीयत को दिखाया है। 2004 में इन्होने इस्कॉन मंदिर की यात्रा की ओर उसके बाद छोटी सी लड़की की छवि को राधा के रूप में अपने कोलाज चित्रण में संयोजित किया है। इनके चित्रों में एवं बच्चे की कल्पना की तरह व सहज रूप और इंप्रेशनिस्ट मास्टर्स से प्रेरित हुए। जी सुब्रमण्यम को कई पुरस्कारों से सम्मानित किया गया है। जिन्में 1998 में तमिलनाडु राज्य ललित कला अकादमी पुरस्कार, ए.आई.एफ.एस.सी. अवार्ड, आल  इंडिया फाइन आर्ट्स एवं क्राफ्ट्स सोसाइटी, नई दिल्ली (2000) और सऊदिया 6 वाँ मालवान जीसीसी कंट्रीजबीनले अवार्ड (2003) शामिल है। आज इनके चित्र मन को छू लेते है। यह एक कर्मठ कलाकार के रूप में उभरे है। उनके बहुस्तरीय कोलाज कलाकृति जीवन में आंनद का अनुभव कराती है।

चित्र 4

चित्र 4 गणेशा आकर- 18x16 इंच

Source Picture by G. Subrahmaniam Studio 3 Art Gallery

 

अन्य कोलाज कलाकारों में अमृत लाल बेगड उत्कृष्ट चित्रकार थे, इन्होने नर्मदा पद यात्रा का चित्रांकन करते रहे और जल रंग छोडकर कोलाज माध्यम अपनाया मैगजीन, रंगीन पेपर, कागज की कतरन का उपयोग किया है। इनकी धर्मयुग नामक प्रसिद्ध पत्रिका में उनका कोलाज वृतान्त के साथ (1978) में प्रकाशित हुये। ये वातावरण के अनुरूप कोलाज चित्रों का सृजन करते थे उनकी प्रमुख कृतियों में तोतेवाली स्त्री, कुछ प्रमुख कलाकारों में सतीश गुजराल ने भी पेपर कोलाज में इनकी कृति ’’दुर्गा’’ (1967) इसी क्रम में विनोद बिहारी मुखर्जी ने कागजों का सुन्दर कोलाज चित्रों का सृजन किया। इनकी प्रसिद्ध कृति में (Goat बकरी) अतः इन सभी समकालीन कला में निहित रहकर नवीन विद्या में रेखा चित्रों व अद्भुत अलंकरण द्वारा भारतीय चित्रकारों ने अपनी महत्वपूर्ण भूमिका निभाई है व इन सभी के सहयोग से इस नवीन शैली के प्रति नई चेतना जाग्रत कर उनमें नया उत्साह जगाया है। व कोलाज विधा की भव्य स्तर पर शुरूआत की है।

 

4.  उद्देश्य

समकालीन भारतीय कलाकारों की कोलाज तकनीक का अध्ययन में प्रस्तुत विषय के मुख्य उद्देश्य इस प्रकार निर्धारित किये गये है।

·        समकालीन कला में कोलाज का अध्ययन।

·        कोलाज की विभिन्न तकनीकों का अध्ययन।

·        आधुनिक कला के प्रमुख चित्रकारों का कोलाज चित्रण के संदर्भ में आंलकारिक अंकन।

·        भारतीय कलाकरों पर कोलाज का प्रभाव एवं दृष्टिकोण।

·        कोलाज की विशेषताओं पर प्रकाश डाला जायेगा।

·        कोलाज चित्रण एवं उपयोगिता।

·        कोलाज चित्रण में नवोदित चित्रकारों की कलाकृतियों का सृजनात्मक प्रभाव।

 

5.  निष्कर्ष

मैंने इन समकालीन कलाकारों की कोलाज तकनीकी के अध्ययन में निहित तथ्यों को एकत्रित किया है। और इसका विश्लेषण कर मैं इस निष्कर्ष पर पहुँची हूँ कि कोलाज विद्या एक सृजनशील व कलात्मक शैली है। इसमें मानव अपनी अभिव्यक्ति, आंतरिक भावों, विचारों कोलाज माध्यम से दर्शा सकता है। यह एक उपयोगी व अनुपयोगी वस्तुओं का स्वरूप है जिससे हम स्वतंत्र रूप से कोलाज तकनीक के माध्यम से व्यक्ति की सृजनात्मक कृति को श्रेष्ठ बनाने हेतु कोलाज विधा एक श्रेष्ठ शैली है। यह एक जन-कल्याण और व्यवसाय का उत्तम साधन है। कोलाज कला त्रि-आयामी आयाम का आभास कराती है। क्योंकि नवाचार हमेशा कला को विकसित करता है। नवाचार सदा स्वागत, वन्दन करता है। इसलिये इस विधा के माध्यम से रचनात्मक व नवीन संचालन हेतु आधुनिकता का समावेश होते रहना चाहिए। लेकिन परम्पराओं का हनन नहीं होना चाहिये। यह विद्या (जन सामान्य में हो रहे सामाजिक परिवर्तन व उनमें बदलते आयामों जैसे वर्तमान में हो रही ज्वलंत समास्याओं के निस्तारण हेतु जैसे (पर्यावरण से सम्बन्धित समस्या) को हम कोलाज के माध्यम में दर्शा सकते है जन जागरूकता लाने के लिए (सामाजिक घटनाओं) को हम कोलाज के विद्या में चित्रांकन कर प्रदर्शित कर नई चेतना ला सकते है, और सभी समकालीन कलाकारों की कार्य शैली में विभिन्न विविधताएँ देखने को मिलती है जैसे - उमा शर्मा जब कोलाज तकनीक में चित्राकंन करती है तो वह कैंची, रंग, ब्रश, इत्यादि का प्रयोग नहीं करती है। उमा शर्मा जब कोई कृति का सृजन करती है तब वह सीधे कागज के छोटे-छोटे कागज के टुकडों को विभक्त कर आकृति के अनुसार कोलाज कृति में सृजन करती है। जी सुब्रमण्यम भी अपनी कोलाज चित्रों को बनाते समय सर्वप्रथम स्केच के बाद इंकवाश फिर रंगीन पत्रिकाओं के छोटे-छोटे टुकडे द्वारा अपनी कल्पना के अनुसार गोंद की सहायता से चिपकाकर कोलाज चित्रण करते है। कोलाज विधा में बदलते आयामों व कलात्मक रूप सृजनशील/ शैली और नवीन महत्वकांक्षा होने की वजह से यह विद्या भव्य स्तर पर अपनी पहचान बना चुकी है।  इन उपयोगी-अनुपयोगी वस्तुओं से सुंदर कलाकृतियाँ बनती हैं जिसका प्रयोग करके कोलाज कलाकृतियों को व्यवसायिक रूप में प्रयोग कर सकते हैं। जिससे कोलाज विद्या के विकास उनकी विशेषताएँ, उद्देश्यों और सृजनात्मकता व कलात्मक दृष्टि से सभी समकालीन कलाकारों का योगदान महत्वपूर्ण है, और हमारी भारतीय संस्कृति प्रारंभिक स्तर से कहीं न कहीं कोलाज तकनीक को पोषित करती आयी है। क्योंकि इस विद्या को ऊंचाई तक ले जाने के लिय उच्च स्तर पर निरंतर प्रयास जारी है।

चित्र 5

चित्र 5  Interview of Artist (Sharma, U. personal communication, 2022)

 

CONFLICT OF INTERESTS

None. 

 

ACKNOWLEDGMENTS

None.

 

REFERENCES

Agarwal, G. K. (2011). Modern Art. Aligarh : Lalit Kala Prakashan, 155-158.

Balwant, R. (2014). Kala Shikshan. Agra : Vinod Pustak Mandir,71-79.

Chaturvedi, M. (2019). Samakaleen Bharateey Kala. Rajasthan : Hindi Granth Academy, 5.

Sharma, R.P., Verma, R. K., Satya, P. (2010). Teaching of Art and Music. Agra : Radha Prakashan Mandir Private Limited,125-126.

     

 

 

 

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